“इंदु जी, इंदु जी
क्या हुआ आपको?
क्या हुआ आपको?
सत्ता की मस्ती में
भूल गई बाप को?”
ऐसी रचनाओं से लाल किले से ही प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को ललकारते थे नागार्जुन और इसीलिए मानस उनको बाबा नागार्जुन कहता था।
इन्हीं बाबा नागार्जुन का आना-जाना एक सहित्यनुरागी थानवी परिवार में भी था। रमेश थानवी और उर्मिला थानवी दोनों ही बाबा नागार्जुन की बहुत इज्जत किया करती थे।
अब चूंकि बाबा नागार्जुन की समाज मे इस क़दर प्रतिष्ठा थी तो वो अपने साथ ही अपनी शर्तों मने अनुशासन की आमद को भी थानवी जी के घर ले आते थे। थानवी दंपत्ति की एक सात बरस की बेटी गुनगुन भी थीं जिनके ऊपर बाबा के दुष्कर्मों का इस इतना गंदा प्रभाव पड़ा है कि वो आज भी बाबा नागार्जुन नाम सुनते ही सिहर जाती है।
गुनगुन अपनी आपबीती बयां करते हुए लिखती है कि बाबा ने अपने मनमुताबिक एक छद्म अनुशासन को हमारे घर की चाहरदीवारियों में अध्यारोपित कर दिया था। सब कुछ उन्हीं के मनमुताबिक होता था।
अब बाबा नागार्जुन की प्रतिष्ठा ही इतनी थी कि उसके आगे माँ-बाप नतमस्तक हो जाते थे। मगर उसका खामियाजा गुनगुन को भुगतना पड़ता था।
गुनगुन कहती है नागार्जुन का नाम सुनते ही उनका मन सिहर जाता है। उनकी नजरों में वो किसी असुर से कम न है जो अपनी दानवी प्रवृत्तियों की जोरआजमाइश रोज उन पर करता था।
नागार्जुन उनका रेप करते थे और उस उमर से ही गुनगुन के भीतर सम्पूर्ण पुरूष समाज के लिए इस क़दर घृणा भर गई थी कि आज भी वो समस्त पुरूषों के लिए एक क़िस्म का संदेह मन में रखती है।
“मायावती मायावती
दलितेन्द्र की छायावती छायावती….”
महिला और दलित सशक्तीकरण की पैरोकार ऐसी कविताएं रचने वाले नागार्जुन का एक ऐसा भी विकृत रूप हो सकता है, इस पर बहुत कम लोगों को यकीन होगा। खासकर उस तबके को जो वामपंथी और नारीवादी विचारधारा को मंडित करता है।
अवल्ल तो जो लोग #MeToo आंदोलन की खुलकर वकालत कर रहे थे और बोल रहे थे कि महिलाएं अक्सर उस समय चुप्पी साध लेती है। मग़र बाद में जब वो अपने हिस्से आएं इस क्रूर सच को उजागर करती है तो उन पर भरोसा करना चाहिए। #MeToo आंदोलन के ऐसे हिमायती लोग भी इस मुद्दे पर चुप्पी ओढ़ लेंगे क्योंकि इससे उनका वामपंथ खतरे में पड़ जाएगा।
“हाँ बाबा, बाघ आया उस रात,
आप रात को बाहर न निकलों!”
नागार्जुन की ये कविता जब गुनगुन पढ़ती होंगी तो उन्हें नागार्जुन में ही बाघ और ख़ुद में एक निरीह हिरणी दिखती होगी जो बाघ का ग्रास तिल-तिल कर रोज बनती थी।
“क्या नहीं है
इन घुच्ची आँखों में
इन शातिर निगाहों में
मुझे तो बहुत कुछ
प्रतिफलित लग रहा है!”
नागार्जुन ने ये पंक्तियां बेशक किसी भी कालखंड के लिए और किसी के लिए भी लिखी हो। मग़र ये आज भी बुरे रूप में इस तरह से प्रासंगिक है कि बाबा की शातिर निगाहों ने एक बच्ची को भी न छोड़ा।
‘लेनिन स्रोतम’ रचने वाले बाबा दरअसल एक मनोरोगी यौन अपराधी थे।
जस्टिसफ़ॉरगुनगुन_थानवी
संकर्षण शुक्ला