प्रति वर्ष 5 जून को पूरी दुनिया पर्यावरण दिवस के रूप में मनाती है। इस वर्ष पर्यावरण की थीम वायु प्रदूषण निश्चित की गई है। वह शायद इस लिए कि पूरी दुनियां अंधाधुंध विकास के फेर में धरती का पर्यावरण बदतर कर आबोहवा को खतरनाक स्तर पर पहुंचा दिया है। शुरुवात विकसित देशों ने की। परिणाम अब सभी भुगत रहे है। अनादि काल से भारत अपने प्रकृति प्रेम के लिए पहचान जाता रहा है। लेकिन खेद है कि आज दुनिया के 15 सबसे प्रदूषित शहरों में 10 पर भारतीय शहरों के नाम लिखें है। पहाड़ी एवं दुर्गम क्षेत्रों को यदि अलग कर दिया जाय तो शायद ही कोई भारतीय शहर/नगर वायु शुद्धता के मानक पर खरा उतरे। हमने प्राकृतिक संशाधनों का बेजा दोहन कर इसके स्वरूप को बिगाड़ दिया है।
भारत जब तक क्षिति जल पावक गगन समीरा,पंच रचित अति अधम शशीरा की अवधारणा को मानते हुए उक्त पंच तत्व में देवत्व के दर्शन करता था, तब तक यहां जलवायु और पर्यावरण की हालत नही बिगड़ी। यह पंच तत्व ही भारत के भगवान थे।इनका रक्षण,पोषण तथा संरक्षण ही पूजा थी। आज विकास की दौड़ ने हमसे जीवनदायी शुद्ध हवा,शुद्ध जल एवं स्वच्छ धरती का बुनियादी हक भी छीन लिया है। अभी देर नही हुई है। अभी भी पहले जैसा सब कुछ हो सकता है,लेकिन जिसने बिगड़ा है उसी को बनाना भी होगा।
अपनी आबोहवा को उसका प्राकृतिक रूप-स्वरूप देने के लिए हम सबको आगे आना होगा।अपनी गैर जरूरी इच्छाओं,प्लास्टिक एवं अनेक रसायनिक पदार्थों की तिलांजलि देनी होगी। धरती माता का हरीतिमा से श्रंगार करना होगा। जल की बर्बादी रोकना तथा बारिश की बूंदों को सहेजना होगा। आज फिर से पुराने दौर में लौटने की जरूरत है। हमें फिर सें पुराने ईको फ्रेंडली व्यवसायों से जुड़ना होगा जो न सिर्फ लोगो को रोजगार देते रहें है अपितु प्रकृति को बिना नुकसान पंहुचाये हमारी जरूरतों की भी पूर्ति करते रहें।
याद रखें पृथ्वी,वायु,भूमि और जल हमें विरासत में नही मिलें है ये आने वाली पीढ़ी के कर्ज के रूप में है। इसलिए हमें कम से कम उसी रूप में उन्हें सौपना चाहिए जिस रूप में ये हमे प्राप्त हुए है,अन्यथा आने वाली पीढ़ी हमे माफ नही करेगी।
पेड़ को लगाना है
वायु प्रदूषण से पर्यावरण को बचाना है।
लेखक-
राजेन्द्र वैश्य
अध्यक्ष-पृथ्वी संरक्षण, रायबरेली
(उत्तर प्रदेश मूल के रहने वाले राजेंद्र ने जल सरंक्षण और वृक्षारोपड़ के क्षेत्र में सराहनीय कार्य किये हैं। अपने संस्थान के जरिये राजेंद्र हर वर्ष कम से कम 300 वृक्ष लगाते हैं और उनके बड़े होने तक उनसे जुड़े हर दायित्व का निर्वहन करते हैं।)