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श्रीयंत्र का महत्व और पूजा विधि

यह सर्वाधिक लोकप्रिय प्राचीन यन्त्र है,इसकी अधिष्टात्री देवी स्वयं श्रीविद्या अर्थात त्रिपुर सुन्दरी हैं,और उनके ही रूप में इस यन्त्र की मान्यता है। यह बेहद शक्तिशाली ललितादेवी का पूजा चक्र है,इसको त्रैलोक्य मोहन अर्थात तीनों लोकों का मोहन यन्त्र भी कहते है।

यह सर्व रक्षाकर सर्वव्याधिनिवारक सर्वकष्टनाशक होने के कारण यह सर्वसिद्धिप्रद सर्वार्थ साधक सर्वसौभाग्यदायक माना जाता है। इसे गंगाजल और दूध से स्वच्छ करने के बाद पूजा स्थान या व्यापारिक स्थान तथा अन्य शुद्ध स्थान पर रखा जाता है। इसकी पूजा पूरब की तरफ़ मुंह करके की जाती है,श्रीयंत्र का सीधा मतलब है,लक्ष्मी यंत्र जो धनागम के लिये जरूरी है।

श्रीयंत्र अलौकिक शक्ति व चमत्कारों से परिपूर्ण गुप्त शक्तियों का प्रजनन केन्द्र बिद्नु कहा गया है। जिस प्रकार से सब कवचों से चन्डी कवच सर्वश्रेष्ठ कहा गया है,उसी प्रकार से सभी देवी देवताओं के यंत्रों में श्रीदेवी का यंत्र सर्वश्रेष्ठ कहा गया है।

इसी कारण से इसे यंत्रराज की उपाधि दी गयी है। इसे यन्त्रशिरोमणि भी कहा जाता है। दीपावली धनतेरस बसन्त पंचमी अथवा पौष मास की संक्रान्ति के दिन यदि रविवार हो तो इस यंत्र का निर्माण व पूजन विशेष फ़लदायी माना गया है

श्रीयंत्र का मूल मंत्र:-

ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद श्रीं ह्रीं श्रीं ॐ महा-लक्ष्म्यै नमः

सिद्ध श्री यंत्र ही देता है फल आज बाजार में रत्नों के बने श्री यंत्र आसानी से प्राप्त हो जाते हैं किंतु वे सिद्ध नहीं होते। सिद्ध श्री यंत्र में विधिपूर्वक हवन-पूजन करके देवी-देवताओं को प्रतिष्ठित किया जाता है तब श्री यंत्र समृद्धि देने वाला बनता है। यह आवश्यक नहीं कि श्री यंत्र रत्नों का बना हो।

श्री यंत्र तांबे पर बना हो अथवा भोज पत्र पर जब तक उसमें मंत्र शक्ति विधिपूर्वक प्रवाहित नहीं की गई हो तब तक वह श्री प्रदाता अर्थात धन प्रदान करने वाला नहीं होता।

पौराणिक कथा

श्री यंत्र के संदर्भ में एक कथा का वर्णन मिलता है। उसके अनुसार एक बार आदि शंकराचार्यजी ने कैलाश मान सरोवर पर भगवान शंकर को कठिन तपस्या कर प्रसन्न कर दिया। भगवान शंकर ने प्रसन्न होकर उनसे वर मांगने के लिए कहा। आदि शंकराचार्य ने विश्व कल्याण का उपाय पूछा।

भगवान शंकर ने शंकराचार्य को साक्षात लक्ष्मी स्वरूप श्री यंत्र की महिमा बताई और कहा- यह श्री यंत्र मनुष्यों का सर्वथा कल्याण करेगा। श्री यंत्र परम ब्रह्म स्वरूपिणी आदि प्रकृतिमयी देवी भगवती महा त्रिपुर सुदंरी का आराधना स्थल है क्योंकि यह चक्र ही उनका निवास और रथ है। श्री यंत्र में देवी स्वयं मूर्तिवान होकर विराजती हैं इसीलिए श्री यंत्र विश्व का कल्याण करने वाला है।

आज के यांत्रिक युग में जबकि मनुष्य अनेक प्रकार की समस्याओं से आक्रान्त है, अगर वह श्रीयंत्र की स्थापना करें तो यह यंत्र उसके लिए रामबाण सिद्व हो सकता है।

इस यंत्र को पूर्ण श्रद्वा, विश्वास से अपने व्यवसाय, दुकान, ऑफिस , फैक्टरी आदि में स्थापित करना चाहिए। इसकी प्रतिदन पूजा से श्रीलक्ष्मी प्रसन्न होती है। तथा साथक धनाढय बनता है आज जबकि वास्तु का युग है, प्रत्येक व्यक्ति वास्तु के द्वारा सुख भी प्राप्ति करना चाहता है। ऐसे में श्रीयंत्र की स्थापना और भी आवश्यक हो जाती है।

