द फ्रीडम नेशनल ब्यूरो: मोदी सरकार-2 में भी भीड़ हिंसा का सिलसिला लगातार जारी है। अब इसे लेकर फिल्म निर्देशक अदूर गोपालकृष्णन और अनुराग कश्यप समेत 49 हस्तियों ने प्रधानमंत्री को चिट्ठी लिखी है। इस चिट्ठी में प्रधानमंत्री मोदी को नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो का हवाला देते हुए बताया की सिर्फ साल 2016 में 840 मामले दर्ज हुए जो सिर्फ दलितों के मामले में दर्ज हुए है।
इस चिट्ठी में सविंधान का हवाला देते हुए सबने लिखा कि अफसोस की बात है कि ‘जय श्री राम’ आज एक भड़काऊ नारा बन गया है। भारत के बहुसंख्यक समुदाय में राम का नाम पवित्र हैं। एक जनवरी 2009 से 29 अक्टूबर 2018 के बीच 254 धार्मिक पहचान आधारित हिंसा दर्ज की गई है। जबकि 2016 में दलितों पर अत्याचार के 840 मामले सामने आए हैं।
पत्र में कहा गया है कि इन मामलों में मुसलमानों के खिलाफ हुई हिंसा 62 प्रतिशत और क्रिश्चियन समुदाय के खिलाफ 14 प्रतिशत मामले देखे गए है। प्रधानमंत्री मोदी आपने संसद में लिंचिंग की निंदा की वो काफी नहीं है।
बल्कि उसके बाद एक्शन क्या लिया गया ये ज्यादा महत्व रखता है। चिट्ठी में लिंचिंग करने वालों को जमानत ना देने जैसा प्रावधान की बात कही है। ये भी याद दिलाया गया की जब उम्र कैद की सजा पाने वाले को पेरोल नहीं मिलती है तो लिंचिंग में वाले जमानत क्यों मिल जाती है?
पत्र में लिखा गया कि लोकतंत्र बिना असहमति के नहीं चलता। लोगों को देशद्रोही और अर्बन नक्सल नहीं कहा जा सकता अगर वो मौजूदा सरकार से सहमत नहीं है तो।
आर्टिकल 19 का हवाला देते हुए कहा कि सविंधान ये अधिकार देते है की अभिव्यक्ति की आज़ादी का अहम हिस्सा असहमति भी है। सत्ता में बैठी पार्टी की आलोचना करने का मतलब ये नहीं की हम देश की आलोचना कर रहे है। किसी भी राजनितिक दल जो सत्ता में बैठी हो उसे ये अधिकारी नहीं है की वो अभिव्यक्ति की आज़ादी बरक़रार रहें। एक खुला असहमति का माहौल ही देश को मजबूत कर सकता है।
इस सामूहिक चिट्टी को लिखने वाले इतिहासकार रामचंद्र गुहा,निर्देशक अनुराग कश्यप, अदूर गोपालकृष्णन, मणिरत्नम, बिनायक सेन, सौमित्रो चटर्जी, अपर्णा सेन, कोंकणा सेन शर्मा, रेवती, श्याम बेनेगल, शुभा मुद्गल, रूपम इस्लाम, अनुपम रॉय, परमब्रता, रिद्धि सेन जैसे लोग शामिल हैं।