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Mumbai 26/11 Attack: पहले आतंकी कसाब की गोली और कोर्ट में लड़ी, अब सिस्टम से लड़ रही है देविका, सरकार ने नहीं पूरे किये वादे

Mumbai: जब आप अपने सामने लाशों को गिरता देखते हैं तो फिर अल्फाज दम तोड़ने लगते हैं। लेकिन, देविका कुछ नहीं भूली। तबाही का मंजर आज भी उसे उसी तरह याद है। उसने अपने सामने लोगों को दम तोड़ते देखा। आतंकियों की गोली तो उसे भी लगी थी, बच गई। फिर उसने जिंदा पकड़े गए आतंकी आमिर अजमल कसाब की पहचान की। वह उसके लिए प्रतिशेध की देवी बन गई। इस घटना ने उसका जीवन बदल दिया। लेकिन, वह चुनौतियों से अब तक जूझ रही है।

26 नवंबर 2008 को हुए मुंबई आतंकी हमले के दौरान गोली लगने के बाद अदालत में आतंकवादी अजमल कसाब की पहचान करने वाली 9 साल की लड़की देविका रोटावन अब 22 साल की हो चुकी हैं। लेकिन, आज भी उसे वह घटना पूरी तरह याद है। आतंकी हमले की पीड़िता होते हुए उन्होंने मुख्य गवाह की भूमिका भी निभाई। वह एकमात्र पाकिस्तानी आतंकवादी अजमल आमिर कसाब के लिए एक प्रतिशोध की देवी के तौर पर कही जा सकती है। उसकी गवाही के बाद सभी कानूनी उपायों को समाप्त करने के बाद कसाब को आखिरकार हमले की कई सालों बाद फांसी दे दी गई।

पाकिस्तान से देश में दहशत फैलाने के इरादे से आतंकी दाखिल हुए थे। कसाब उन भारी हथियारों से लैस 10 पाकिस्तानी हमलावरों में से एक था, जिसने देश की वाणिज्यिक राजधानी में लगभग 60 घंटे तक अभूतपूर्व तबाही मचाई। देविका रोटावन, जो उस समय नौ वर्ष की होने वाली थी, हमले की शाम छत्रपति शिवाजी महाराज टर्मिनस भवन के अंदर थी। कसाब और उसके सहयोगी ने वहां अंधाधुंध गोलियां चलानी शुरू कर दीं। गोलीबारी में रोटावन भी चपेट में आ गई थी और उसके पैर में गोली लगने से वह घायल हो गई थी।

22 साल की हो चुकी देविका घटना को याद करते हुए बताती हैं कि कैसे उसके पिता नटवरलाल और वह पुणे के लिए एक ट्रेन में चढ़ने का इंतजार कर रहे थे। वहां उसका 34 वर्षीय भाई भरत अपने परिवार के साथ रहता है। देविका रोटावन ने उस भयानक मंजर को याद करते हुए कहती हैं कि अचानक हमने गोलियों की तेज आवाजें सुनीं। लोग चिल्ला रहे थे, रो रहे थे, इधर-उधर दौड़ रहे थे। हम धक्का-मुक्की और बड़ी भीड़ के बीच फंस गए थे। देविका ने उस रात की भयावहता को याद करते हुए बताया कि जैसे ही उसने दूसरों के साथ भागने की कोशिश की तो वह लड़खड़ा गई, क्योंकि वह सुन्न पड़ गई थी। उसे दर्द महसूस हो रहा था। उसने देखा कि उसके दाहिने पैर से खून बह रहा था।

देविका ने कहा कि कुछ ही पलों में मुझे एहसास हुआ कि मुझे गोली मारी गई है। मैं वहीं गिर गई और अगले दिन जाकर मुझे होश आया। घायल होने के बाद उसे किसी तरह पास के सर जेजे अस्पताल ले जाया गया। अगले दिन उसके पैर में लगी एके-47 की गोली को निकालने के लिए उसकी एक बड़ी सर्जरी की गई। यह उसके अस्पताल के दौरे की शुरुआत थी। अगले छह महीनों में उसे कई सर्जरी करानी पड़ी। बाद के तीन वर्षों में छह अन्य प्रमुख ऑपरेशनों के बाद ही वह पूरी तरह से चलने-फिरने लायक हो पाई।

देविका के पिता नटवरलाल रोटावन ने उस शाम को याद करते हुए कहा कि वह तब बहुत छोटी थी। मेरी पत्नी सारिका का निधन अभी दो साल पहले हुआ था। मेरे दो अन्य बड़े बेटों के साथ, हम सभी ने उसकी शिक्षा या भविष्य के लिए आने वाली बाधाओं और वित्तीय मदद के साथ उसकी देखभाल की है। बेटी देविका के अलावा उनके पिता नटवरलाल भी 26/11 मुकदमे में अभियोजन पक्ष के प्रमुख गवाहों में से एक थे। देविका मानती हैं कि वे शुरुआती तीन साल पूरे परिवार के लिए भयानक थे। यहां तक कि उसे राजस्थान के पाली जिले के उसके पैतृक गांव सुमेरपुर में भेज दिया गया था, जहां उसकी अच्छे से देखभाल की गई।

