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वट पूजन देता है प्रकृति संरक्षण का संदेश : राजेन्द्र वैश्य

उत्तर भारत मे बरगदाही अमावस्या के नाम से प्रचलित वट सावित्री पूजा एक महत्वपूर्ण पर्व है। एक महान स्त्री सावित्री की ईश्वर के प्रति निष्ठा,अनूठे बुद्धि कौशल व पति धर्म की अद्भुत शक्ति का परिचायक है। इस पूजा से जुड़ी सावित्री-सत्यवान की कथा से हम सब भली-भांति परिचित है। सावित्री की उस महाविजय के उपलक्ष्य में पुरातन काल से भारत की सुहागन स्त्रियां पति की दीर्घायु व आरोग्य के लिए ज्येष्ठ माह के कृष्ण पक्ष अमावस्या को वट सावित्रीका व्रत-पूजन करती आ रही है। धर्म शास्त्रों के अनुसार महासती सावित्री ने वट वृक्ष के नीचे ही म्रत्यु के देवता यमराज से अपने मृत पति के लिए पुर्नजीवन प्राप्त किया था। तभी से वट वृक्ष हिन्दू धर्म मे देव वृक्ष के रूप में पूज्य हो गया। 


तात्विक दृष्टि से इस कथा की मीमांसा करें तो वट पूजन के माध्यम से हमारे जीवन मे बृक्षों की उपयोगिता एवं पर्यावरण संरक्षण का संदेश मिलता है। अरण्य संस्कृति में वृक्षों को जीवंत देवता माना गया है। मत्स्य पुराण में कहा गया है कि दस गुणवान पुत्रों का पुण्य एक वृक्ष लगाने के समान है। पेड़-पौधे प्रकृति के अनुपम उपहार है, जो हमें फल-फूल देने के साथ ही हमारे उत्तम स्वास्थ्य में भी सहयोग करतें है।


वट प्रजाति के पेड़ों में बरगद के अतिरिक्त पीपल,गूलर, पाकर और अंजीर भी शामिल है। पीपल चौबीसों घण्टे ऑक्सीजन देता है तो बरगद पृथ्वी को आग का गोला होने से बचाता है। वनस्पति विज्ञानियों के अनुसार यदि बरगद के पेड़ न हो,तो ग्रीष्म ऋतु में पृथ्वी पर जीवन नष्ट हो जाएगा। मानव सहित कोई भी जीव जीवित नही रह सकता। वनस्पति विज्ञान के एक शोध के अनुसार सूर्य के ताप का 27℅ हिस्सा बरगद का पेड़ अवशोषित कर उसमें अपनी नमी मिला कर उसे पुनः आकाश को वापस देता है,जिससे बादल बनता है और वर्षा होती है। आयुर्वेद के अनुसार अनेक रोगों में इस पेड़ का औषधीय महत्व है। वटवृक्ष प्राणवायु ऑक्सीजन का बड़ा स्रोत है,तो हानिकारक ग्रीनहाउस गैसों को अधिक मात्रा में अवशोषित करने की इकाई भी है। वटवृक्ष के साथ-साथ पूरी प्रकृति से ताल मेल मिलाने का अनुपम पर्व है वट सावित्री व्रत यानी प्रकृति की पूजा ही ईश्वर की सच्ची पूजा है।

लेखक:
राजेन्द्र वैश्य, पर्यावरणविद्
अध्यक्ष-पृथ्वी संरक्षण,रायबरेली
अध्यक्ष-सहकारी संघ,डलमऊ

द फ्रीडम स्टॉफ
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