नज़रिया

खुद को तोड़कर भारत को जोड़ने वालों अपने मेहनतकश बेटों के लहू से लथपथ सिसक रही है भारत मां

दिवस पर धरती माता को नमन। माता अपने करोड़ों पुत्रों को धारण करती हैं, उनका लालन-पालन करती हैं और अपनी ममता के आंचल में आश्रय देती हैं। लेकिन आज धरती मइया का मन विचलित है। उनकी ममता का आंचल पुत्रों के लहू से लाल है। माता कैसे नमन स्वीकार करें ? परसों की ही तो बात है। औरंगाबाद में कामराड के पास माता के 16 बेटे अकाल काल के गाल में समा गये। लखनऊ की अदब वाली माटी भी रक्तरंजित हो गयी। माता के असहाय पुत्र और पुत्री अचानक मृत्यु का ग्रास बन गये।

कोरोना यमराज बन कर सामने खड़ा है। उससे प्राण रक्षा के लिए ये घर से बाहर क्या निकले काल के क्रूर पंजों ने उन्हें दबोच लिया। यह सब देख कर धरती मां का कलेजा छलनी है। वे व्यथित हैं। उनके दुख के कई कारण हैं। जिन करोड़ों पुत्रों ने उनकी ममता के आंचल में आश्रय लिया है, वे भी तो सुरक्षित नहीं हैं। कोरोना ने ऐसा रौद्र रूप धारण कर लिया है कि उनका जीवन संकट में है। आज मातृ दिवस पर माता का मन करूणा के अथाह सागर में डूबा हुआ है। कोरोना न होता तो दर्द का ये दरिया भी न होता। कोरोना न होता तो मौत का ये मंजर भी न होता। मौत इस तरह रूप बदल कर आएगी, कभी सोचा भी न था।

द फ्रीडम स्टॉफ
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