आदिकालीन विद्या का द्योतक हैं वास्तव में प्राचीनकाल में भी वास्तुकला अत्यन्त समृद्व थी। श्रीयंत्र में सर्वप्रथम धुरी में एक बिन्दु और चारो तरफ त्रिकोण है, इसमें पांच त्रिकोण बाहरी और झुकते है जो शक्ति का प्रदर्शन करते हैं और चार ऊपर की तरफ त्रिकोण है, इसमें पांच त्रिकोण बाहरी और झुकते हैं जो शक्ति का प्रदर्शन करते है और चार ऊपर की तरफ शिव ती तरफ दर्शाते है।

अन्दर की तरफ झुके पांच-पांच तत्व, पांच संवेदनाएँ, पांच अवयव, तंत्र और पांच जन्म बताते है। ऊपर की ओर उठे चार जीवन, आत्मा, मेरूमज्जा व वंशानुगतता का प्रतिनिधत्व करते है। चार ऊपर और पांच बाहारी ओर के त्रिकोण का मौलिक मानवी संवदनाओं का प्रतीक है। यह एक मूल संचित कमल है।

आठ अन्दर की ओर व सोलह बाहर की ओर झुकी पंखुड़ियाँ है। ऊपर की ओर उठी अग्नि, गोलाकर, पवन,समतल पृथ्वी व नीचे मुडी जल को दर्शाती है। ईश्वरानुभव, आत्मसाक्षात्कार है। यही सम्पूर्ण जीवन का द्योतक है। यदि मनुष्य वास्तव में सुखी और सृमद्व होना चाहता है तो उसे श्रीयंत्र स्थापना अवश्य करनी चाहिये।

अनन्त ऐश्वर्य एवं लक्ष्मी प्राप्ति के मुमक्ष को चाहिए कि श्री यंत्र के सम्मुख श्री सूक्त का पाठ करो पंचमेवा देवी को भोग लगायें तो शीघ्र ही इसका चमत्कार होता है।

यंत्र का उपयोगइस यंत्र को व्यापार वृद्धि के लिए तिजोरी में रखा जाता है धान्य वृद्धि के लिए धान्य में रखा जाता है

इस यंत्र को वेलवृक्ष की छाया में उपासना करने से लक्ष्मी शीघ्र प्रसन्न होती है और अचल सम्पत्ति प्रदान करती हैं।

इस यंत्र को सम्मुख रखकर सूखे वेलपत्र घी में डुबोकर वेल की समिधा में आहूति डालने से मां भगवती शीघ्र ही प्रसन्न होती है एवं धन ऐश्वर्य प्राप्त होता है तथा जीवन भर लक्ष्मी के लिए दुखी नहीं होना पड़ता।

मान्यता है कि भोजपत्र की अपेक्षा तांबे पर बने श्रीयंत्र का फल सौ गुना, चांदी में लाख गुना और सोने पर निर्मित श्रीयंत्र का फल करोड़ गुना होता है। ‘रत्नसागर’ में रत्नों पर भी श्रीयंत्र बनाने की बात लिखी गई है।

इनमें स्फटिक पर बने श्रीयंत्र को सबसे अच्छा बताया गया है। विद्वानों की ऐसी धारणा है कि भोजपत्र पर 6 वर्ष तक, तांबे पर 12 वर्ष तक, चांदी में 20 वर्ष तक और सोना धातु में श्रीयंत्र आजीवन प्रभावी रहता है।

केसर की स्याही से अनार की कलम द्वारा भोजपत्र पर श्रीयंत्र बनाया जाना चाहिए। धातु पर निर्मित श्रीयंत्र की रेखाएं यदि खोदकर बनाई गई हों और गहरी हों, तो उनमें चंदन, कुमकुम आदि भरकर पूजन करना चाहिए। दीपावली की रात गृहस्थ के लिए श्री यंत्र सिद्ध करना सबसे आसान है।

इसके लिए पूजन के बाद लक्ष्मी मंत्र-

ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद श्रीं ह्रीं श्रीं ॐ महा-लक्ष्म्यै नमः

की 11 माला का जाप करें। साथ ही श्री यंत्र की स्थापना कर उसका पूजन करें तो वह सिद्ध हो जायेगा

चेतावनी –

सिद्ध गुरु कि देखरेख मे साधना समपन्न करेँ , सिद्ध गुरु से दिक्षा , आज्ञा , सिद्ध यंत्र , सिद्ध माला , सिद्ध सामग्री लेकर हि गुरू के मार्ग दरशन मेँ साधना समपन्न करेँ ।

द फ्रीडम स्टॉफ
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