ये गलियां ये चौबारा
यहां आना ना दोबारा
अब तुम तो भए परदेशी
कि तेरा यहां कोई नहीं !
ऋषि कपूर की फिल्मों के साथ हमारी पीढ़ी ने एक लंबा वक़्त गुज़ारा है। उनसे हमने जीवन के कई सबक सीखे। जवानी की शोखियां सीखीं, शरारतें सीखीं, प्रेम की बेफ़िक्री और चुलबुले अंदाज़ सीखे। उन्होंने हमें ‘हम तुम एक कमरे में बंद हो’ का रोमांच भी दिया, ‘खुल्लम खुल्ला प्यार करेंगे’ की चुनौती भी, ‘मेरी किस्मत में तू नहीं शायद’ का दुख भी और ‘वही होता है जो मंजूरे ख़ुदा होता है’ का वैराग्य भी। अपनी ज़िंदगी के कुछ आख़िरी वर्षों में भी बुढ़ापे की जिंदादिली और मौत से लड़ने का सलीका सिखा कर गए वो।