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1 नवंबर, 1984: भारत के इतिहास की वह खूनी तारीख जब हजारों सिखों निर्दोषों को मौत के घाट उतार दिया गया था

स्पेशल डेस्क: 4 साल पहले 1 नवंबर, 1984 को भारत के इतिहास की सबसे भयानक घटना घटी थी। इंदिरा गांधी की हत्या के बाद देश भर में सिख विरोधी दंगा फैल गया था और हजारों सिखों को निर्ममता से मौत के घाट उतार दिया था। 31 अक्टूबर को इंदिरा गांधी के दो सिख बॉडीगार्ड ने गोली मारकर उनकी हत्या कर दी थी।  1984 सिख विरोधी दंगो में आज (17 दिसंबर) 34 साल बाद कांग्रेस के पूर्व सांसद सज्जन कुमार को दिल्ली हाईकोर्ट ने दोषी मानते हुए उम्रकैद की सजा सुनाई है। अदालत ने उनके अलावा तीन अन्य दोषियों की सजा 3 साल से बढ़ाकर 10 साल कर दी है। इसके साथ ही सज्जन कुमार को 31 दिसंबर तक आत्मसमर्पण करने और तब तक दिल्ली न छोड़ने का आदेश दिया है।

न्याय की जीत

इसके बाद से ही कांग्रेस पार्टी पर चारों ओर से हमले हो रहे हैं। जहां बीजेपी के नेता इसे ऐतिहासिक फैसला बताते हुए न्याय की जीत बता रहे हैं वहीं शिरोमणि अकाली दल के नेता सज्जन कुमार को फांसी की मांग कर रहे हैं। इसी बीच बीजेपी समेत अन्य पार्टियां जिसमें आम आदमी पार्टी भी शामिल है ये मांग कर रहे हैं कि सज्जन कुमार को पार्टी से निकाल दिया जाए।

भाजपा समेत शिअद और आप ने ये भी मांग की थी कि कमलनाथ को सीएम न बनाया जाए लेकिन अब कमलनाथ एमपी के सीएम का पदभार संभाल चुके हैं। मांग करने वाली पार्टियों का कहना है कि कमलनाथ की भूमिका सिख विरोधी दंगों में सामने आ चुकी है इसलिए उन्हें किसी राज्य का सीएम नहीं बनाना चाहिए। आगे पढ़िए क्या था सिख विरोधी दंगों का पूरा सच और सज्जन कुमार की असलियत।

कांग्रेसी नेताओं पर भीड़ को भड़काने और सिखों पर हमला करने का इल्जाम लगा।

ऑपरेशन ब्लू स्टार की वजह से दो सिख अंगरक्षकों ने 31 अक्टूबर, 1984 को इंदिरा गांधी की हत्या की, जिसके बाद शहर भर में दंगे फैल गए और कुछ दिन जारी रहे। पीड़ितों का कहना है कि सुल्तानपुरी, मंगोलपुरी, त्रिलोकपुरी और यमुना पार के इलाकों में सुनियोजित तरीके से सिखों को निशाना बनाया गया। दंगों के वक्त छपी खबरें बताती हैं कि राहुल के दावों में दम नहीं है। ऐसा कहा जाता है कि इतने बड़े पैमाने पर हिंसा पुलिस की मदद के बिना होनी मुमकिन नहीं थी। जगदीश टाइटलर, एच के एल भगत और सज्जन कुमार जैसे कांग्रेसी नेताओं पर भीड़ को भड़काने और सिखों पर हमला करने का इल्जाम लगा। यहां तक कहा जाता है कि कई जेल, सब-जेल और लॉकअप तीन दिन के लिए खोल दिए गए थे और अपराधियों को ‘सिखों को सबक सिखाने’ के लिए पूरी छूट दे दी गई थी।

“दिल्ली पुलिस ने दंगों के दौरान अपनी आंखें मूंद रखी थीं”

एक किस्सा यह भी है कि 31 अक्टूबर को एम्स के पास भीड़ जुटी और ‘खून के बदले खून’ के नारे लगाए गए। शाम साढ़े पांच बजे राष्ट्रपति जैल सिंह अस्पताल पहुंचे, तो भीड़ ने उनकी गाड़ी पर भी पथराव किया, क्योंकि वह सिख थे। ऐसा आरोप है कि 31 अक्टूबर की रात और 1 नवंबर की सुबह कुछ नेताओं ने स्थानीय समर्थकों के साथ मिलकर पैसा और हथियार बांटे। सीबीआई ने कोर्ट में यह बयान तक दिया कि सज्जन कुमार ने कहा था कि एक भी सिख जिंदा नहीं बचना चाहिए। जांच एजेंसी ने यह भी कहा कि दिल्ली पुलिस ने दंगों के दौरान अपनी आंखें मूंद रखी थीं, क्योंकि इसकी योजना पहले से बनाई गई थी। राहुल गांधी के बयान पर सियासी हमले भी हुए।

