बिहार में एईएस (एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम) या इंसेफेलौपैथी से मौत का सिलसिला थमता नजर नहीं आ रहा। मुजफ्फरपुर में एईएस ने 2012 में 120 बच्चों की मौत का रिकॉर्ड तोड़ दिया। एसकेएमसीएच में बुधवार की सुबह पांच और बच्चों की मौत हो गई। अब तक इस बीमारी से सिर्फ मुजफ्फरपुर के अस्पतालों में 125 बच्चों की मौत हो चुकी है। वहीं बिहार में इस साल अभी तक मौत का आंकड़ा 145 पर पहुंच गया है। विभिन्न अस्पतालों में अब तक 473 बच्चों को भर्ती कराया जा चुका है। साल 2012 में 336 को भर्ती कराया गया था।
पीडि़तों के आने का सिलसिला भी थम नहीं रहा
इधर, पीडि़तों के आने का सिलसिला भी थम नहीं रहा। बुधवार को एसकेएमसीएच में 22 से ज्यादा नए मरीजों को भर्ती किया गया, जबकि आठ बच्चे केजरीवाल अस्पताल में लाए गए हैं। इससे पहले मंगलवार को चार बच्चों की मौत हो गई थी, जबकि 39 पीडि़तों को भर्ती कराया गया था। बीमारी के इस कहर के कारण केंद्र व राज्य सरकारों पर मुकदमों का सिलसिला चल पड़ा है। बुधवार को अस्पतालों में सुविधाओं को बढ़ाने के लिए सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दायर की गई।
मुजफ्फरपुर के एसकेएमसीएच के सुपरिटेंडेंट सुनील कुमार शाही ने बताया कि अभी 68 बच्चे आइसीयू में भर्ती हैं और 65 बच्चे वार्ड में इलाजरत हैं और आज बच्चों की मौत का आंकड़ा भी पिछले दिनों की अपेक्षा कम है। आज मात्र पांच बच्चों की ही मौत हुई है। बच्चों के परिजन कुछ जागरूक हुए हैं, जिसकी वजह से बच्चों की तबीयत भी अब जल्दी ठीक हो रही है।
मंगलवार को भी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार तथा केंद्र व राज्य के स्वास्थ्य मंत्रियों के खिलाफ मुकदमा किया गया। इसके पहले भी केंद्र व राज्य के स्वास्थ्य मंत्रियों पर एक और मुकदमा दर्ज किया जा चुका है। उधर, मानवाधिकार आयोग ने भी केंद्र व राज्य से रिपोर्ट तलब किया है।
सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दायर
बिहार में एईएस से बच्चों की मौत का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा। इसे देखते हुए अब सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका दायर कर इलाज की सुविधाएं बढ़ाने तथा इसमें अभी तक हुई लापरवाही की जिम्मेदारी तय करने का आग्रह किया गया है। याचिका में प्रभावित इलाकों में 100 मोबाइल आइसीयू बनाने तथा अस्पतालों में डॉक्टरों की संख्या बढ़ाने की मांग की गई है।
वकील मनोहर प्रताप और सनप्रीत सिंह अजमानी द्वारा सुप्रीम कोर्ट में दायर इस जनहित याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के लिए स्वीकार कर लिया है। इसकी सुनवाई सोमवार को होगी।
सीएम नीतीश-हर्षवर्धन पर मुकदमा
एईएस से बच्चों की मौत को लेकर मुजफ्फरपुर के अधिवक्ता पंकज कुमार ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार व अन्य के विरुद्ध मंगलवार को मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी (सीजेएम) कोर्ट में परिवाद दाखिल किया गया। इसमें उन्होंने केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन, केंद्रीय स्वास्थ्य राज्य मंत्री अश्विनी कुमार चौबे, राज्य के स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडेय, स्वास्थ्य विभाग के प्रधान सचिव संजय कुमार, बिहार मेडिकल सर्विसेज एंड इंफ्रास्ट्रक्चर कॉरपोरेशन लिमिटेड (बीएमएसआइसीएल) के प्रबंध निदेशक संजय कुमार सिंह, जिलाधिकारी आलोक रंजन घोष, सिविल सर्जन डॉ.शैलेश प्रसाद सिंह व एसकेएमसीएच के अधीक्षक डॉ. सुनील कुमार शाही को आरोपित बनाया है।
परिवाद में आरोप लगाया गया है कि सरकारी अस्पतालों में आपूर्ति की जाने वाली दवाएं केंद्रीय व राज्य प्रयोगशालाओं से जांच रिपोर्ट मिले बिना ही मरीजों को दी जाती हैं। सरकारी अस्पतालों में जेनरिक दवाओं की आपूर्ति की जाती है। इनकी पोटेंसी सामान्यत: छह माह की होती है, जबकि इनका उपयोग एक से दो साल तक किया जाता है। सूचना के अधिकार के तहत मांगी जानकारी में बीएमएसआइसीएल ने बताया है कि दवाओं की गुणवत्ता की जांच निजी जांच प्रयोगशाला में कराई जाती है।
केंद्रीय व बिहार के स्वास्थ्य मंत्री पर एक और मुकदमा
इसके पहले भी बिहार में एईएस से बच्चों की लगातार हो रही मौतें व बीमारी के इलाज में लापरवाही के आरोप में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन तथा राज्य के स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडेय के खिलाफ मुजफ्फरपुर कोर्ट में परिवाद दायर किया गया है। परिवाद सोमवार को मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी (सीजेएम) सूर्यकांत तिवारी के कोर्ट में सामाजिक कार्यकर्ता तमन्ना हाशमी ने दाखिल किया है। कोर्ट ने इस पर सुनवाई के लिए 24 जून की तारीख मुकर्रर की है।
अपने परिवाद पत्र में तमन्ना हाशमी ने आरोप लगाया है कि उक्त मंत्रियों ने अपने कर्तव्य का पालन नहीं किया। जागरूकता अभियान नहीं चलाने के कारण बच्चों की मौतें हो गईं। आरोप के अनुसार बीमारी को लेकर आज तक कोई शोध भी नहीं किया गया। लापरवाही के कारण बच्चों की मौत हुई है।
मानवाधिकार आयोग ने मांगी रिपोर्ट
भयावह हालात को देखते हुए राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने केंद्र व राज्य सरकारों से जवाब-तलब किया है। एनएचआरसी ने मौत के आंकड़ों, बीमारी से बचाव व इसके इलाज की तैयारियों को लेकर चार सप्ताह में जवाब मांगा है।