पुणे के रहनेवाले ध्रुवंग हिंगमिरे और प्रियंका गुंजिकर, दोनों ही पेशे से आर्किटेक्ट हैं, पर ये दोनों किसी भी आम आर्किटेक्ट से ज़रा हटके हैं। ध्रुवंग और प्रियंका, सिर्फ घरों को डिजाईन ही नहीं करते बल्कि उन्हें खुद घरों बनाते भी हैं। वे ऐसे आर्किटेक्चर पर काम कर रहे हैं, जिसमें इमारतें बनाने के लिए प्राकृतिक सामग्री का इस्तेमाल होता है और इस काम के लिये स्थानीय मजदूरों को रोज़गार भी मिल जाता है।
तीन साल पहले उन्होंने ‘बिल्डिंग इन मड’ की शुरुआत की और तब से लेकर अब तक, उन्होंने अपनी अलग तकनीकों का इस्तेमाल करते हुए छह घरों का निर्माण किया है। साथ ही, और तीन प्रोजेक्ट्स पर काम चल रहा है।
उदाहरण के तौर पर हाल ही में, मुंबई और पुणे के बीच स्थित कामशेत शहर के पास थोरन गाँव में उन्होंने एक घर बनाया है! जंगल के पास एक पहाड़ी ढलान पर बसे इस क्षेत्र का सबसे पहले उन्होंने मुआयना किया, ताकि वे यहाँ पर प्राकृतिक तौर पर उपलब्ध चीज़ों के बारे में जानकारी हासिल करें।
“यहाँ हमें बहुत सारे काले पत्थर मिले, जिनकी मदद से यहाँ के लोग अपने घर बनाते थे। यहाँ हमें पता चला कि भारी होने की वजह से इन्हें ऊपर उठाना मुश्किल था और इसलिए इन पत्थरों को सात फीट से ऊपर इस्तेमाल नहीं किया जा रहा था। इसके अलावा, ईंटों का इस्तेमाल किया जा रहा था क्योंकि वहां की मिट्टी बहुत अच्छी है,”
हालांकि, इन ईंटों को जोड़ने के लिए, वे सीमेंट की जगह मिट्टी के गारे का इस्तेमाल करते थे। ग्राउंड फ्लोर के लिए, वे पत्थर की चिनाई (मिट्टी के गारे के साथ काले पत्थर) करते थे। और सात फीट के बाद, स्थानीय मजदूर मिट्टी के गारे के साथ ईंटों की चिनाई करते। दो मंजिल के अलावा, मिट्टी, ईंटों और लकड़ी का इस्तेमाल कर तीसरी मंजिल पर बस एक एक छोटा सा कमरा बनाया गया था। छत के लिए पारंपरिक सागौन के बजाय ‘ऐन’ नामक स्थानीय लकड़ी का इस्तेमाल किया गया।
ध्रुवंग बताते हैं- “जब आप सागौन का उपयोग एक निर्माण सामग्री के रूप में करते हैं, तो आप एक तरह से मोनोकल्चर को बढ़ावा देते हैं। आज, हम कई वन विभाग के अधिकारियों और स्थानीय किसानों को सागौन के पेड़ लगाते हुए देखते हैं, जो कि वातावरण को नुकसान पहुंचाते हैं। इसलिए किसी एक प्रकार की लकड़ी के बजाय, हम विभिन्न प्रकार की स्थानीय लकड़ी का उपयोग करते हैं जैसे कि ऐन, हिडू, जामुल और शिवा, इत्यादि। और सबसे ऊपर, हमने मिट्टी की छत वाली टाइलों का इस्तेमाल किया।”
हालांकि, पुणे में उनका एक ग्राहक ऐसा घर चाहता था जिसका ज़्यादा रखरखाव की ज़रूरत न पड़े। यह उस ग्राहक का दूसरा घर था और इसलिए उस घर की इंटिरियर डिजाइनिंग भी इसी मुताबिक करनी थी। इस घर को भी बाकी इमारतों की तरह ही बनाया गया, लेकिन इसमें मिट्टी के गारे की जगह चूने के प्लास्टर का उपयोग किया गया था। जिससे की घर का रखरखाव ठीक रहे, क्योंकि पारंपरिक चूने के प्लास्टर को निर्माण के लिए बहुत अच्छा विकल्प माना जाता है। सीमेंट के मुकाबले यह ज़्यादा अच्छा है क्योंकि समय के साथ यह मजबूत भी होता है, जबकि कुछ सालों में ही सीमेंट के प्लास्टर में दरारें पड़ने लगती हैं।
“हमें वातावरण और ग्राहक की इच्छाओं के बीच एक संतुलन खोजना होता है। भोर के पास हमारे पहले एक प्रोजेक्ट में, ग्राहक अपने घर को थोड़ा ग्रामीण रुप देना चाहता था। इसलिए, हमने घर के भीतर प्लास्टर नहीं किया। लेकिन, कामशेत प्रोजेक्ट में, एक कम रख-रखाव वाला घर चाहिए था। इसलिए, हमने सीमेंट के बजाय चूने के प्लास्टर का इस्तेमाल किया। सीमेंट पर्यावरण के लिहाज से भी अच्छा नहीं है, जबकि चूना पूरी तरह से रिसाइकिल हो जाता है और अधिक थर्मल इन्सुलेशन वैल्यू रखता है,” ध्रुवंग ने बताया।
गर्मी के मौसम में चूना गर्मी को रोकने में मदद करता है और सर्दियों में घर को गर्म रखने में मदद करता है। जहाँ एक तरफ चूना दिन में गर्मी को सोखता है, तो वहीं रात में इससे गर्मी बाहर निकलती है। पत्थर और ईंटों के साथ चूना और मिट्टी के मिश्रण से बनीं इमारतों में हवा के आगमन-निकास की संभावना बनी रहती है। लेकिन जब आप सीमेंट का उपयोग करते हैं, तो भवन की दीवारों से हवा का आर-पार होना असम्भव है और यही कारण है कि घर अक्सर बहुत अधिक गरम हो जाते हैं।
“अपने प्रोजेक्ट के पूरा होने के बाद, हमने घर के अंदर और बाहर के तापमान का निरीक्षण किया। हाल ही में, यहाँ बाहर का तापमान 38 डिग्री सेल्सियस था, लेकिन घर के अंदर का तापमान सिर्फ़ 25 डिग्री था। ऐसे में आपको एयर कंडीशनर की भी आवश्यकता नहीं है। यहां तक कि गर्मियों में भी, सबसे ऊपर के कमरे के अलावा, हम और कहीं पंखों का भी उपयोग नहीं करते हैं,” ध्रुवंग बताते हैं।
उनका यह प्रोजेक्ट लगभग दो साल पहले शुरू हुआ था। लेकिन यहाँ एक समस्या यह थी कि जो स्थानीय मजदूर वहाँ काम कर रहे थे, वे कोई मिस्त्री नहीं, बल्कि सामान्य किसान थे। और ये किसान फसल उगाने के मौसम में अपने खेतों में लौट जाते थे। पहली मंजिल के निर्माण के बाद, मजदूरों को खेतों के लिए लिए वापिस जाना पड़ा। फिर मानसून खत्म होने के बाद, उन्होंने फिर से काम शुरू किया।
वैसे तो घर का निर्माण लगभग चार महीने में हो जाता है, लेकिन फिर इसे सभी फिनीशिंग का काम खत्म कर पूरी तरह से तैयार करने में और चार से पांच महीने लग जाते हैं।
साभार- द बेटर इंडिया