नज़रिया

मैं डलमऊ हूँ.. मैं बीते कल का एकमात्र गवाह हूँ- आशुतोष

मैं डलमऊ हूं.


मेरे चाहने वाले अक्सर बोलते हैं कि मैं बहुत खूबसूरत हूं मेरी खूबसूरती की सादगी उनकी रगो में बस गई है जैसे-जैसे मेरी उम्र बढ़ रही है वैसे वैसे खूबसूरती जवान हो रही है। मुझे यह तो नहीं पता उम्र बढ़ने के साथ मेरी खूबसूरती जवान हो रही है या नहीं.. हां यह पता है मैं गवाह हूं उस समय का जब दालभ्य जैसे महर्षि ने अपने तप से एक धर्म एक आस्था का ऐसा दीप जलाया जो आज भी उसी तरह प्रकाशमान है। हां मैं गवाह हूं अल्लाह के उस बंदे की जो शेरंशाह नाम से जाना गया जिसने पूरी कौम को एक माला में पिरोते हुए डलमऊ को गंगा-जमुनी तहजीब में रंग दिया।


मैं गवाह हूं गंगा के मानस पुत्र स्वामी बद्रीनारायण गिरि का जिसने माँ गंगा के जल को घी बना दिया। हां मैं गवाह हूं प्रतापी राजा राजा डालदेव का जिसके शरीर में जब तक एक कतरा भी लहू का रहा उसने मेरी आबरू की रक्षा की और मैं ही गवाह रहा उस क्षण का जब रानी ने गर्व से अपनी रक्षा के लिए अपने साम्राज्य को तिनके के समान डुबो दिया। हां मैं हूं हर उस पल का गवाह जो मेरी उम्र बढ़ती उम्र के साथ बदलता गया मैं खूबसूरत हूं या नहीं यह मुझे देखने वालों की निगाहों पर मैं छोड़ देता हूं। पर मैं बीते कल का एकमात्र गवाह हूँ.. मैं डलमऊ हूं।

यह तेरा इश्क है मेरे मेहबूब 
कि मेरा वजूद खत्म नहीं होता

लेखक-
आशू गंगतटी

द फ्रीडम स्टॉफ
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