डॉ. के. कस्तूरीरंगन की अध्यक्षता वाली समिति ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति के मसौदे को केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री, रमेश पोखरियाल निशंक और मानव संसाधन राज्यमंत्री संजय शामराव धोत्रे के सामने प्रस्तुत किया। इसके बाद इस नीति में उल्लिखित द्विभाषा और त्रिभाषा फॉर्मुले को लेकर कुछ विवाद भी उत्पन्न हुआ। इसके बाद केंद्र सरकार ने स्पष्टीकरण दिया कि यह सरकार द्वारा घोषित नीति नहीं है तथा आम जनता की राय मिलने और राज्य सरकारों से सलाह-मश्विरे के बाद सरकार इसे अंतिम रूप देगी। सरकार सभी भारतीय भाषाओं के समान विकास और संवर्द्धन के लिये दृढ़ संकल्पित है। शिक्षा संस्थानों में किसी भी भाषा को थोपा नहीं जाएगा और न ही किसी भाषा के साथ भेदभाव किया जाएगा।
टी.एस.आर. सुब्रमण्यम की अध्यक्षता में पाँच सदस्यीय समिति का गठन
चूंकि पिछली शिक्षा नीति तीन दशक पहले आई थी इसलिये वर्ष 2014 में केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने नई शिक्षा नीति तैयार करने के लिये वर्ष 2015 में पूर्व कैबिनेट सचिव टी.एस.आर. सुब्रमण्यम की अध्यक्षता में पाँच सदस्यीय समिति का गठन किया गया। उसने नई शिक्षा नीति का मसौदा पेश किया, लेकिन किसी कारण उसे अनुकूल नहीं पाया और वर्ष 2016 में अंतरिक्ष वैज्ञानिक के. कस्तूरीरंगन की अध्यक्षता में एक नई समिति गठित की गई। नई सरकार बनते ही समिति की ओर से तैयार नई शिक्षा नीति का मसौदा सरकार को सौंप दिया गया।
5+3+3+4 का फॉर्मूला
नर्सरी से 12वीं कक्षा तक की पढ़ाई को 5+3+3+4 के फॉर्मूले के तहत चार चरणों में बाँटने की बात नई शिक्षा नीति में कही गई है। पाँच साल का पहला चरण 3 से 8 वर्ष की आयु के बच्चों के लिये है, इसे Foundation Stage कहा गया है। दूसरा चरण कक्षा 3 से 5 तक 8 से 11 वर्ष के बच्चों के लिये है, इसे Preparatory Stage कहा गया है। तीसरा चरण कक्षा 6 से 8 तक 11 से 14 वर्ष के बच्चों के लिये है, इसे Middle Stage कहा गया है। चौथा और अंतिम चरण कक्षा 9 से 12 तक 14 से 18 वर्ष के बच्चों के लिये है, इसे Secondary Stage कहा गया है।
राष्ट्रीय नियामक प्राधिकरण
स्कूली शिक्षा के लिये शासन स्तर में बदलाव भी सुझाए गए हैं। नई शिक्षा नीति के प्रारूप में राष्ट्रीय नियामक प्राधिकरण बनाने का सुझाव दिया गया है ताकि शिक्षा को समग्र रूप में पर्यावरण हितैषी व ज्ञानवान समाज बनाने के उद्देश्यों को हासिल किया जा सके। यह प्राधिकरण विभिन्न स्कूलों की मान्यता तय करेगा। निजी स्कूलों के नाम में पब्लिक शब्द का इस्तेमाल नहीं करने का सुझाव दिया गया है। सरकार देश में शिक्षा का वित्त पोषण और परिचालन जारी रखेगी। निजी स्कूलों को सपोर्ट करने की भी बात नई शिक्षा नीति के प्रारूप में कही गई है।
शिक्षण के बहु-विकल्पीय तरीके पर जोर
नई शिक्षा नीति के प्रारूप में प्राथमिक व इससे उच्च स्तर की कक्षाओं के विद्यार्थियों के लिये बुनियादी साक्षरता व संख्या ज्ञान से संबंधित दक्षताओं के विकास का लक्ष्य रखा गया है। इसके लिये प्राथमिक-पूर्व शिक्षा तक पहुँच तथा शिक्षक-विद्यार्थी अनुपात 30:1 तक रखने का सुझाव दिया गया है। ऐसा न होने के कारण बच्चों के सीखने की क्षमता पर होने वाले प्रभाव को भी रेखांकित किया गया है। बहु-स्तरीय शिक्षण के तरीकों को अपनाने व पौष्टिक नाश्ते व आहार की व्यवस्था का प्रावधान करने की बात भी नई शिक्षा नीति के प्रारूप में है। इसके तहत मिड डे मील के कार्यक्रम का विस्तार करने की बात कही गई है।
रेमेडियल शिक्षण की पुख्ता व्यवस्था
