मैहर बैंड की स्थापना 1918 में उस्ताद अलाउद्दीन खां ने मैहर रियासत के तत्कालीन राजा बृजनाथ सिंह जूदेव की प्रेरणा की थी। कहा जाता है कि 1918 में मैहर में प्लेग की महामारी फैलने से कई लोग मारे गए और कई बच्चे अनाथ हो गये। बाबा ने इन बच्चों को अपने घर में इकट्ठा किया और उनके गुणों के अनुसार उन्हें किसी ना किसी वाद्य को बजाने की शिक्षा दी और इस तरह मैहर बैंड अस्तित्व में आया और स्वरों को बिखेरना जारी है।
इसी बैंड में उस्ताद अलाउद्दीन द्वारा 24 बंदूकों की नलियों से बनाया गया वाद्य नलतरंग सबसे अनोखा है।बंदूक से हमेशा विनाश हुआ है, लेकिन 100 साल पहले मैहर घराने से जुड़े बाबा उस्ताद अलाउद्दीन खां बंदूक की नाल से एक संगीत वाद्य बना दिया और नाम दिया नलतरंग दिया।
इस बैंड में एक साथ 10 वाद्यों वादन होता हैं। इसमें नलतरंग, वायलिन, इसराज, सरोद, सितार के अलावा दो-दो कलाकार हारमोनियम और तबला बजाते हैं। इस बैंड की खासियत यह है कि हर वाद्य से एक ही स्वर निकलता है। यह अनूठा स्वर संगम देखने लायक हो जाता है। आज यह बैंड बाबा अलाउद्दीन खान द्वारा स्थापित मैहर घराना का प्रतिनिधित्व पूरे विश्व में कर रहा है और भारतीय संगीत और पश्चात संगीतकार एक सुंदर संगम हमारे समक्ष प्रस्तुत करता है
डॉ गौरव शुक्ल
विभागाध्यक्ष ,संगीत विभाग,
जय नारायण व्यास विश्वविद्यालय, जोधपुर