लॉकडाउन का सबसे अधिक प्रभाव प्रवासी मजदूरों पर पड़ा है। काम बंद हुआ तो रोजी-रोटी खत्म हो गई। कमाकर जमा किए गए पैसे से कुछ दिनों तक किसी तरह गुजारा किया। जब वह भी खत्म हो गए तो घर लौटने के सिवा कोई चारा न था। श्रमिक स्पेशल ट्रेन से रोज 40 हजार से अधिक प्रवासी आ रहे हैं, लेकिन बहुत से ऐसे लोग हैं, जिन्हें ट्रेन की सुविधा नहीं मिल रही। ये श्रमिक पैदल, साइकिल, ठेला, ट्रक या किसी और साधन से घर लौट रहे हैं।
भागलपुर के अलिगंज स्थित बाइपास पर मजदूरों से भरा ट्रक रुका। मजदूर एक ढाबा पर पानी पीने रुके थे। ट्रक में 50 से अधिक मजदूर भेड़-बकरियों की तरह लदे थे। ये लोग मुंबई में काम करते थे। लॉकडाउन में फैक्ट्री बंद हुई तो वापस अपने घर लौटना पड़ा।
श्रमिक मोहम्मद रुकमान ने कहा कि हमारे सामने भूखे मरने की नौबत आ गई थी। हमलोगों के पास पैसा नहीं था। घर से ब्याज पर पैसा मंगाया। पैसे कम पड़े तो चंदा जुटाया। किसी तरह एक ट्रक ड्राइवर को बिहार चलने के लिए तैयार किया। ट्रक वाले को हमने 70 हजार रुपए दिए हैं।
रुकमान ने कहा कि लॉकडाउन के चलते फैक्ट्री बंद हो गई थी। सेठ (फैक्ट्री मालिक) ने हमारी मदद नहीं की। उसने हाथ खड़े कर दिए। घर के लोग भी परेशान थे। हम लोग कमाकर घर भेजते हैं तो चूल्हा जलता है। हमारी कमाई बंद हुई तो घर के लोग भी एक-एक रोटी के लिए मोहताज हो गए, जो कष्ट झेलकर मुंबई से लौटा हूं अब आत्मा गंवारा नहीं कर रहा कि लॉकडाउन खत्म होने के बाद वापस जाऊंगा। हम लोग यहां मिट्टी भी ढोने को तैयार हैं। यहां रोजी-रोटी के लिए जो काम मिलेगा वह करेंगे, लेकिन दूसरे जगह काम करने नहीं जाएंगे।