मोदी पर हमले से बिलबिलाई भाजपा

मोदी पर हमले से बिलबिलाई भाजपा के वरिष्ठ नेता सुब्रमण्यम स्वामी इस बात से सहमत दिखे कि मोदी दंगों के वक्त कुर्सी संभाल रहे थे, लेकिन इसी तरह जब दिल्ली में सिख विरोधी दंगे हुए, तो प्रधानमंत्री के पद पर राजीव गांधी बैठे थे, ऐसे में कांग्रेस को जवाब देना ही होगा।  राजीव गांधी ने दंगों के बाद कहा था कि ‘जब बड़ा पेड़ गिरता है, तो जमीन हिलती ही है।’ कांग्रेस के विरोधियों का कहना है कि राजीव ने इस बयान के जरिए अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ने और दंगों को सही ठहराने की कोशिश की।  स्वामी ने कहा, “वो लोग नरेंद्र मोदी को दोषी बता रहे हैं, क्योंकि वह उस वक्त (गुजरात दंगों के दौरान) मुख्यमंत्री थे। जब सिख विरोधी दंगे हुए तो प्रधानमंत्री कौन था? राजीव गांधी थे। जो उस वक्त हुआ, अगर उन्हें उस पर शर्म आती है, तो राहुल और सोनिया को अमेरिका की अदालत में जाकर सच बताना चाहिए।”

गुजरात में एसआईटी का गठन किया गया

सिख विरोधी दंगों के पीड़ितों का मुकदमा लड़ने वाले सीनियर एडवोकेट एच एस फुलका ने राहुल गांधी के इंटरव्यू पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि 2002 में हुए गुजरात दंगों की तरह 1984 दंगों के मामले में भी स्पेशल इनवेस्टिगेशन टीम का गठन किया जाना चाहिए। फुलका ने कहा, “1984 के दंगों में किसी को भी सजा नहीं हुई है। अब गुजरात में एसआईटी का गठन किया गया है। राहुल गांधीजी की पार्टी कांग्रेस एसआईटी को पूरा समर्थन दे रही है।”उन्होंने कहा, “लेकिन 84 के दंगों के मामले में देखें, तो नानावती कमिशन ने कहा था कि दिल्ली में 587 एफआईआर दर्ज की गईं, जिनमें से 241 पुलिस ने खुद ही बंद कर दीं। इसलिए दिल्ली में एसआईटी का गठन क्यों नहीं होना चाहिए?”

राहुल गांधी ने सिख विरोधी दंगों के लिए माफी नहीं मांगी

इस इंटरव्यू में राहुल गांधी ने सिख विरोधी दंगों के लिए माफी नहीं मांगी। इस बात पर उन्होंने गोलमोल जवाब दिया और बात घुमा गए। उन्होंने कहा कि वह उस समय किसी स्थिति में नहीं थी और सरकार ने अपना काम किया। लेकिन 1984 में राष्ट्रपति भवन में काम करने वाले सांसद तरलोचन सिंह ने इस बयान पर कड़ा ऐतराज जताया और कहा कि हालात बिगड़ने के बावजूद सेना नहीं बुलाई गई थी, जबकि पुलिस अपना काम ठीक से नहीं कर रही थी। उन्होंने कहा, “कई समूह ज्ञानीजी (राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह) के पास आकर गुहार लगा रहे थे कि हालात काबू में करने के लिए पुलिस को भेजा जाए, सेना को सड़कों पर उतारा जाए। दिल्ली के मामले में सेना दिल्ली कैंट में मौजूद थी, लेकिन उसे नहीं बुलाया गया।”

मोदी और उनके मंत्रियों के खिलाफ दंगों में शामिल होने का आरोप

राहुल गांधी को 2002 दंगों की पीड़ित जकिया जाफरी के बेटे तनवीर जाफरी की तरफ से जरूर कुछ समर्थन मिला। तनवीर ने कहा, “जो राहुल ने 2002 के दंगों में कहा, वही हम तभी से कह रहे हैं और मेरी मां इसके लिए अदालत में लड़ रही हैं।” उन्होंने कहा, “यह बात काफी अहमियत रखती है कि कांग्रेस के इतने वरिष्ठ नेता, जो पार्टी की तरफ से पीएम पद के दावेदार हो सकते हैं, इस तरह से सोचते हैं।” जकिया जाफरी वरिष्ठ कांग्रेसी सांसद अहसान जाफरी की विधवा है, जिनकी हत्या दंगाइयों ने कर दी थी। उन्होंने मोदी और उनके मंत्रियों के खिलाफ दंगों में शामिल होने का आरोप लगाया है। मजिस्ट्रेट जांच के बाद मोदी को मिली क्लीन चिट पर मुहर लगने के बाद जकिया जाफरी ने गुजरात उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाने का फैसला किया है।

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