नज़रिया

विश्व पृथ्वी दिवस पर विशेष: मैं पृथ्वी हूँ!

मुझे धरा, रत्नगर्भा, प्रकृति, धरती माँ आदि नाम से भी जाना जाता है। ब्रह्माण्ड में अब तक 9 ग्रह खोजे खोजे गए परन्तु वर्ष 2006 में प्लूटो को बौने ग्रह के रूप में शामिल किया गया। सभी ग्रहों की भांति मैं भी सूर्य की परिक्रमा करती हूँ। 8 ग्रहों में मैं ही एकमात्र ग्रह हूँ जिसमें जीव और वनस्पति जगत पाया जाता है, सौरमंडल में जल और जीवन भी मुझमे ही पाया जाता है। जल की उपस्थिति के कारण ही मुझे नीला ग्रह भी कहा जाता है। मैंने सभी वनस्पतियों और जीव जंतुओं को भोजन तथा धूप-बारिश, आपदा से बचने को आवास दिए हैं। सबकी प्यास बुझाने को तालाब-पोखरे और सदानीरायें बनाई, मनुष्यों को तन ढकने के लिए कपड़ा उपलब्ध कराए हैं। वर्ष 2020 में मेरे दिवस को जलवायु कार्यवाई के रूप में मनाया जा रहा है।

आकार और रचना में मै शुक्र ग्रह के समान हूँ। मेरा एकमात्र उपग्रह चन्द्रमा है। मैं अपने अक्ष पर 23.5 डिग्री झुकी हुई हूँ। ऋतु परिवर्तन मेरे अक्ष पर झुके होने के कारण तथा सूर्य के सापेक्ष मेरी स्थिति में परिवर्तन के कारण होता है। तथा इसी कारण दिन और रात छोटे-बड़े होते हैं।
मैं लगभग सभी कल्प और युगों की साक्षी रही हूं। मेरा धर्म है रचना करना, जब से मेरी उत्पत्ति हुई है तब से मैं रचना करती रही हूं। मेरे स्थल मण्डल, वायुमण्डल और जलमण्डल में अनन्त प्रकार के जीव और वनस्पतियां वास करते हैं। समस्त प्रकार की जैवविविधता मुझमे ही समाहित है, जीव और वनस्पति जगत के लिए मेरे गर्भ में प्रचुर मात्रा में जैविक और अजैविक संसाधन विद्यमान हैं।

जब से मनुष्यों ने यांत्रिक स्रोतों का सहारा लेकर उद्योग की शुरुआत की तथा कंक्रीट की बस्तियाँ बसानी शुरू की तब से मेरे संसाधनों को क्षति पहुचने लगी। वनों की अंधाधुंध कटाई, पशु-पक्षियों का शिकार, उद्योगों से निकले अपशिष्ट पदार्थों को जल में प्रवाहित करके मेरे प्राकृतिक वातावण को दूषित किया जाता रहा है। इन सबके बावजूद भी मै अपना धर्म यानि रचना करना कभी नहीं भूली।

आज भी मैंने अपना रंग और तबियत नहीं बदली है। रचना की भी एक सीमा होती है। यदि इसी प्रकार संसाधनों का दोहन होता रहा तो भविष्य में मैं संसाधनहीन हो जाऊँगी। मैं पल-पल सबको जीवन दे रही हूँ फिर आप सबका भी कुछ फ़र्ज़ है, सब कुछ विरासत ही नहीं है! भविष्य को ध्यान में रखते हुए संसाधनों का ठीक प्रकार से इस्तेमाल किया जाए, यानि जितने संसाधन की जरूरत है उतना ही इस्तेमाल किया जाए तो आने वाली पीढ़ियों को भी पर्याप्त मात्रा में संसाधन उपलब्ध हो पाएंगे। धारणीय विकास भी यही सिखलाता है। त्योहारों की तरह ही यदि समय-समय पर जैसे पृथ्वी दिवस, जल दिवस, वन दिवस, जैवविविधता दिवस, पर्यावरण दिवस, जन्मदिन और सालगिराह आदि को वृक्षारोपण के त्यौहार के रूप में मनाएं तो मैं अनन्तकाल तक प्राकृतिक वातावण को पोषित करती रहूंगी।

लेखक

शक्तिमान अग्रहरि, युवा टिप्पणीकार

द फ्रीडम स्टॉफ
पत्रकारिता के इस स्वरूप को लेकर हमारी सोच के रास्ते में सिर्फ जरूरी संसाधनों की अनुपलब्धता ही बाधा है। हमारी पाठकों से बस इतनी गुजारिश है कि हमें पढ़ें, शेयर करें, इसके अलावा इसे और बेहतर करने के सुझाव दें।
https://thefreedomsnews.com

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *