साहित्य

प्रेम शाश्वत है!

 

निधि चौहान एक स्कूल में शिक्षिका है और सक्रिय तौर पर सामाजिक-मनोविज्ञान और लोक महत्व के विषयों पर कविता-लेख लिखती रहती है। आज हम अपने साहित्य अंक में इनकी स्त्री व्यथा पर लिखी एक कविता से आप सबको रूबरू करा रहे है।

 

प्रेम

तुमको खोजना पड़ा प्रेम
उन पुस्तकों में।
जो लिखी थी किसी ने
कल्पनीय या हक़ीक़त जैसी

तुमको खोजना था प्रेम खुद में
जहाँ मुकम्मल होता हैं
प्रेम किसी से।
यादों और ख्वाबों में,
बिछड़न जैसा कुछ होता नही
क्योंकि जिस्म में रूह की तरह
ही बसता है प्रेम।

प्रेम में जरूरत नही समय की
वो आता हैं तुम्हारे जीवन में।
और बना लेता हैं अपनी जगह

और छोड़ देता है छाप
मुखध्वनियों के रूप में।
तुम्हारे मुखार बिंदु से निकले
प्रेम के वो शब्द
अमर रहते है ब्रम्हांड में,
हमारे जहन की तरह।

प्रेम में किसी का स्पर्श सदैव
महसूस होगा अपनी उंगलियों और लबों पर।
जब डूब कर प्रेम में
तुम रूह का समर्पण कर दोगे
क्योंकि रूह पर लगे,
छापे अमिट होते हैं।

प्रेम में प्राण सदैव कैद होते हैं
एक दूसरे के ज़िस्म में
कभी प्रेम में संलिप्त होकर
उस पराकाष्ठा को महसूस करना था।

क्योकि प्रेम में कैद होने जैसा
कुछ है ही नही
बिल्कुल वैसे ही जैसे
राधा कृष्ण का अलग न होना।

हम बाँध सकते है किसी को भी
खुद से अलग होकर
उसके शब्द, खुशबू, स्पर्श, स्नेह में।

क्योंकि प्रेम की सम्पूर्ण व्याख्या में
सिर्फ पाना होता है।
खुद को खोकर किसी और को।

तो अलगाव होता नही
किसी से बिछुड़ कर
क्योकि बन कर प्रेम वो
पनपता रहता है भीतर
हमारे जीवन की तरह।

 

निधि चौहान

 

 

 

 

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