नज़रिया

क्या इस्लाम के रक्षकों द्वारा कभी इन जाहिल मुल्लों के ख़िलाफ़ भी कोई फतवा ज़ारी होगा?

यह जानते हुए कि देश के ज्यादातर न्यूज़ चैनल सरकार और संघ के हिन्दुत्ववादी एजेंडे पर काम कर रहे हैं, ये मुल्ले और मौलवी इन चैनलों द्वारा आयोजित किसी बहस में डांट सुनने और अपनी बेइज्जती कराने क्यों चले जाते हैं ? महज़ कुछ हज़ार रुपयों की लालच या लोगों को अपना चेहरा दिखाने की बेसब्री ? वैसे भी इन न्यूज़ चैनलों पर नज़र आने वाले एक-दो लोगों को छोड़कर ज्यादातर मुल्ले मुझे मूर्ख ही नज़र आते हैं जिन्हें न इस्लाम और कुरान की बारीकियों का पता है और न अपनी बात सलीके से रखने का हुनर।

हमेशा ये लोग गुस्से में और चीखते-चिल्लाते ही नज़र आते हैं। यह भी हो सकता है कि इन्हें कार्यक्रम के एंकरों द्वारा जान-बूझकर गुस्सा दिलाया जाता हो ताकि इनसे कुछ अनाप-शनाप बकवा कर इनके लिए दर्शकों में वितृष्णा पैदा की जा सके। अब तो बहसों के लाइव प्रोग्राम के दौरान ही ये लोग चैनलों द्वारा लिखी हुई स्क्रिप्ट के मुताबिक पीटने और पिटाने भी लगे हैं। इन बेसिर पैर की बहसों ने एक अरसे से न्यूज़ चैनलों पर और कुछ लोगों के दिमाग में भी गृहयुद्ध का माहौल बनाकर रखा है। मुझे लगता है कि चैनल वालों ने एक पूर्वनियोजित योजना के तहत कुछ मूर्ख मुल्लों की सूची बना रखी है जिन्हें वे इस्लाम की फज़ीहत करने के लिए बार-बार अपनी बहसों में आमंत्रित करते हैं।

क्या इस्लाम के रक्षकों द्वारा कभी इन जाहिल मुल्लों के ख़िलाफ़ भी कोई फतवा ज़ारी होगा या ऐसे तमाम फतवे सिर्फ़ मुस्लिम औरतों के लिए ही सुरक्षित रखे गए हैं ?

(ध्रुव गुप्त की फेसबुक वॉल से)

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