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बालासोर हादसा: 25 दिन बाद भी 81 शवों की पहचान नहीं, एक शव के कई दावेदार इसलिए देरी

’25 दिन से बेटे को ढूंढ रहा हूं। दोस्तों के साथ तिरुपति गया था। बेंगलुरु-हावड़ा एक्सप्रेस से घर लौट रहा था। 2 जून की रात 8 बजे पता चला कि ट्रेन का एक्सीडेंट हुआ है। हॉस्पिटल से फोन कर किसी ने बताया कि वो कटक के हॉस्पिटल में है। हॉस्पिटल पहुंचे, पर बेटा नहीं मिला। फिर भुवनेश्वर गए, पता चला कि उसकी डेडबॉडी कोई और बिहार ले गया है। अंतिम संस्कार भी कर दिया है।’

श्रीकांतो राय मोबाइल में बेटे की फोटो दिखाते हुए एक बार में पूरी बात कह जाते हैं। हादसे की तारीख से 15 दिन बाद बेटे की शादी थी। ये नहीं हुआ होता, तो शादी हो चुकी होती, पर अब वे बेटे की डेडबॉडी के लिए परेशान हैं।

श्रीकांतो अकेले नहीं है। 2 जून को ओडिशा के बालासोर में हुए ट्रेन हादसे में मारे गए 292 लोगों में से 81 की अब तक पहचान नहीं हुई है। इनके शव भुवनेश्वर के एम्स कैंपस में रखे हैं। मॉर्च्युरी में जगह नहीं थी, इसलिए 60 शव कंटेनरों में रखे गए हैं। इनके DNA सैंपल दिल्ली भेजे गए हैं। 25 से ज्यादा दिन हो गए, पर रिपोर्ट नहीं आई। वजह- ज्यादातर लोग तंबाकू खाते थे, दांत पर तंबाकू की परत होने से उनके टिशू निकालने में दिक्कत आ रही है।

सभी डेड बॉडीज भुवनेश्वर एम्स के कैंपस में प्रिजर्व करके रखी गई हैं। कई लोग तो दावा कर रहे हैं कि उन्होंने निशान या कपड़ों से बॉडी की पहचान कर ली है, लेकिन DNA रिपोर्ट का इंतजार है, तब तक बॉडी उन्हें नहीं मिल सकती।

हादसे के बाद भास्कर ने बहनगा बाजार स्टेशन, बालासोर डिस्ट्रिक्ट हॉस्पिटल और भुवनेश्वर एम्स से ग्राउंड रिपोर्ट की थी। 2 जुलाई को हादसे का एक महीना पूरा हो जाएगा। इसलिए हम दोबारा उन्हीं जगहों पर पहुंचे और देखा कि मरने वालों के परिवार, हादसे वाली जगह और जांच किस स्थिति में है।

पीड़ितों के लिए बना वेलकम सेंटर बंद, इंक्वायरी से पहले CBI के सवाल-जवाब
सबसे पहले हम भुवनेश्वर एम्स के एजुकेशन ब्लॉक में पहुंचे। 5 जून के बाद से अज्ञात शवों को यहीं अलग-अलग एसी हॉल में रखा गया था। उस वक्त बिल्डिंग के बाहरी हिस्से में वेलकम सेंटर बनाया गया था, जहां मरने वालों की फोटो डिस्प्ले की जा रही थीं। बाहर मीडिया का जमावड़ा था।

अब इस जगह सन्नाटा है। वेलकम सेंटर बंद हो चुका है। यहां सिर्फ एक गार्ड और ओडिशा पुलिस का एक जवान दिखा। कैमरा देखकर हमें रोक लिया। गार्ड अंदर गया, लौटा तो एक महिला साथ थीं। वे यहां की इंचार्ज हैं। हमसे कुछ सवाल किए और कॉन्फ्रेंस रूम में ले गईं। वहां CBI के एक अधिकारी बैठे थे। केस की जांच CBI ही कर रही है।

अधिकारी ने हमारे आने का मकसद पूछा और कुछ देर में हमें चले जाने के लिए भी कह दिया। इसी दौरान हमें पता चला कि अब शवों की पहचान करवाने का काम भी CBI को ही दे दिया गया है। डेड बॉडी की तलाश में कोई आता है तो पहले CBI वाले पूछताछ करते हैं। फिर उनका DNA सैंपल लिया जाता है।

162 डेड बॉडी एम्स लाई गईं थीं, 81 की पहचान
मरने वालों का DNA क्यों लिया जा रहा है, ये समझने के लिए हम एम्स के डायरेक्टर आशुतोष विश्वास से मिलने उनके ऑफिस गए। वे नहीं मिले तो हॉस्पिटल के पब्लिक रिलेशन ऑफिसर राजकिशोर दास से कॉन्टैक्ट किया।

