डलमऊ : डिजीटल होते इंडिया में मोदी सरकार ने बैंकों को भी डिजीटल करने के लिए एड़ी चोट का जोर लगा रखा है। मगर इन्हीं डिजीटल होती बैंकों में संवेदनाएं मरती जा रही हैं। कुर्सी पर बैठे लोगों को ना लोगों का दर्द समझ आता है ना उनकी समस्याएं। इसी संवेदनहीनता का वाक्या सामने आया है रायबरेली की डलमऊ तहसील में। डलमऊ कोतवाली क्षेत्र के भीम गंज निवासी लुलई (60) झोपड़ी में अकेले जीवन यापन करता था। वह दिव्यांग था और गांव-गांव भीख मांगकर अपना पेट पालता था। जो पैसा बचता था, वह मुराई बाग कस्बे में स्थित बैंक आफ बड़ौदा की शाखा में जमा कर देता था। एक-एक रुपये भीख मांगकर जोड़े। पेट काटकर ये रकम बैंक में जमा की। यह सोचकर कि बुढ़ापे में काम आएगी। जब बुढ़ापे में बीमारी ने घेरा तो वह अपनी गाढ़ी कमाई लेने बैंक पहुंचा। मगर बैंक कर्मियों को इस वृद्ध पर तरस नहीं आई। गुरुवार को उसकी बैंक के सामने ही तड़प-तड़प कर मौत हो गई।
बैंक कर्मियों पर लापरवाही का आरोप
पिछले कुछ दिनों से लुलई बीमार चल रहा था। भाई के परिवार वाले उसकी देखभाल कर रहे थे। गुरुवार को अचानक उसकी हालत ज्यादा बिगड़ गई। उसे सांस लेने में तकलीफ हो रही थी और खूनी दस्त आ रहे थे। लुलई के बेहतर इलाज के लिए पैसों की जरूरत पड़ी। परिवार के लोग उसे लेकर दोपहर एक बजे बैंक पहुंचे। दिव्यांग लुलई बैंक के बाहर कराह रहा था। परिजनों ने बैंक कर्मियों को बताया कि लुलई की हालत ठीक नहीं है। कृपया अंगूठे लगवाकर रकम निकालने में मदद कर दें। लेकिन साहब लोगों ने उनकी एक न सुनी। काफी देर तक इंतजार के बाद भी कोई परिणाम नहीं आया। उल्टे, लुलई की बैंक के सामने ही जान चली गई। उसके भाई राम आधार ने बताया कि अगर समय से उसे उपचार मिल जाता तो शायद आज लुलई जीवित होता। ग्रामीणों किशन, कल्लू, राजेश, हरिचंद आदि ने बैंक कर्मियों पर लापरवाही का आरोप लगाते हुए कहा कि हम सबने उपचार कराने के लिए कई बार साहब से मिन्नतें कीं लेकिन किसी भी बैंक कर्मी ने हमारी बातों को गंभीरता से नहीं लिया।
SDM हैं अंजान
बैंक ऑफ बड़ौदा शाखा मुराई बाग के मैनेजर अंतिम निगम ने बताया कि बुजुर्ग अचेत अवस्था में आया था। इस लिए हस्ताक्षर प्रमाणित नहीं किए गए। उसके खाते में 55 हजार रुपये जमा हैं। वहीं, डलमऊ उपजिलाधिकारीजीतलाल सैनी ने बताया कि मामला संज्ञान में नहीं है। शिकायत मिलने पर कार्रवाई की जाएगी।