उन दिनों लन्दन में इलाज चल रहा था. अभिनेता विपिन शर्मा उनसे मिलने अस्पताल पहुंचे. देखा कमरे में न इरफ़ान हैं न उनकी पत्नी सुतपा. रिसेप्शन पर पूछा तो पता लगा दोनों कॉफ़ी पीने गए हुए हैं.
उस मौके को याद करते हुए विपिन ने लिखा, “इरफ़ान के बेड पर खुली हुई रूमी की किताब उल्टी धरी हुई थी. मैं उस छवि को कभी नहीं भूल सकता. काश मैंने उसका फोटो ले लिया होता. उसे देखना बेहतरीन अनुभव था. रूमी की किताब उलटी रखी हुई थी और मैंने अपने आप से कहा – ये है इरफ़ान!”
महान संत रूमी के जैसी सूफियाना मनःस्थिति ने इरफ़ान को जीवन के सबसे मुश्किल और सबसे अनिश्चित दौर को पार करने में मदद की. जिस पन्ने पर किताब उल्टी हुई थी उसमें रूमी की यह कविता थी –
“जो जाना हुआ है और जो अजाना है
उस सब के बारे में क्यों बात करें
देखें, किस तरह अजाना घुलता है जाने हुए में.
इस जीवन के और उसके बाद के जीवन के बारे में
अलग-अलग क्यों सोचें
जबकि पिछले वाले से ही उपजा हुआ है यह जीवन”
ठीक तीन दिन पहले रमजान के मुक़द्दस महीने के पहले दिन यानी 26 अप्रैल को जयपुर की कृष्णा कॉलोनी में रहने वाली अस्सी साल की सईदा बेगम इंतकाल फरमा गयी थीं. ये सईदा बेगम इरफ़ान को जन्म देने वाली उसकी प्यारी अम्मीजान थीं जिनके जनाजे को कंधा देने तक वह नहीं आ सका.
आज वह खुद उनके पास चला गया.