उन्होंने बताया, ‘हादसे के बाद 162 शव एम्स में लाए गए थे। इनमें से 81 की पहचान हो चुकी है। उन्हें परिवार को सौंप दिया गया है। बचे हुए 81 के लिए 84 लोगों का DNA सैंपल लिया गया है। दिल्ली से इनकी रिपोर्ट आने के बाद डेड बॉडी उनके परिवार को दे पाएंगे।’

तीन स्पेशल कंटेनर में रखीं डेड बॉडी, 6 महीने तक सुरक्षित रख सकते हैं
अब सवाल था कि 25 दिन बाद भी DNA रिपोर्ट क्यों नहीं आई है? 81 शव कहां रखे गए हैं? क्या ज्यादा दिन रखने से वे खराब नहीं हो जाएंगे?

राजकिशोर इसका जवाब देते हैं, ‘इतनी ज्यादा बॉडीज को प्रिजर्व करके रखना बहुत मुश्किल था। शव सुरक्षित रखने के लिए उसमें फॉर्मेलिन, स्पिरिट, ग्लिसरीन और कार्बोलिक एसिड जैसे केमिकल इंजेक्ट किए गए हैं। इससे शवों के अंदर मौजूद बैक्टीरिया, वायरस और फंगस मर जाते हैं और दोबारा पनप नहीं पाते। इससे बॉडी अंदर से सड़ती नहीं है और उसे लंबे वक्त तक फ्रीजर में रखा जा सकता है।’

उन्होंने बताया कि ‘एम्स में मैक्सिमम 30 बॉडी संभालकर रख सकते हैं। इसलिए हमने बॉडीज को 3 स्पेशल कंटेनर और मॉर्च्युरी में रखा है। ये कंटेनर कैंपस में ही खड़े हैं। इनमें 60 से ज्यादा डेड बॉडीज को ऑटोमेटिक आइस सिस्टम के जरिए प्रिजर्व करके रखा है। इनमें 24 घंटे इलेक्ट्रिसिटी की सप्लाई हो रही है, बैकअप के लिए जनरेटर है। इसमें शव को करीब 6 महीने तक संभालकर रखा जा सकता है। इसलिए आज भी डेड बॉडी सेफ कंडीशन में हैं।’

क्या अब भी लोग अपनों की तलाश में आ रहे हैं? राजकिशोर कहते हैं, ‘शुरू के दो-तीन दिनों में करीब 75 DNA सैंपल कलेक्ट हुए थे। फिर लोग आना कम हो गए। इसलिए वेलकम सेंटर बंद कर दिया। हालांकि, अब भी कुछ लोग यहां बैठते हैं। आने वालों की पूरी मदद की जा रही है।’

राजकिशोर ने बताया, ‘हमने 3 फेज में 84 DNA सैंपल जांच के लिए भेजे हैं। आमतौर पर रिपोर्ट आने में 30 से 40 दिन लगते हैं। स्पेशल केस में रिपोर्ट जल्दी भी आ जाती है। यहां एक बॉडी को क्लेम करने के लिए 5 लोग आए हैं, मल्टिपल क्लेमर होने के कारण भी दिक्कत आ रही है। मामला बहुत सेंसिटिव है, इसलिए हम कोई गलती नहीं कर सकते। इसलिए टाइम लग रहा है।’

तंबाकू की वजह से DNA रिपोर्ट में देरी
DNA सैंपल की रिपोर्ट आने में देरी के सवाल पर राजकिशोर ने एम्स के एक डॉक्टर के हवाले से बताया कि इस ट्रेन में सवार ज्यादातर लोग बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल से थे। वे तंबाकू खाते थे। DNA सैंपल के लिए कई लोगों के दांत भेजे गए हैं, उनमें तंबाकू की परत होने से टिशू निकालने में दिक्कत आ रही है। पहले उन्हें साफ किया गया, फिर टिशू निकालकर सीक्वेंसिंग के लिए भेजा। इसके बाद सैंपलिंग के लिए भेजा गया है। इस वजह से फाइनल रिपोर्ट में टाइम लग रहा है।’

DNA सैंपल देने वालों को रेलवे ने गेस्ट हाउस में ठहराया, लेकिन उसका पता नहीं बता रहे
एम्स में ही हमें पता चला कि DNA के लिए आए लोगों के रुकने और खाने-पीने का इंतजाम रेलवे ने किया है। हालांकि वे भुवनेश्वर के किस गेस्ट हाउस में है, इसका पता न किसी रेलवे अधिकारी ने बताया, न ही एम्स प्रशासन ने। एक दिन की पड़ताल के बाद हमें पता चला कि ये एम्स से करीब 700 मीटर दूर एक आइसोलेटेड गेस्ट हाउस है। नाम राधे श्याम गेस्ट हाउस।

