लखनऊ से आशतोष गुप्त : झारखंड के तबरेज की भीड़ हिंसा (मॉब लिंचिंग) में मौत के बाद पूरे देश में एक नई बहस शुरू हो गई है। भीड़ हिंसा के दोषियों पर अंकुश लगाने और सरकारी मशीनरी की जवाबदेही तय करने की मांग उठने लगी है। इस बीच उत्तर प्रदेश राज्य विधि आयोग ने इस सिलसिले में प्रदेश सरकार से विशेष कानून बनाने की सिफारिश की है। आयोग के चेयरमैन न्यायमूर्ति एएन मित्तल ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को सौंपी अपनी 130 पेज की विस्तृत रिपोर्ट में भीड़ हिंसा से मौत होने पर उम्र कैद और पांच लाख रुपये जुर्माना की सिफारिश की है।
आयोग ने भीड़ हिंसा में नाकाम रहने पर डीएम और एसपी को भी जिम्मेदार ठहराते हुए दंड का प्रावधान किये जाने की सिफारिश की है। कहा है कि अगर पुलिस अधिकारी पीड़ित व्यक्ति या परिवार को जानबूझकर सुरक्षा देने में लापरवाही करता या मुकदमा दर्ज नहीं करता है तो उस पुलिस अधिकारी को तीन वर्ष की सजा और 50 हजार रुपये जुर्माना होना चाहिए।
इसी तरह जिलाधिकारी भी यदि पीड़ित व्यक्ति की जानबूझ कर उपेक्षा करते और सुरक्षा प्रदान नहीं करते तो तीन वर्ष की सजा और 50 हजार रुपये जुर्माना का प्रस्ताव है। आयोग ने इस कानून को लागू करने की तत्काल सिफारिश की है। सरकार अगर इस कानून को लागू करती है तो मणिपुर के बाद भीड़ हिंसा पर नियंत्रण के लिए कानून बनाने वाला उत्तर प्रदेश दूसरा राज्य होगा।