ऐसा माना जाता है कि यदि आप पूरी ईमानदारी से किसी पर विश्वास करें तो भी हो सकता है सामने वाला आपको धोखा दे दे। लेकिन आपके उस विश्वास पर ऊपर वाला अपनी मौजूदगी जरूर दर्ज करेगा। बस, विश्वास निश्छल और निष्कपट होना चाहिए। लंका कांड के एक दृश्य में लक्ष्मण को मूर्छित देख सुषेण वैद्य ने श्रीराम को प्रणाम किया तथा पर्वत तथा औषधि का नाम बताया। इस दृश्य पर तुलसीदासजी ने लिखा, ‘राम पदारबिंद सिर नायउ आइ सुषेण। कहा नाम गिरि औषधी जाहु पवनसुत लेन।।
सीधा सा अर्थ है, राम के प्रति सुषेण की श्रद्धा थी और राम सुषेण के प्रति विश्वास से भरे थे। सुषेण ने औषधि का नाम बताया, किस पर्वत पर मिलेगी और वहां कौन उसे लेने जाए यह भी उन्होंने खुद ही तय कर लिया। ‘औषधि लेने जाओ’ ऐसा सुषेण ने हनुमानजी से कहा। सुषेण मान चुके थे जो व्यक्ति लंका में से मुझे ला सकता है, वह औषधि भी जरूर ले आएगा। यहां विश्वास की शृंखला चल रही थी। राम सुषेण पर विश्वास कर रहे थे, सुषेण को हनुमानजी पर पूरा भरोसा था। जो स्थिति उस समय रामजी के साथ बनी, ऐसी जीवन में कभी-कभी हमारे साथ भी बन जाती है। जब भी कुछ ऐसा हो तो वही करें जो श्रीराम और सुषेण ने किया और वह था हनुमानजी पर भरोसा। हनुमानजी हैं ही भरोसे के देवता। एक भक्त के विश्वास को वे कभी खंडित नहीं होने देते। इसलिए जीवन में कितना ही बड़ा संघर्ष आ खड़ा हो, कैसी भी विपरीत स्थिति आ जाए, हनुमानजी से जरूर जुड़े रहिए।