‘मेरे प्यारे दोस्त. तुम लड़े, लड़े और लड़ते रहे. मुझे तुम पर हमेशा गर्व होगा. हम दोबारा मिलेंगे. सुतापा और बाबील के साथ मेरी संवेदनाएं हैं. आपने भी लड़ाई लड़ी. सुतापा तुमने इस लड़ाई में जो हो सकता था सब किया.’ अपने इन शब्दों के साथ डायरेक्टर शूजीत सरकार ने इरफ़ान के निधन की जानकारी दे कर सबको स्तब्ध कर दिया.
एक पल के लिए यकीन ही नहीं हुआ कि ये सच है. दिमाग मानने को ही तैयार नहीं हो रहा कि 53 बरस की उम्र में इरफ़ान जिंदगी हार गए. कल ही उनकी तबीयत बिगड़ने की ख़बर आई थी. किसी ने कहा बहुत सीरियस हैं इरफ़ान. जवाब देते हुए हमने कहा था, “अमां छोड़ो, योद्धा है अपना इरफ़ान. अभी उसे हमारे लिए पान सिंह तोमर जैसी कई और दमदार फ़िल्में बनानी हैं.”
साल 2018 में भी वो बीमार हुआ था. एक साल तक लंदन में वह अपनी बीमारी के खिलाफ लड़ा, और जीतकर ही वापस लौटा था. लौटकर उसने हमारे लिए ‘अंग्रेज़ी मीडियम’ फ़िल्म में काम भी किया. इस बार भी हम इरफ़ान के ठीक होने के इंतजार में थे. मगर इस बार वह नहीं लौटे. वह वहां चले गए, जहां से हम इंसानों की वापसी नहीं होती.
खैर, इरफान हमारे दिलों में हमेशा जिंदा रहेंगे, जब-जब हम उनको उनकी फिल्मों के ज़रिए स्क्रीन पर देखेंगे, तो उन्हें खड़े होकर सैल्यूट करेंगे.
मकबूल, हासिल, द नेमसेक, पान सिंह तोमर, स्लमडॉग मिलियनेयर, द अमेजिंग स्पाइडर मैन, करीब करीब सिंगल, डी-डे, ये साली ज़िन्दगी, सात खून माफ़, दिल्ली-6, रोड टू लद्दाख, संडे, सलाम बॉम्बे जैसी फिल्में हमें देने के लिए इरफान तुम्हारा बहुत-बहुत शुक्रिया.
अपने अभिनय से हमारी यादों का दायरा बढ़ाने के लिए शुक्रिया. हम आपको सदा याद रखेंगे. मुझ जैसा हर सिनेमा प्रेमी आपको सैल्यूट करता है. ओम शांति.