रायबरेली: यह कहने में कोई अतिशयोक्ति नहीं है कि वर्तमान में भारत वैश्विक अर्थव्यवस्था में एक ऐसा चमकता हुआ तारा है जिसके प्रकाश से आने वाले वर्षों में कई क्षुद्र ग्रह रौशन होंगे। सकल घरेलू उत्पाद में लगातार वृद्धि हो रही है, युवा मानव संसाधन विकास को अभूतपूर्व गति देने को तैयार हैं, बढ़ता प्रत्यक्ष विदेशी निवेश इस बात का सूचक है कि भारत भूमंडलीकरण का इष्टतम लाभ ले रहा है, और ‘मेक इन इंडिया’ जैसे अभियानों के माध्यम से देश को औद्योगिक उत्पादन का केंद्र बनाए जाने की दिशा में निरंतर प्रगति हो रही है। लेकिन, इतना कुछ करने के बाद भी यदि कुछ समस्याओं का समाधान नहीं किया गया तो भारत विकास के पथ पर औंधे मुँह गिरेगा। इस समय हमारे सामने चुनौतियों का एक पहाड़ खड़ा है, और इन सब में एक बड़ी चुनौती कुपोषण की है।
रायबरेली में हर दसवां बच्चा कुपोषित
उत्तर प्रदेश का वीवीआईपी जिला रायबरेली में जागरूकता के अभाव के कारण हर दसवां बच्चा कुपोषित है। जिले में लगभग 30 हजार बच्चे इस वर्ष अतिकुपोषित चिह्नित किए गए हैं। 90 हजार से ज्यादा बच्चे कुपोषित हैं। इनके स्वास्थ्य लाभ के लिए आंगनबाड़ी केंद्रों पर पौष्टिक दलिया वितरित की जा रही हैं। साथ ही हॉट कुक्ड योजना भी शुरू की गई, जिसमें केंद्र पर ही बच्चों को गर्म पौष्टिक आहार दिया जा सके। तमाम दावों के बावजूद व्यवस्था धरातल पर नहीं आ सकी है।
बच्चों में रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती
कुपोषण बच्चों के शारीरिक और मानसिक विकास को बाधित करता है। जन्म से लेकर 5 वर्ष की आयु तक के बच्चों को भोजन के जरिये पर्याप्त पोषक आहार न मिलने के कारण उनमें कुपोषण की समस्या जन्म ले लेती है। इसके परिणाम स्वरूप बच्चों में रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है और शरीर में विकार उत्पन्न होने लगते हैं।
कई तरह की बीमारियों के शिकार बन जाते
शरीर के लिए आवश्यक संतुलित आहार लंबे समय तक नहीं मिलने से बच्चों और महिलाओं की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है, जिससे वे आसानी से कई तरह की बीमारियों के शिकार बन जाते हैं। बच्चों और स्त्रियों के अधिकांश रोगों की जड़ में कुपोषण ही होता है। स्त्रियों में रक्त की कमी या घेंघा रोग अथवा बच्चों में सूखा रोग या रतौंधी और यहा तक कि अंधत्व भी कुपोषण के ही दुष्परिणाम हैं।
एनीमिया नवजातों के कुपोषित होने की सबसे बड़ी वजह
महिलाओं में खून की कमी यानी एनीमिया की बीमारी नवजातों के कुपोषित होने की सबसे बड़ी वजह बन रही है। गर्भ धारण होते ही खानपान का ध्यान देने पर प्रसूता स्वस्थ्य शिशु को जन्म देती हैं। शिशु को स्तनपान कराने पर वह कुपोषण की जद में नहीं आता। जैसे-जैसे बच्चा बड़ा हो, उसी हिसाब से उसको पौष्टिक भोज्य पदार्थ देने की आवश्यकता होती है। फास्टफूड भी कुपोषण का एक बड़ा कारक बनकर सामने आए हैं।
सरकार बदलने के साथ योजनाएं भी बदल जाती
कुपोषित बच्चों के लिए सरकार बदलने के साथ योजनाएं भी बदल जाती हैं। प्रदेश की पिछली सपा सरकार ने आंगनबाड़ी केंद्रों पर हौसला पोषण योजना की शुरुआत की थी। इसमें बच्चों को दूध और फल दिया जाना था। पूरे प्रदेश में इस योजना का शानदार आगाज किया गया लेकिन योजना अंजाम तक नहीं पहुंची और आगाज के साथ ही धरातल में दम तोड़ गई। इसी प्रकार योगी सरकार में हॉट कुक्ड योजना शुरू की गई थी लेकिन इस योजना का क्रियान्वयन भी सही ढंग से नहीं हो पा रहा है।
चना, अरहर, मूंगफली आदि फसलों की पैदावार बहुत कम
मोटे अनाज में प्रचुर मात्रा में पौष्टिकता मिलती है लेकिन अब गांवों में इनका उत्पादन बहुत कम होता है। इसके पीछे जंगली और आवारा पशु बड़े कारक हैं। मोटे अनाज का उत्पादन सरल और कम लागत का होने के बावजूद किसान अब इसका उत्पादन नहीं करते हैं। चना, अरहर, मूंगफली आदि फसलों की पैदावार बहुत कम हो गई है। मूंगफली जंगली पशु सियार खा जाते हैं। वहीं, चना, अरहर की फसल को नील गाय और आवारा जानवर नष्ट कर देते हैं। मोटे अनाज का उत्पादन खत्म होने के कारण इसका इस्तेमाल भी कम हो गया है।
एक्सपर्ट की राय
डॉ आकांक्षा बताती हैं कि शून्य से छह माह तक के बच्चे को सिर्फ मां का दूध ही देना चाहिए। पानी देना भी नुकसानदायक साबित हो सकता है। छह माह से एक साल तक के बच्चों को मां के दूध के साथ ऊपर का दूध दिया जा सकता है। इसके अलावा उबला आलू, उबला अंडा और घुटी हुई दाल देनी चाहिए। अगर बच्चा स्वस्थ है तो रात के वक्त दूध देना बहुत जरूरी है। एक से दो साल तक के बच्चों को छोटी कटोरी में आटा और बेसन का मिला हुआ हलवा देना चाहिए। ये बहुत पौष्टिक होता है। इसके अलावा मूंगफली, चना, गेहूं भूनकर पीसकर दूध या पानी में मिलाकर बच्चों को दिन में चार या पांच बार देना चाहिए। दो से पांच वर्ष के बच्चों को पौष्टिक भोजन के साथ गुड़ की पट्टी देनी चाहिए। खाना इकट्ठे देने के बजाय दो या चार घंटे के अंतराल में देना ज्यादा फायदेमंद है।