उत्तर प्रदेश

माहे रमजान: इबादत और अपने गुनाहों की माफी मांगने का महीना

प्रशांत शर्मा, रायबरेली: लॉकडाउन में अच्छी बात तो यह है कि हमारे पास इबादत के लिए चौबीसों घंटे मिले है। लॉकडाउन का सोशल डिस्टेंसिंग के साथ पालन करते हुए अपने घर में ही खुदा की इबादत करें। इस्लाम मजहब में गरीबों की आर्थिक मदद के लिए जकात को फर्ज किया गया है। माहे रमजान में गरीब मुसलमानों की आर्थिक मदद के लिए संपन्न मुसलमानों पर फितरा वाजिब किया गया है। इसी वजह से हर मुसलमान रमजान के महीने में फितरा और जकात निकाल कर अपने हक़ से अदा रहता है। रमजान के इस मुकद्दस माह में रोजा रख रहे फिरोज आलम ने कहा कि रोजा रखने से जहन्नम की आग से बचाव होता है।

रमज़ान माह में एक नेकी के बदले 70 नेकिया मिलती हैं। परवेज खान ने कहा कि रमजान के महीने में इंसान को अपनी गलतियों को सुधारने का मौका मिलता है। गलतियों के लिए तौबा करने एवं अच्छाइयों के बदले बरकत पाने के लिए भी इस महीने की इबादत का महत्व है। इसलिए रमजान के दिनों जकात देने का खास महत्व है।

लाला टेलर ने कहा कि रमजान का महीना सब्र हमदर्दी और किसी के दुख में शरीक होने का महीना है। शोहराब अली ने कहा रमजान के महीने में 3 अशरे होते हैं। पहला अशरा रहमत का होता है, दूसरा अशरा मगफिरत यानी गुनाहों की माफी का होता है, और तीसरा अशरा जहन्नम की आग से खुद को बचाने के लिए होता है।

द फ्रीडम स्टॉफ
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