पैंट-शर्ट मिले, लेकिन भाई के शरीर का पता नहीं…
राजीव अपने भाई कृष्णा रविदास को तलाश रहे हैं। उन्होंने रोते हुए बताया, ‘20 दिन हो गए। भाई की सिर्फ पैंट और शर्ट मिली है। यहां रहने में दिक्कत तो नहीं है, लेकिन बॉडी नहीं मिल रही, यह सबसे बड़ी परेशानी है। घर पर बूढ़ी मां हैं। बीमार रहती हैं। रो-रोकर तबीयत खराब हो गई, तो उन्हें भी हॉस्पिटल में एडमिट करवाना पड़ा। DNA रिपोर्ट के लिए कभी आज, कभी कल कहा जा रहा है। समझ नहीं आ रहा और कितना सहना पड़ेगा।’

राजीव ने बताया कि ‘भाई बेंगलुरु से दोस्त के साथ बहन की शादी के लिए आ रहा था। 10 जून को शादी थी। फिर हादसा हो गया, तो शादी कैंसिल कर दी। हादसे से कुछ घंटे पहले उसने सोशल मीडिया में फोटो पोस्ट की थी। ओडिशा में एंटर करने से पहले घर पर बात भी की थी।’

गेस्ट हाउस में ही अंजारुल हक भी रह रहे हैं। अंजारुल कहते हैं, ‘25 दिन से भाई अब्दुल हक को तलाश रहा हूं। वो कृष्णा रविदास के साथ बेंगलुरु-हावड़ा एक्सप्रेस से आ रहा था। तीन शहरों के हॉस्पिटल में तलाशने के बाद भी नहीं मिला, तो DNA टेस्ट करवाना पड़ा।’

हाथ में नाम लिखा है, फिर भी बॉडी नहीं दे रहे…
पश्चिम बंगाल के पुरुलिया में रहने वाले समापद जीजा को तलाश रहे हैं। फोन में उनकी फोटो दिखाते हुए कहते हैं, ‘ट्रेन में दो जीजा थे। चार महीने काम कर बेंगलुरु से लौट रहे थे। हादसे में एक के हाथ में चोट लगी। उनके घर लौटने के बाद हम दूसरे को खोजने निकले। पहले बालासोर गए, फिर भुवनेश्वर आए हैं।’

‘जीजा का नाम समीर बाउरी है। दूसरा नाम रवि भी है। एक शव मिला है, जिसके हाथ पर रवि लिखा है। पैर में एग्जिमा का निशान है, बॉडी के साथ मिले आधार कार्ड में भी जीजा का नाम है। इतनी पहचान बताने के बाद भी उनका शव नहीं दे रहे हैं। अफसर कह रहे हैं कि रिपोर्ट आएगी तो डेड बॉडी दे देंगे, लेकिन रिपोर्ट कब आएगी, ये पता नही है।’

डैमेज नाखून से पिता को पहचाना, तब भी बॉडी नहीं दी
धर्मेंद्र को अपने पिता जोगिंदर पासवान की तलाश है। वे बताते हैं, ‘पापा बेंगलुरु से आ रहे थे। भुवनेश्वर में डिस्प्ले हो रही फोटो से उन्हें पहचान लिया। पापा के एक हाथ का नाखून डैमेज था। उससे पता चल गया कि शव उनका है। इसके बाद भाई और चाचा का DNA सैंपल लिया गया। रेलवे के लोग कहते हैं कि रिपोर्ट आने तक कुछ नहीं कर सकते।’

इसका जवाब पब्लिक रिलेशन ऑफिसर राजकिशोर ने दिया। उनका कहना है कि ‘कुछ ऐसे मामले हुए जब बॉडी पर किसी और ने क्लेम किया और ले गया। बॉडी खराब होने की वजह से पहचान मुश्किल हो रही थी। अब भी एक बॉडी को क्लेम करने के लिए 5 लोग आए हैं। असम, बिहार और बंगाल से। ये बहुत सेंसिटिव केस है। गलती की कोई गुंजाइश नहीं है। हम सीक्वेंसिंग और सैंपलिंग मैचिंग में बहुत ध्यान रख रहे हैं। जिसका DNA मैच करेगा, उसी को बॉडी देंगे। इसलिए रिपोर्ट का इंतजार कर रहे हैं।’

 

द फ्रीडम स्टॉफ
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