नज़रिया

पंडित नेहरु के अवसान पर अटल बिहारी बाजपेयी जी का संदेश !

‘आज एक सपना खत्म हो गया है। एक गीत जो खामोश हो गया है। एक लौ हमेशा के लिए बुझ गई है। यह एक ऐसा सपना था, जिसमे भूखमरी, भय, डर नहीं था, यह ऐसा गीत था जिसमे गीता की गूंज भी थी और गुलाब की महक थी। चिराग की ऐसी लौ थी जो पूरी रात जलती थी और अंधेरे का सामना किया करती थी, उसने निर्वाण की प्राप्ति कर लिया। आज भारत माता अपने सबसे कीमती सपूत को खोकर दुखी है। समूची मानवता दुखी है कि उसने अपना सेवक खो दिया। शांति बेचैन है कि उसने अपना संरक्षक खो दिया। आम आदमी ने अपनी आंखों की रौशनी खो दी है। पर्दा नीचे गिर गया है। पंडित जी एक अद्भुत, विलक्षण व्यक्तित्व थे। एक साथ शांति के साधक भी और क्रांति के अग्रदूत भी। व्यक्तिगत स्वतंत्रता के समर्थक और आर्थिक समानता के पक्षधर। वे किसी से भी समझौता करने से नहीं डरते थे, लेकिन किसी भय से उन्होंने समझौता नहीं किया। पाक और चीन को लेकर उनकी नीति इसका उदाहरण थी। यह एक तरफ सहज थी तो दूसरी तरफ दृढ़ भी थी। ऐसी महानता शायद हम भविष्य में कभी नहीं देख पाएंगे। यह दुर्भाग्य है कि उनकी सहजता को कमजोरी समझा गया। कुछ ही लोगों को पता था कि वे कितने मजबूत थे।

नेहरू जिस आजादी के समर्थक थे वह आज खतरे में है। जिस राष्ट्रीय एकता और सम्मान के वे पक्षधर थे वह आज खतरे में है। जिस लोकतंत्र की उन्होंने स्थापना की उसका भविष्य खतरे में है। हमें अपनी एकजुटता, अनुशासन, आत्मविश्वास से एक बार फिर लोकतंत्र को सफल बनाना होगा। यह परीक्षा का समय है। विपक्ष को भी साथ लेकर चलने की क्षमता उनके व्यक्तित्व को परिभाषित करता है। हम सब खुद को उनके विचारों को साथ लेकर चले तो समृद्ध भारत के सपने सच कर सकते हैं। विश्व में शांति ला सकते हैं। विचारों के मतभेद के बाद भी उनके विचारों के लिए मेरे अंदर सम्मान है। इस देश के प्रति उनके प्रेम और अदम्य साहस को मैं प्रणाम करता हूं।’ वैचारिक विरोध के बावजूद पंडित नेहरू को समझ पाना अटल बिहारी वाजपेयी जैसे शिक्षित, उदार और संस्कारी लोगों के लिए ही संभव था। भाजपा की आज की धर्मांध, अधकचरी, अशिक्षित या अर्द्धशिक्षित और अभिमानी पीढ़ी के लिए वे महानता के ऐसे शिखर हैं जिसका डर पिछले पांच सालों से उन्हें कुछ करने ही नहीं दे रहा है।

लेखक- ध्रुव गुप्त (लेखक पूर्व IPS अधिकारी हैं)

द फ्रीडम स्टॉफ
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