कसाब के खिलाफ अदालती कार्यवाही के लिए कुछ ही समय बाद देविका के परिवार को मुंबई लौटना पड़ा। परेशान पिता और उनकी घायल बेटी अब इस मामले के प्रमुख गवाह बन चुके थे और जून 2009 में अदालत में उनके सबूत भी थे। इसने कसाब को फांसी दिए जाने की प्रक्रिया को लेकर ताबूत में अंतिम कील ठोक दी। सभी कानूनी उपायों को समाप्त करने के बाद कसाब को अभी से नौ साल पहले 21 नवंबर, 2012 को फांसी दी गई थी। कई लोगों की जान लेने वाले कसाब का जीवन तो फांसी के साथ समाप्त हो गया। मगर छोटी बच्ची देविका, जो अगले महीने 23 वर्ष की हो जाएगी, उन्होंने अपने जीवन के सभी मोर्चों पर एक सतत संघर्ष का सामना करना पड़ा है।

देविका ने आईईएस न्यू इंग्लिश हाई स्कूल, बांद्रा पूर्व से अपनी स्कूली शिक्षा पूरी की। इसके बाद देविका ने सिद्धार्थ कॉलेज, चर्चगेट से एचएससी की पढ़ाई की। अब वह बांद्रा के चेतना कॉलेज से स्नातक आर्ट्स सेकेंड ईयर में पढ़ाई कर रही है। नटवरलाल ने कहा कि शुरू में परिवार को लगभग 3.5 लाख रुपये मुआवजे के रूप में और 10 लाख रुपये चिकित्सा सहायता के रूप में मिले थे। उन्होंने बताया कि इसके अलावा उन्हें आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के लिए कोटा के तहत एक घर का वादा किया गया था, लेकिन यह 13 वर्षों के बाद भी उनके परिवार को नहीं मिल पाया है।

बेटी को उचित सहायता नहीं मिलने पर पिता ने दुख जताया। उन्होंने कहा कि हमने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और महाराष्ट्र की सरकारों को भी इसके बारे में लिखा है। प्रधानमंत्री ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ की बात करते हैं, लेकिन मेरी बेटी देविका का क्या? जिसने हमारे देश के लिए आतंकवादियों और पाकिस्तान को चुनौती दी। देविका के भाई दुकानदार भरत और 26 वर्षीय रीढ़ की हड्‌डी में गंभीर समस्या झेल रहे जयेश उस समय को याद करते हुए बताते हैं कि कैसे परिवार अपनी स्टार किड बहन की देखभाल की। वह अक्सर गहरे दर्द में और हमेशा बेचैन रहती थी। इस संघर्ष भरे सफर में परिवार के सदस्यों की भी खास भूमिका रही।

वे हमेशा देविका का हौसला बढ़ाने का काम करते थे। इनमें अस्पतालों का नियमित दौरा, उसे समय पर दवाएं लेने के लिए राजी करना, आर्थर रोड सेंट्रल जेल के अंदर उच्च सुरक्षा वाली विशेष अदालत की कठिन यात्राएं और देविका और उसके पिता का मुकदमे के दौरान कसाब के साथ आमना-सामना करना शामिल है। इसके अलावा देविका की वकीलों, पुलिस अधिकारियों के साथ अंतहीन मुलाकातें भी शामिल हैं। यही नहीं उसके वित्तीय मुआवजे, कॉलेज में प्रवेश और अन्य आवश्यक कामों के लिए एक सरकारी विभाग से दूसरे विभाग में चक्कर लगाने के काम में भी परिवार के सदस्यों की अहम रोल रहा।

परिवार के सदस्यों का कहना है कि हमेशा उनकी मदद करने के लिए मुंबई पुलिस का आभारी है। नटवरलाल ने याद किया कि कैसे कई बार पुलिस ने अदालत की सुनवाई के दौरान शरारती छोटी देविका को संभाला था। नटवरलाल ने कहा कि वे स्पष्ट रूप से हमारे दर्द को महसूस कर सकते थे, उन्होंने अपने कई बहादुर सहयोगियों को भी खो दिया था। दुर्भाग्य से, राजनीतिक उदासीनता ने हमें वास्तव में दुखी किया है। सौभाग्य से, लॉकडाउन के दौरान परिवार को कांग्रेस नेता और बांद्रा के विधायक जीशान बी. सिद्दीकी की ओर से समय पर मदद मिल पाई।

देविका परिवार की स्थिति पर चिंतित दिखती हैं। उन्होंने कहा कि 12 साल पहले मेरे पिता का व्यवसाय बंद हो गया था। मेरे भाई जयेश को पीठ की गंभीर समस्या है और वह काम नहीं कर सकता है। मैं जल्द से जल्द कमाना शुरू करने और अपने परिवार की मदद करने की उम्मीद कर रही हूं। देविका अपनी भविष्य की योजनाओं को लेकर काफी दृढ़ है। वह एक आईपीएस अधिकारी बनने के लिए यूपीएससी परीक्षा पास करना चाहती है। पुलिस की वर्दी पहनना और अपराधियों तथा आतंकवादियों का खात्मा करना ही देविका ने अपना लक्ष्य बना रखा है।

देविका ने कहा कि मैं 13 साल बाद भी अपने आघात से उबर नहीं पाई हूं। मैंने उन लोगों को माफ नहीं किया है, जिन्होंने मेरे देश पर हमला किया और मुझे घायल किया। उनके पिता ने कहा कि मेरी बेटी ने देश को दिखाया है कि वह क्या करने में सक्षम है। वह अब अपना जीवन राष्ट्र को समर्पित करना चाहती है। अब यह सरकार और राजनेताओं पर निर्भर है कि वे अपनी प्रतिज्ञा का सम्मान करें।

द फ्रीडम स्टॉफ
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