इसके तहत 10 वर्षीय कार्यक्रम का प्रस्ताव किया गया है। कमज़ोर विद्यार्थियों को पढ़ाने हेतु स्कूलों में रेमेडियल कक्षा (Remedial Class) के लिये 80 मिनट का पीरियड रहेगा। कक्षा 9वीं से 12वीं तक के विद्यार्थियों के लिये यह पीरियड नियमित लिये जाने की व्यवस्था की जाएगी। इसके तहत काम करने वाले शिक्षक विद्यालय में समय-पूर्व व समय-पश्चात् विद्यार्थियों के साथ रेमेडियल शिक्षण का काम करेंगे। साथ ही साथ लंबे अवकाश वाले दिनों में भी रेमेडियल यानी विद्यार्थियों को होने वाली शैक्षिक समस्याओं को हल करने के लिये कक्षाओं के संचालन का सुझाव दिया गया है। रेमेडियल कक्षाएँ त्रैमासिक परीक्षाओं में D और E ग्रेड पाने वाले विद्यार्थियों के लिये होंगी और नियमित शिक्षकों द्वारा ली जाएंगी।
नवोन्मेषी शिक्षण उपाय
इसके तहत पहली व दूसरी कक्षा में भाषा व गणित पर जोर देने की बात कही गई है। चौथी व पाँचवीं कक्षा के बच्चों के साथ लेखन कौशल पर ज़ोर देने के अलावा भाषा सप्ताह, गणित सप्ताह व भाषा मेला व गणित मेला जैसे आयोजन करने की बात भी नीति में है। पढ़ने और संवाद करने की संस्कृति को प्रोत्साहित करने के लिये पुस्तकालयों के महत्त्व को पुनः स्थापित करने के अलावा कहानी सुनाने, रंगमंच, समूह में पठन, लेखन व बच्चों के बनाए चित्रों व लिखी हुई सामग्री का प्रदर्शन करने जैसी गतिविधियों को आयोजित करने पर बल दिया गया है।
लड़कियों की शिक्षा पर विशेष ज़ोर
आवासीय विद्यालयों में बालिकाओं के लिये नवोदय स्कूलों जैसी व्यवस्था करने का भी सुझाव है। लड़कियों की शिक्षा बीच में बाधित न हो इसके लिये उनको भावनात्मक रूप से सुरक्षित वातावरण देने का सुझाव दिया गया है। कस्तूरबा गाँधी बालिका विद्यालय का विस्तार 12वीं तक करने का भी सुझाव दिया गया है।
शिक्षण में तकनीक
शिक्षकों की सुविधा के लिये तकनीक के इस्तेमाल को प्रोत्साहित करने की बात भी नई शिक्षा नीति करती है। इसके लिये कंप्यूटर, लैपटॉप व मोबाइल फोन इत्यादि के ज़रिये विभिन्न एप्स का इस्तेमाल करके शिक्षण को रोचक बनाया जा सकता है। तकनीक को शिक्षकों के विकल्प के रूप में देखने के बजाय सहायक शिक्षण सामग्री के रूप में देखने का सुझाव दिया गया है। इसके साथ ही अभिभावकों की सक्रिय भागीदारी पर भी फोकस किया गया है। इसके अलावा हर वर्ष 50 घंटे की टीचर्स ट्रेनिंग की बात पर ज़ोर दिया गया है। शिक्षकों को ऐसी ट्रेनिंग देने के लिये भी तकनीक का इस्तेमाल किया जा सकता है। यह ट्रेनिंग नैनो टेक्नोलॉजी, ऑटोमेशन, मशीन लर्निंग और अंतरिक्ष विज्ञान जैसे आधुनिक विषयों में भी दी जानी चाहिये।
तर्कशक्ति को प्रोत्साहन
शिक्षा के दौरान विषय-वस्तु का बोझ कम करने की बात नई शिक्षा में कही गई है ताकि विद्यार्थियों की तर्क शक्ति को मज़बूती दी जा सके। इसके लिये वर्ष 1993 की मानव संसाधन विकास मंत्रालय की यशपाल समिति की रिपोर्ट लर्निंग विदाउड बर्डन का हवाला दिया गया है। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि यदि हम अपने स्कूलों में दी जाने वाली शिक्षा को अधिक समग्र, पूर्ण, विश्लेषण और तर्कशक्ति को प्रोत्साहित करने वाली बनाना चाहते हैं, तो शिक्षा पर भारी बोझ बन गई विषय-वस्तु का वज़न कम करना ही होगा।
स्तरहीन शिक्षा से छुटकारा
स्तरहीन शिक्षक-शिक्षण संस्थानों को बंद करने और सभी शिक्षण तैयारी/शिक्षा कार्यक्रमों को बड़े बहुविषयक विश्वविद्यालयों/ कॉलेजों में स्थानांतरित करके टीचर्स ट्रेनिंग के क्षेत्र में बड़े पैमाने पर बदलाव का भी प्रस्ताव रखा गया है। 4-वर्षीय एकीकृत चरण वाले विशिष्ट बी.एड. कार्यक्रम के माध्यम से शिक्षकों को अंततः न्यूनतम डिग्री की योग्यता प्राप्त हो सकेगी।
लेखिका-
स्वाति श्रीवास्तव
(लेखिका शिक्षा सुधार के क्षेत्र में सक्रिय हैं)
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