द फ्रीडम बकरैती

परंपराओं के नाम पर कैद ख्वातीन-ओ-हजरात को ख़त

ख्वातीन-ओ-हजरात,

परंपराओं के पिंजड़े में कैद आपकी रूह को मेरी ओर से सहानुभूति।आपने कभी सोचा कि आपके यहाँ से क्यों केवल मैकेनिक , ठेले वाले , जरीदार , टैक्सी ड्राइवर और राजमिस्त्री ही निकलते है? क्योंकि आपके यहाँ से इन्हीं लोगों के धंधों को धर्मपरस्त माना जाता है।

आपके यहाँ से ग्रैंडमास्टर इसलिए नहीं निकलेगा क्योंकि वो शतरंज खेलने मात्र से ट्रोल होने लगेगा , धर्मगुरुओं के रडार पर आ जायेगा और वो लोग कहेंगे कि हमारे धर्म में शतरंज खेलना हराम है , गुनाह है।

ग्रैंड स्लैम मास्टर क्यों नहीं आपके कौम से निकलेगा क्योंकि आपको सानिया की घुटनों से ऊपर की स्कर्ट से कोफ़्त है।अरे साहब! लोगबाग सानिया का खेल देखने जाते है।उनकी सोच पर स्कर्ट का पैबंद नहीं चढ़ा होता है।

अब दूसरी शमशाद बेगम मिलने से रही क्योंकि आपके यहाँ गाना गाने पर फ़तवें जारी कर दिए जाते है।पता नहीं सात सुरों और रागों से कैसे खुदा नाराज हो सकता है।बल्कि सूफ़ियत में तो सूफी गान इबादत का एक जरिया है।

दकियानूसी के खिलाफ़,

संकर्षण शुक्ला

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