रायबरेली: गंगा के अपार प्रदूषण, उसके व्यवसायीकरण और सफाई के एक के बाद एक अभियानों के बीच केंद्र सरकार का दावा है कि मार्च 2019 तक गंगा 80 फीसदी तक साफ हो जाएगी। गंगा की गंदगी को देखकर ये लक्ष्य उम्मीद से अधिक संदेह पैदा करता है। लेकिन सब कुछ सरकार के भरोसे नहीं किया जा सकता है इसी की मिसाल देते हैं डलमऊ के लोग। हर रविवार की तरह इस बार भी डलमऊ के शुकुल घाट पर रविवार सुबह गंगा स्वच्छता अभियान चलाया गया। इस दौरान घाट पर फैली गंदगी को हटाया गया। सफाई के साथ ही कार सेवकों ने लोगों को स्वच्छता के लिए जागरूक भी किया गया।
गंगा कार सेवकों ने तट पर फैली पॉलीथिन व अन्य दूषित सामग्री को बाहर निकाला
स्वच्छता अभियान के तहत गंगा कार सेवकों ने तट पर फैली पॉलीथिन व अन्य दूषित सामग्री को बाहर निकाला, जिसे नगर पंचायत के कर्मचारियों ने निस्तारित किया। स्वच्छता अभियान के दौरान डलमऊ बड़ा मठ के महामंडलेश्वर स्वामी देवेंद्रानंद गिरि ने स्वच्छता अभियान में सहभागिता कर रहे गंगा कारसेवकों का उत्साहवर्धन करते हुए कहा कि पृथ्वी पर मां गंगा साक्षात देवी के रूप में प्रवाहित हो रही हैं। जिनके आंचल को स्वच्छ रखना हम सबका नैतिक कर्तव्य है।
करीब 21 हजार करोड़ रुपए की विराट कार्ययोजना
13 मई 2015 को नमामि गंगे परियोजना को कैबिनेट ने मंजूरी दी थी। पांच साल की अवधि के भीतर गंगा की सफाई के लिए ये करीब 21 हजार करोड़ रुपए की विराट कार्ययोजना थी। असल में गंगा की सफाई के लिए एक बहुआयामी नजरिया चाहिए और सबसे महत्त्वपूर्ण काम ये है कि गंगा में ताजा पानी का प्रवाह बना रहे जिससे प्रदूषण में गिरावट आ सके। इस बीच केंद्र सरकार ने ये भी कहा है कि गंगा पर नए बांध नहीं बनाए जाएंगे। लेकिन कॉरपोरेट जगत की महत्वाकांक्षी परियोजनाएं नए रास्ते बना ही लेती हैं। पिछले दिनों डॉयचे वेले के एक ब्लॉग में बताया गया था कि किस तरह गंगा जल मार्ग के लिए भारी निवेश किया जा रहा है और बहुराष्ट्रीय स्तर पर कंपनियां वाराणसी से हल्दिया तक गंगा वॉटर वे पर काम शुरू कर रही हैं।