नई दिल्ली: सरकार से चल रही तल्खी की खबरों के बीच आरबीआइ के गवर्नर डॉ. उर्जित पटेल ने एक अप्रत्याशित कदम उठाते हुए सोमवार को अपने पद से इस्तीफा दे दिया। पटेल ने वैसे तो अपने इस्तीफे के लिए व्यक्तिगत कारणों को वजह बताया है लेकिन जानकार इसे सरकार के साथ केंद्रीय बैंक के तल्ख रिश्तों से जोड़ कर देख रहे हैं। पीएम नरेंद्र मोदी और वित्त मंत्री अरुण जेटली ने पटेल को उनके बेहतर भविष्य की कामना की है। साथ ही आरबीआइ के नए गवर्नर की तलाश भी तत्काल शुरु हो गई है।
पटेल ने तकरीबन छह वर्षो तक आरबीआइ में अपन सेवाएं दी
पटेल ने बेहद संक्षेप में लिखे अपने इस्तीफे में कहा है कि, ”व्यक्तिगत कारणों से मैं तत्काल अपना पद छोड़ रहा हूं। यह मेरे लिए विशेष सम्मान की बात है कि इतने वर्षो तक मैंने आरबीआइ में विभिन्न पदों पर अपनी सेवाएं दी है। ” पटेल ने तकरीबन छह वर्षो तक आरबीआइ में अपनी सेवाएं दी है। इससे पहले वे डिप्टी गवर्नर थे लेकिन सितंबर, 2016 में पूर्व गवर्नर रघुराम राजन का कार्यकाल पूरा हुआ तो गवर्नर के तौर पर उनकी नियुक्ति की गई।
पटेल की कमी खलेगी
पीएम नरेंद्र मोदी ने पटेल की सत्यनिष्ठा की तारीफ करते हुए कहा है कि वह एक बेहतरीन विरासत छोड़ कर जा रहे हैं। पीएम ने उन्हें एक बेहद योग्य अर्थशास्त्री बताते हुए कहा है कि उनके नेतृत्व में आरबीआइ ने वित्तीय स्थायित्व लाने में अहम योगदान दिया है। मोदी ने यह भी कहा है कि पटेल की कमी खलेगी। जबकि वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा है कि बतौर आरबीआइ गवर्नर और डिप्टी गवर्नर पटेल ने देश की जो सेवा की है वह प्रशंसनीय है।
विवाद पिछले चार महीनों से सुलग रहा था
आरबीआइ और मौजूदा सरकार के बीच विवाद पिछले चार महीनों से सुलग रहा था। इस विवाद की जड़ में यह था कि क्या केंद्रीय बैंक अपनी स्वायत्तता के बावजूद सरकार की इच्छाओं को पूरी तरह नजरअंदाज कर सकता है? इसे लेकर अलग-अलग मत थे। पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू से लेकर पिछले प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह तक का रुख लगभग वही रहा है जो वर्तमान सरकार का था।
यहां से हुई शुरुआत
इसकी शुरूआत ऐसे हुई कि वित्त मंत्रालय की तरफ से आरबीआइ को यह पत्र लिखा गया कि उसके पास आरबीआइ एक्ट की धारा 7 के तहत कदम उठाने का हक है। इस धारा के तहत केंद्र सरकार अपनी बातें मनवाने के लिए आरबीआइ पर दबाव डाल सकता है। इसके बाद आरबीआइ के बोर्ड की 05 अक्टबूर, 2018 को हुई बैठक में सरकार के प्रतिनिधियों की तरफ से कुछ प्रस्ताव लाये गये जिसको लेकर पटेल व आरबीआइ के तमाम डिप्टी गवर्नर बहुत सहमत नहीं थे।
माना जाता है कि डिप्टी गवर्नर विरल आचार्या की तरफ से 26 अक्टूबर, 2018 को दिया गया भाषण पटेल व उनकी टीम की तरफ से मामले को सार्वजनिक करने की कोशिश थी। इसमें आचार्या ने परोक्ष तौर पर इस बात के संकेत दिए थे कि केंद्र सरकार की तरफ से आरबीआइ के कार्य क्षेत्र में हस्तक्षेप किया जा रहा है। इसके बाद सरकार की तरफ से 31 अक्टूबर को बयान दे कर बढ़ रहे विवाद को आरबीआइ को ही जिम्मेदार ठहराया और कहा कि, जनहित के मुद्दों पर वह समय समय पर आरबीआइ को सुझाव देने का काम जारी रखेगा।
उसके बाद 19 नवंबर, 2018 को आरबीआइ के निदेशक बोर्ड की बैठक में सरकारी प्रतिनिधियों की तरफ से कई बातें रखी गई। सरकार की तरफ से जो मांगे रखी गई उस पर आरबीआइ बोर्ड ने एक अलग समिति गठित करने का फैसला किया। इसके पहले सरकार की तरफ से आरबीआइ गवर्नर को एक पत्र भी लिखा गया था जिसमें आरबीआइ एक्ट की धारा 7 को लागू करने की बात कही गई थी। इस धारा के मुताबिक केंद्र सरकार आरबीआइ पर अपनी बात मनवाने का दबाव डाल सकती है।