साहित्य

भारती गौड़ के जाह्नवी उपन्यास की समीक्षा

लेखिका भारती गौड़ का जाह्नवी पहला उपन्यास है और उन्हें इसी उपन्यास के लिए पंडित प्रताप नारायण मिश्र स्मृति युवा साहित्यकार सम्मान भी मिला है। सामाजिक-मनोविज्ञान विषयवस्तु के साथ लिखा गया ये उपन्यास समकालीन विमर्श के आवश्यक लोक विषयों को बहुत ही खूबसूरती से उठाता है।

एक औरत के ख्वाब, उसका दामपत्य जीवन, सामाजिक विद्रूपता को देखकर उसके भीतर उपजी संवेदना और उस संवेदना को स्वःवेदना की तरह महसूसना देखकर कोई भी पाठक उपन्यास पढ़ते-पढ़ते अनायास ही उससे बंध सा जाता है। इसके अतिरिक्त उपन्यास में लेखिका ने स्त्री के भीतर के अंतर्द्वंद, बाल अशिक्षा, बाल श्रम, बाल विवाह, बाल विधवा, वृद्धजनों की समस्याओं को भी गंभीरता के साथ उठाया है और साथ ही इन समस्याओं के समाधान भी उपन्यास में सुझाये है।

पात्र संरचना के दृष्टिकोण से ये उपन्यास बेहद सुगठित है। उपन्यास पढ़ते वक़्त आपको एक भी पात्र ऐसा नही प्रतीत होगा कि जिसे पढ़कर ये लगे कि इसे जबरदस्ती उपन्यास में ये ठूंसा गया है। उपन्यास की केंद्रीय पात्र जाह्नवी है जो ख्वाबों को न सिर्फ़ जीने में बल्कि उसे मुक्कमल करने में भी यक़ीन करती है। जाह्नवी के लिए प्रेम ऊर्जा है तो धर्म और आध्यात्म के दोपाये में वो आध्यात्म के पाये पे खड़ी है।

बाल श्रम, बाल विवाह और वृद्धजन की समस्या को लेकर भी वो अपार चिंतित रहती है और वृद्धजनों के पुनर्वास के लिए ‘अपना घर‘ के रूप में एक ओल्ड एज होम भी की भी देखभाल करती है। उपन्यास का दूसरा मुख्य पात्र जाह्नवी का पति अनिकेत है जो कि अपनी पत्नी के साथ ‘विवाह बंधन’ में नही बल्कि ‘विवाह साथ’ मे बंधता है। इसके अतिरिक्त समीर, शुचि, अनुराग, गीता, दीनानाथ, सुबोध और कैप्टन साहब मने दादा जी और दादी अन्य प्रमुख पात्र है।

भाषा-शैली के दृष्टिकोण से भी उपन्यास बेहद समुन्नत है। सहज सी लगने वाली प्रवाहपूर्ण शैली में लेखिका ने अपनी बात रखी है। चूंकि लेखिका मनोवैज्ञानिक है तो उनके उपन्यास में भी उनके कार्यक्षेत्र की झलक देखने को मिलती है। किसी उपन्यास में मनोविज्ञान का इतना सूक्ष्म प्रयोग विरले ही देखने को मिलता है, जैसा इस उपन्यास को पढ़ते हुए आप पाते है। ‘जाह्नवी’ का खुद ही किसी विषय पे अपनी आत्मा से किया जाने वाला आत्मसंवाद पढ़कर ऐसा प्रतीत होता है मानो आंख के सामने ये दृश्य ही चल रहा हो। उपन्यास में उक्तियों के माध्यम से भी लेखिका ने अपनी बात समझाई है जैसे ‘ख्वाब कभी नही मरते’, ‘प्रेम वो ऊर्जा है जो काम करने की क्षमता को और बढ़ाती है’ आदि-आदि।

इस उपन्यास की जो बातें मुझे सबसे अच्छी लगती है वो है इसका एक ही रीडिंग में पढ़ जाना। उपन्यास की शुरूआत करने के बाद आप चाहकर भी उपन्यास को दुबारा पढ़ने के लिए रख नही पाएंगे बल्कि आप एक बार उपन्यास पढ़ना शुरू करते ही उपन्यास के हो जाएंगे और फ़िर आगे की कहानी की चाह में और अंत देखने की ख़ातिर पूरा पढ़कर ही उपन्यास पाठ की यात्रा से उन्मुक्त होंगे। ‘सामाजिक मनोविज्ञान’, ‘घरेलू दाम्पत्य जीवन की झांकी’, ‘सामाजिक समस्याओं को समझने’ के इच्छुक पाठक इस उपन्यास को जरूर पढ़ें।

bit.ly/JahnaviBook (किताब का लिंक)

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