संतों के मार्गदर्शन में चल रहे श्रीराम जन्मभूमि मंदिर निर्माण के आंदोलन को फिलहाल स्थगित करके विश्व हिन्दू परिषद ने एक अति महत्वपूर्ण तथा दूरदर्शितापूर्ण कदम उठाया है। यह फैसला सवा सौ करोड़ भारतीयों की एकता को बनाए रखने एवं संसार की सबसे बड़ी भारतीय लोकतंत्र प्रणाली का सम्मान करने के लिए लिया गया है। उल्लेखनीय है कि हिन्दू नेताओं ने मंदिर निर्माण की अपनी प्रतिबद्धता को पहले से भी ज्यादा ठोस ढंग से दोहराते हुए आंदोलन को मात्र चार-पांच महीने के लिए स्थगित किया है, समाप्त नहीं किया है।
सर्वविदित है कि लोकसभा के चुनावों का बिगुल बज चुका है। श्रीराम मंदिर तथा हिन्दुत्व विरोधी तत्व आस्था के इस विषय को राजनीतिक मुद्दा बनाकर हिन्दू समाज में फूट डालकर अपनी चुनावी रोटियां सेंकने के समाजघातक कुप्रयासों में जुटे हुए हैं। ऐसे माहौल में मंदिर आंदोलन को जारी रखना एक भारी भूल होती। श्रीराम, अयोध्या एवं जन्मभूमि मंदिर चुनावी अखाड़े में फंस जाते। भारत की आत्मा और संस्कृति श्रीराम को वर्तमान चुनावी राजनीति की भेंट चढ़ जाने से विश्व हिन्दू परिषद ने बचाने का प्रयास किया है।
विश्व हिन्दू परिषद ने फिलहाल आंदोलन को ठंडे बस्ते में डालकर उन तथाकथित संतों एवं पाखंडी हिन्दू नेताओं की कुचालों को भी विफल करने का सफल प्रयास किया है, जिन्होंने 21 फरवरी को अयोध्या में जाकर 4 ईंटों की पूजा करके माहौल को बिगाड़ने की कुत्सित योजना बना रखी है। यह वही पाखंडी संत और नकली हिन्दू गुट हैं जिनका अयोध्या आंदोलन से कुछ भी लेना-देना नहीं है। इन्हें हिन्दुत्व विरोधी ताकतों का एजेंट कहने में कोई अतिष्योक्ति नहीं होगी। विश्व हिन्दू परिषद के इस ऐतिहासिक निर्णय से ऐसे सभी स्वार्थी तत्व अलग-थलग पड़ गए हैं।
समस्त भारतीयों विशेषतया हिन्दू समाज को इस समय सावधान रहने की जरूरत है। मंदिर निर्माण के लिए घड़ियाली आंसू बहाने वाले यदि चुनावी प्रक्रिया में श्रीराम, हिन्दुत्व तथा हिन्दू धर्म को घसीटने में सफल हो गए तो सारे संसार में भारतीय लोकतंत्र बदनाम होगा। यही नहीं 125 करोड़ भारतीयों के समक्ष विकास, सामाजिक सौहार्द, राष्ट्रीय सुरक्षा जैसे मुद्दों पर मतदान करने का अवसर दरकिनार हो जाएगा। आज संसार में ‘‘भारत में सफल लोकतंत्र’’ इस विषय पर रचनात्मक बहस होती है। 21 फरवरी को 4 ईंट की पूजा करने वाले कुछ मुट्ठीभर संत एवं अधकचरे हिन्दू नेताओं के कांग्रेसी-इरादों को विफल करने वाले विश्व हिन्दू परिषद के फैसले का चारों ओर स्वागत होना चाहिए।
विश्व हिन्दू परिषद ने उन राजनीतिक दलों और नेताओं की जिव्हा पर ताला लगाने की हिम्मत भी की है जो चिल्ला-चिल्ला कर कहते रहते हैं कि संघ और भाजपा को चुनाव के आते ही श्रीराम मंदिर की याद आती है। (यह अलग बात है कि भारत में चुनाव तो रोज ही होते रहते हैं) अब चुनाव के निकट आने पर मंदिर आंदोलन को स्थगित करके विश्व हिन्दू परिषद ने यह सिद्ध कर दिया है कि मंदिर के निर्माण का विषय चुनावी राजनीति से कतई सम्बन्धित नहीं है। इस विषय का सीधा सम्बन्ध 125करोड़ भारतीयों की एकता, करोड़ों हिन्दुओं की आस्था, सामाजिक/सांस्कृतिक सौहार्द और भारत की सर्वांगींण स्वतंत्रता के साथ जुड़ा हुआ है।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक आदरणीय मोहन भागवत ने स्पष्ट कहा है कि जरा धैर्य रखिए, थोड़ी और इंतजार कीजिए, मंदिर बनेगा और वहीं बनेगा। विश्व हिन्दू परिषद के कार्यकारी अध्यक्ष श्री आलोक कुमार ने भी बयान दिया है कि चुनाव के बाद सरकार किसी की भी बने हम मंदिर के आंदोलन को प्रचंड गति से आगे बढ़ाएंगे। विश्व हिन्दू परिषद के महामंत्री डॉ. सुरेन्द्र जैन ने भी बाकायदा एक पत्रकार परिषद में मंदिर निर्माण पर अपनी प्रतिबद्धता को दोहराते हुए कहा है कि आंदोलन को स्थगित किया गया है, उसे समाप्त नहीं किया गया है। हम श्रीराम मंदिर को चुनावी दलदल में नहीं फंसाना चाहते।
निश्कर्ष यही है कि राष्ट्रवादी शक्तियों ने फिलहाल चुनावों के समय आंदोलन को स्थगित करके हिन्दुत्व विरोधी अनैतिक गठबंधनीय ताकतों के षड्यंत्रों को विफल कर दिया है। विश्व हिन्दू परिषद ने ‘सरकार कोई भी बने’ यह कहकर श्रीराम जन्मभूमि मंदिर के आंदोलन को सभी राजनीतिक दलों का आंदोलन बताने की दरियादिली का परिचय भी दिया है। विश्वास रखें, श्रीराम मंदिर का निर्माण होगा, जन्मस्थान पर ही होगा, अतिशीघ्र होगा और मोदी के नेतृत्ववाली भाजपा सरकार ही मंदिर निर्माण के मार्ग को प्रशस्त करेगी।
नरेन्द्र सहगल
पूर्व संघ प्रचारक, लेखक