नज़रिया

जल दिवस पर विशेष- मर रहा है हमारी आंखों का पानी भी- राजेंद्र वैश्य

आज विश्व जल दिवस है। पानी को बचाने का संकल्प करने एवं पानी के महत्व को जानने का दिन। पानी का मोल प्यास लगने पर ही मालूम पड़ता है। कोई भी पेय पदार्थ पानी का विकल्प नही बन पाता। गला तर तभी होता है जब पानी की बूंदे हलक के नीचे उतरती है। पूरी दुनियां पानी से पीड़ित है। समस्या दोहरी है। एक तो पेयजल है नहीं जो है वह दूषित होता जा रहा है। यह दोनों काम वही कर रहे है जो उसके सबसे बड़े उपभोक्ता है,अर्थात हम सब। जो जितना ज्यादा समृद्ध है,पानी के मामले में उतना ही गरीब है। आंकड़ो के मुताबिक दुनियां के 2.1 अरब लोगों को शुद्ध पेयजल मुहैया नही हो पा रहा है। वैज्ञानिक अविष्कारों और यांत्रिकी के बल पर आज हम जहां मर्जी पानी पैदा कर लेते है। पानी की बढ़ती किल्लत ने बता दिया कि हमारा तरीका ठीक नही है। इस अनमोल प्राकृतिक संसाधन का दुरुपयोग उचित नही है। गर्मियों की छोड़िए,अब यह समस्या सदाबहार हो चली है।

the freedom news

दक्षिण अफ्रीका का पश्चिमी केप राज्य, सन 2015 से सूखे की चपेट में है। सूखे का सर्वाधिक त्रास लगभग 45 लाख की आबादी वाला नगर केप टाउन भोग रहा है। नगर को पानी की पूर्ति करने वाले निकटस्थ छः बड़े बाँधों में पानी की गम्भीर कमी है। पानी की कमी को पूरा करने की असमर्थता और विकल्पहीनता के कारण नगर की मेयर पेट्रिका डी लिली (Patricia de Lille) ने 14 अप्रैल 2018 के बाद से नगरवासियों को जल प्रदाय करने में असमर्थता व्यक्त की है। यह सम्भवतः दुनिया का पहला प्रकरण है जिसमें नगर की सरकार, अपने सामाजिक दायित्वों से पीछे हट रही है। 11 फरवरी 2018 की बीबीसी की रिपोर्ट बताती है कि केप टाउन के अलावा दुनिया में 11 और शहर हैं जो आने वाले सालों में पेयजल संकट की अकल्पनीय जद में आएँगे। उन नगरों का संकट केप टाउन जैसा होगा। ये शहर हैं साओ पालो (Sao Paulo), ब्राजील, बंगलुरु (भारत), बीजिंग, कैरो, जकार्ता, मास्को, इस्तांबूल, मेक्सिको नगर, लंदन, टोकियो और मियामी।

भारत का बंगलुरु दूसरे नम्बर पर है। बीबीसी की रिपोर्ट बताती है कि बंगलुरु का 50 प्रतिशत पानी पुरानी पड़ चुकी खस्ताहाल पाइप लाइनों के कारण बर्बाद होता है। नगर की किसी भी झील का पानी पीने योग्य नहीं है। लगभग 85 प्रतिशत झीलों के पानी को केवल सिंचाई या औद्योगिक इकाइयों को ठंडा करने में ही प्रयुक्त किया जा सकता है। कहानी, किसी हद तक, अनदेखी की प्रतीत होती है। इमरजेंसी सेवाएँ देने वाले डब्ल्यूडब्ल्यूएफ के फ्रेश वाटर मैनेजर क्रिस्टिन कोल्विन कहते हैं कि वह स्थिति भयावह होगी, जब लोग नल की टोटी खोलेंगे और उससे एक बूँद पानी नहीं गिरेगा।

बेपानी होती दुनिया में साल दर साल हमारी आंखों का पानी भी मरता जा रहा है। कोई सबक सीखने को तैयार नहीं है। वक्त अभी है सुधरने का और सुधारने का। पानी को अनमोल समझने का और समझाने का। संकल्प लेने का और संकल्प दिलाने का। आइए,आज हम सब संकल्प लें कि पानी की एक बूंद भी बर्बाद नही होने देंगे और फिर से पानीदार होने की राह पर चलेंगे।

अगर करना है अपने भविष्य को सुरक्षित
करना होगा बून्द-बून्द पानी को संरक्षित

लेखक-
राजेन्द्र वैश्य 

पर्यावरणविद् एंव अध्यक्ष-पृथ्वी संरक्षण

copyright reserved

(सम्पादन का अधिकार सुरक्षित है और बिना अनुमति के अख़बार पत्रिका या किसी वेबसाइट पर प्रकाशन करने की इजाज़त नहीं है।)

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *