देश में दुष्कर्म के सर्वाधिक मामलों के संदर्भ में अव्वल रहने वाला मध्य प्रदेश अब दुष्कर्म पीड़िताओं को त्वरित न्याय दिलाने के लिए चर्चा में है। प्रदेश में पिछले आठ माह में दुष्कर्म के 14 मामलों में जिला न्यायालयों ने दुष्कर्मियों को फांसी की सजा सुनाई है। मंदसौर में सजा के 57 दिन पहले आठ वर्षीय मासूम के साथ हुए दुष्कर्म और हत्या के जघन्य मामले में दो आरोपियों को फांसी की सजा सुनाई गई है। इस मामले में पुलिस ने घटना के 42वें दिन चालान पेश कर दिया और अदालत ने 15 दिन के भीतर सजा सुना दी। इस तरह के मामलों में देश के अन्य राज्यों में इतनी तेज कानूनी प्रक्रिया दिखाई नहीं दे रही है। जब मध्यप्रदेश में तीन माह के भीतर 14 मामलों में दुष्कर्मियों को सजा सुनाई जा सकती है, तो अन्य राज्यों में ऐसा संभव क्यों नहीं हो पा रहा है। कटनी में तो इसी तरह के एक मामले में 13 दिन के अंदर सभी कानूनी प्रक्रियाएं पूरी करके आठ दिन के भीतर चालान पेश कर दिया गया और अदालत ने लगातार पांच दिन सुनवाई कर पीड़िता को त्वरित न्याय दिलाकर इतिहास रचने का काम किया था।
शिवराज सिंह का सही फैसला
मध्य प्रदेश में ऐसा इसलिए संभव हो रहा है, क्योंकि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने ही 12 साल से कम उम्र की बच्चियों के साथ दुष्कर्म के मामले में फांसी की सजा का प्रावधान किया था। बाद में इस कानून को अन्य राज्यों ने भी अपनाया और अब तो केंद्र सरकार ने भी नाबालिग बालिकाओं के साथ दुष्कर्म व हत्या के अपराध में फांसी की सजा का प्रावधान कर दिया है। वैसे निचली अदालतों से सजा मिलने के बाद भी ऐसे मामलों में फांसी देने में विलंब हो रहा है। देश की राजधानी दिल्ली में हुए निर्भया कांड के मामले में करीब पौने छह साल बाद भी आरोपियों को फांसी नहीं दी जा सकी है, इसलिए जरूरी है कि सजा पाए इन मामलों की अपील जब उच्च और उच्चतम न्यायालय में हो तो वे भी प्रकरण का त्वरित निराकरणकरें। वरना निचली अदालतों से हुए त्वरित न्याय का कोई अर्थ नहीं रह जाएगा।
बलात्कार के मामले में भी मध्य प्रदेश अव्वल
दुष्कर्म मामलों में त्वरित न्याय हो जाने का सिलसिला चल निकलने के बाद भी दुष्कर्म की घटनाएं लगातार सामने आ रही हैं। मध्य प्रदेश भी इसमें पीछे नहीं है। एनसीआरबी के आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2017 में देश में 28,947 महिलाओं के साथ दुष्कर्म की घटनाएं सामने आईं। इनमें से 4,882 को मध्य प्रदेश में अंजाम दिया गया। यही नहीं नाबालिग बालिकाओं के साथ बलात्कार के मामले में भी मध्य प्रदेश अव्वल है। प्रदेश में ऐसे 2,479 मामले सामने आए हैं, जिनमें महिला का सहकर्मी, अन्य शासकीय कर्मचारी, आइएएस, आइपीएस, आइएफएस अधिकारी और ऐसे गैर-सरकारी संगठनों के प्रमुख भी शामिल हैं, जो महिला और बालक-बालिकाओं के सरंक्षण का ही काम कर रहे हैं। हाल ही में भोपाल में एक ऐसे ही संगठन द्वारा मूक-बधिर बच्चियों के साथ यौन दुराचार का मामला सामने आया है।
लगभग सभी बाल संरक्षण गृहों में लड़कियों के साथ यौन उत्पीड़न
टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज की रिपोर्ट में दावा किया गया है कि बिहार में चलने वाले लगभग सभी बाल संरक्षण गृहों में लड़कियों के साथ यौन उत्पीड़न हो रहा है। सौ पेज की इस रिपोर्ट में ब्रजेश ठाकुर द्वारा मुजफ्फपुर में संचालित संरक्षण गृह में यौन उत्पीड़न और हिंसा के नजरिये से गंभीर बताया गया था। यहां की 34 लड़कियों ने दुष्कर्म होने की शिकायत की थी। इस मामले में बिहार की समाज कल्याण मंत्री मंजू वर्मा को इस्तीफा भी देना पड़ा है। साफ है कि सरकारी मदद से जो बाल संरक्षण गृह, छात्रवास चल रहे हैं, वहीं सामूहिक यौन-शोषण का अड्डा बनते दिख रहे हैं। विडंबना है कि जिन उच्च शिक्षित लोगों को बालक-बालिकाओं की सुरक्षा की जिम्मेदारी सौंपी गई है, वही आदमखोर रूपों में सामने आ रहे हैं। इस तरह के मामलों में दुर्भाग्यपूर्ण पहलू यह भी है कि जो मामले हाइ- प्रोफाइल हैं उन्हें राज्य सरकारें जांच के बहाने टाल रही हैं।
दुष्कर्म में फांसी का कानून
इससे ऐसा लगता है कि मध्य प्रदेश में दुष्कर्म से जुड़े जिन मामलों में त्वरित न्याय सामने आया है, वह इसलिए संभव हुआ है, क्योंकि सभी 14 मामलों के आरोपी कम पढ़े-लिखे होने के साथ गरीब हैं, लिहाजा उनमें न्याय प्रक्रिया को प्रभावित करने की क्षमता नहीं है अन्यथा इन मामलों में भी त्वरित न्याय असंभव था। मध्य प्रदेश में ये मामले मुकाम तक इसलिए भी पहुंच पा रहे हैं, क्योंकि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान महिलाओं के मामले में अतिरिक्त संवेदनशील हैं। उन्हीं के कार्यकाल में बच्ची के जन्म लेने के साथ उसकी आर्थिक सुरक्षा व शिक्षा के ठोस उपाय किए गए हैं। मध्य प्रदेश ऐसा पहला राज्य है, जहां नाबालिग के साथ दुष्कर्म में फांसी का कानून वजूद में लाया गया।