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प्रमोशन में आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट सख्त, पूछा क्या IAS के पोते को भी माना जाएगा पिछड़ा?

नई दिल्ली :  सुप्रीम कोर्ट ने उच्च पदों पर आसीन अधिकारियों के बच्चों को सरकारी नौकरी में प्रोन्नति में आरक्षण का लाभ देने के औचित्य पर गुरुवार को सवाल उठाया। अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति को प्रमोशन में आरक्षण से संबंधित मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कई सवाल किए। शीर्ष अदालत ने पूछा कि यदि एक आदमी रिजर्व कैटिगरी से आता है और राज्य का सेक्रटरी है, तो क्या ऐसे में यह तार्किक होगा कि उसके परिजन को रिजर्वेशन के लिए बैकवर्ड माना जाए? दरअसल, सुनवाई करने वाली सुप्रीम कोर्ट की पीठ इस बात का आकलन कर रही है कि क्या क्रीमीलेयर के सिद्धांत को एससी-एसटी के लिए लागू किया जाए, जो फिलहाल सिर्फ ओबीसी के लिए लागू हो रहा है।

फैसले पर पुनर्विचार की मांग

गुरुवार को दिनभर चली सुनवाई में प्रोन्नति में आरक्षण का समर्थन कर रही केन्द्र सरकार और विभिन्न राज्य सरकारों और संगठनों की ओर से पेश अटार्नी जनरल केके वेणुगोपाल, पीएस पटवालिया, इंद्रा जयसिंह आदि ने एम नागराज के फैसले में दी गई व्यवस्था को गलत बताते हुए उसे दोबारा विचार के लिए संविधानपीठ को भेजे जाने की मांग की जबकि आरक्षण का विरोध कर रहे संगठनों के वकील पूर्व कानून मंत्री शांति भूषण और वरिष्ठ वकील राजीव धवन ने फैसले पर पुनर्विचार का विरोध किया। मालूम हो कि 2006 के एम नागराज फैसले में पांच न्यायाधीशों की पीठ ने व्यवस्था दी थी कि सरकार एससी एसटी को प्रोन्नति में आरक्षण देने से पहले उनके पिछड़ेपन और पर्याप्त प्रतिनिधित्व न होने के आंकड़े एकत्र करे।

एससी एसटी को प्रोन्नति में आरक्षण का समर्थन कर रहे वकीलों का कहना था कि एससी एसटी आरक्षण में क्रीमी लेयर का सिद्धांत लागू नहीं होता यह सिद्धांत सिर्फ ओबीसी में लागू होता है। एससी एसटी वर्ग अपनेआप में पिछड़ा माना जाता है। जबकि आरक्षण विरोधियों का कहना था कि ये बात ध्यान रखने योग्य है कि आरक्षण हमेशा के लिए लागू नहीं हो सकता। क्रीमी लेयर का सिद्धांत समानता पर आधारित है। ये संतुलन बनाने के लिए है। सरकार का दायित्व है कि वह संतुलन बनाए रखे।

संसद के दोनों सदनों में बगैर बहस के पारित हुआ था

राजीव धवन ने एससी एसटी को प्रोन्नति में आरक्षण का लाभ देने वाले कानून के संसद में पारित होने का ब्योरा देते हुए कहा कि ये कानून संसद के दोनों सदनों में बगैर बहस के पारित हुआ था। उन्होंने कहा कि आरक्षण के खतरनाक परिणाम दिख रहे हैं। उन्होंने इस बारे में गुजरात और गुर्जर आंदोलन का हवाला दिया। धवन ने कहा कि गुर्जर ओबीसी आरक्षण नहीं चाहते बल्कि एससी एसटी आरक्षण चाहते हैं।

धवन का कहना था कि नागराज का फैसला बिल्कुल सही है उस फैसले के पीछे की पृष्ठभूमि और उसमे दी गई व्यवस्था का बारीकी से विश्लेषण किया जाना चाहिए। फैसले के एक दो पैराग्राफ को देखकर कोई निर्णय नहीं लिया जा सकता। उन्होंने कहा कि इंद्रा साहनी के फैसले में कहा गया था कि प्रोन्नति में आरक्षण नहीं हो सकता और इसी के बाद संसद ने कानून में संशोधन करके प्रोन्नति में आरक्षण की व्यवस्था की थी।

नागराज के फैसले में संविधान में मिले बराबरी के मौलिक अधिकार के बीच संतुलन कायम करते हुए व्यवस्था दी गई है। याद रहे कि आरक्षण हमेशा के लिए नहीं है और जब तक पिछड़ेपन और प्रतिनिधित्व के आंकड़े नहीं होंगे तबतक ये कैसे जाना जाएगा कि आगे आरक्षण की जरूरत है कि नहीं। कोर्ट इस मामले में बुधवार को फिर सुनवाई करेगा।

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