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26/11 : जिस देविका ने कसाब के खिलाफ गवाही दी उसको लोगों ने कसाब की बेटी कहकर बुलाया, स्कूलों ने नहीं दिया दाखिला

TFN EXCLUSIVE: मुंबई में 26 नवंबर 2008 हुए आंतकी हमले ने तब नौ साल की एक बच्ची की जिंदगी बदलकर रख दी थी। आज 19 साल की हो चुकी देविका नटवरलाल जब भी उस घटना को याद करती हैं, सिहर जाती हैं। वह कहती हैं कि उस घटना के बाद लोग मुझे ‘कसाब की बेटी’ बुलाने लगे थे। मेरे रिश्तेदारों और दोस्तों ने मेरा साथ छोड़ दिया था, मेरी कोई सहेली नहीं थी। वह समय वाकई बहुत खराब बीता था।

दरअसल, मुंबई हमले के दौरान छत्रपति शिवाजी टर्मिनस में आतंकवादी अजमल कसाब लोगों पर अंधाधुंध फायरिंग कर रहा था। इस दौरान देविका के पैर में भी गोली लग गई थी। इस मामले में लोक अभियोजक उज्जवल निकम के कहने पर उन्होंने कसाब के खिलाफ गवाही दी थी और हमले में एक मात्र जीवित बचे आतंकी को फांसी की सजा हुई थी। इस घटना ने देविका को रातों रात रातोंरात सेलिब्रिटी बना दिया था।

स्कूल में कहते थे “कसाब की बेटी”-

देविका अस्पताल से डिस्चार्ज हो गईं तो स्कूल गई उन्हें वहां वो सब देखना पड़ा जिसकी उन्हें कभी उम्मीद नहीं थी। स्कूल में अब कोई उनका दोस्त नहीं बचा था, सभी सहपाठी उनसे दूर भागने लगे। देविका का कहना है कि उन्हें सब ‘कसाब की बेटी’ कहते थे। वह रोते हुए अपने घर जाती थीं क्योंकि लड़कियां उन्हें परेशान करती थीं। जिसके बाद उन्होंने स्कूल छोड़ दिया और दूसरे स्कूल में दाखिला लिया। लेकिन यहां भी मुश्किलें कम नहीं हुईं। देविका ने एक आतंकी की पहचान की थी, इस स्कूल में भी सब उनसे डरने लगे। एक अन्य स्कूल ने उन्हें ये कहकर दाखिला देने से मना कर दिया कि उनकी अंग्रेजी अच्छी नहीं है।

रिश्तेदार और पड़ोसियों ने भी दूरी बना ली- आतंकियों के डर से देविका के पड़ोसी और रिश्तेदारों ने भी उनसे दूरी बनाना शुरू कर दिया। देविका के पिता नटवरलाल का कहना है कि ट्रायल चलने तक उन्हें धमकियां दी जाती रहीं। देविका का कहना है कि उन सबसे वह डर गई थीं, लेकिन वह कभी टूटी नहीं। देविका ने मीडिया और सरकार पर भी मदद न करने के सवाल उठाए।

पिता नहीं चाहते थे कि कोर्ट जाऊं

देविका का कहना है कि वह हमले के 2 महीने बाद तक जेजे अस्पताल में रहीं। उनके पिता नटवरलाल नहीं चाहते थे कि वह गवाही दे लेकिन बाद में उन्होंने अपना मन बदल लिया। कई बार देविका का ऑपरेशन भी हुआ। देविका का कहना है कि उनके पिता नहीं चाहते थे कि वह कोर्ट जाएं। देविका ने बताया कि, “कोर्ट में उज्जवल निकम सर मेरी तरफ देख रहे थे क्योंकि मैं उस राक्षस के सामने खड़ी थी जो मेरी जान लेना चाहता था। जब कोर्ट में मुझसे पूछा गया कि तुम्हें किसने गोली मारी? मैंने अपना हाथ खड़ा किया और कसाब की ओर इशारा किया, उसके चेहरे पर कोई पछतावा नहीं था तो मैं भी नहीं डरी।

बनूंगी आईपीएस अफसर

देविका का कहना है कि आज भी जब वह उस जगह पर जाती हैं, जहां उन्हें गोली लगी थी तो उन्हें लगता है कि वह आज भी वहीं पर खड़ी हैं और पूरी दुनिया तेज मोड में आगे बढ़ रही है। देविका ने खुद से वादा किया है कि मुझे अपने पिता, भाई और देश को एक अच्छा भविष्य देना है। मुझे एक आईपीएस अफसर बनना है। मुझे आतंकवाद से लड़ना है और उन सबको न्याय दिलाना है जो मेरे और मेरे पिता की तरह संघर्ष कर रहे हैं।”

द फ्रीडम स्टॉफ
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