उत्तर प्रदेश में नरेंद्र मोदी के विजय रथ को रोकने के लिए सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव और बसपा प्रमुख मायावती ने वर्षों पुरानी दुश्मनी को भुलाकर साथ आ गए। लोकसभा चुनाव में यूपी में बीजेपी की जीत ने एसपी और बीएसपी के गठबंधन के जातीय समीकरण को जोरदार चुनौती दी है। यही वजह है कि बीजेपी नेता इस जीत को 2014 के प्रदर्शन से ज्यादा महत्वपूर्ण बता रहे हैं, जब एनडीए ने राज्य की 73 सीटों पर कब्जा किया था। बीजेपी ने राज्य में करीब 50 प्रतिशत वोट पाए जो गठबंधन के वोट शेयर से ज्यादा था। यूपी में बीएसपी को 2019 के लोकसभा चुनाव में 19.26% वोट मिले जबकि एसपी का वोट शेयर 17.96% रहा। आरएलडी को 1.67% वोट मिले।
बड़ी बात अमेठी, कन्नौज और बदायूं का प्रदर्शन
बीजेपी के लिए बड़ी बात अमेठी, कन्नौज और बदायूं का प्रदर्शन है। केंद्रीय मंत्री स्मृति इरानी ने कांग्रेस का अध्यक्ष राहुल गांधी का अमेठी किला ध्वस्त करते हुए अपनी जीत का परचम लहरा दिया। बीजेपी ने एसपी प्रमुख अखिलेश यादव की पत्नी डिंपल यादव और उनके चचेरे भाई धर्मेंद्र यादव को क्रमशः कन्नौज और बदायूं से हरा दिया है। ऐसे में सवाल उठ रहा है कि यूपी में गठबंधन का गणित काम क्यों नहीं किया।
गठबंधन के सभी बयान गलत
बीजेपी की रणनीति के मुताबिक गठबंधन का दांव इसलिए नहीं चला क्योंकि पश्चिमी उत्तर प्रदेश में गैर-यादव ओबीसी, जाट, अपर कास्ट और बड़ी संख्या में दलितों ने ‘मोदी फैक्टर’ के चलते 2014 लोकसभा और 2017 विधानसभा चुनाव की तरह बीजेपी को वोट दे दिया। अपर कास्ट ने 10 फीसदी आरक्षण मिलने के बाद बीजेपी का मजबूती से साथ दिया और कांग्रेस की तरफ नहीं शिफ्ट हुआ। उत्तर प्रदेश में बीजेपी के एक वरिष्ठ नेता ने बताया, ‘गठबंधन के सभी बयान गलत थे। मायावती और अखिलेश ने अपने भाषणों में प्रधानमंत्री पर जमकर निशाना साधा था और हमेशा नया प्रधानमंत्री लाने की बात करते थे। वे जाति या अपने उम्मीदवारों के बारे में काफी कम बात करते थे, जो उनकी सबसे मजबूत ताकत थी। उनके भाषणों में उनकी राष्ट्रीय राजनीति पर छाने की अभिलाषा ज्यादा झलकती थी।’