The Freedom News, National Desk: भारतीय अर्थव्यवस्था बहुत ही बुरे दौर से गुजर रही है और अगर मौजूदा लॉकडाउन कुछ दिनों तक और भी इसी तरह से जारी रहा तो इसकी हालात बहुत ही ज्यादा खराब हो सकती है। यह आशंका एक जाने-माने अर्थशास्त्री जीन ड्रेज ने जताई है जो यूपीए के दौरान नेशनल एडवाइजरी काउंसिल के सदस्य रह चुके हैं। गौरतलब है कि तमाम तरह की ग्लोबल क्रेडिट रेटिंग्स एजेंसियों ने भी कोरोना वायरस के प्रकोप के मद्देनजर भारत की अर्थव्यस्था को लेकर गंभीर संकट का संकेत दे चुकी हैं। लेकिन, अब एक ऐसे अर्थशास्त्री सामने आए हैं, जो भारतीय अर्थव्यवस्था की प्रकृति को अच्छी तरह से समझते हैं। हालांकि, उन्होंने इस संकट से उबरने के कोई खास विकल्प नहीं सुझाए हैं
‘लॉकडाउन जारी रहा तो अर्थव्यस्था चौपट हो जाएगी’
जाने-माने अर्थशास्त्री जीन ड्रेज ने लॉकडाउन की वजह से भारतीय अर्थव्यवस्था की सेहत को लेकर बहुत बड़ी चिंता जताई है। उन्होंने कहा है कि भारतीय अर्थव्यस्था की हालत पहले से ही पतली है और अगर लॉकडाउन थोड़े दिन और जारी रहा तो यह पूरी तरह से चौपट हो जाएगी। बेल्जियम में जन्मे भारतीय अर्थशात्री जीन ड्रेज ने पीटीआई को दिए इंटरव्यू में कहा है कि ‘हालात खराब हैं और अगर स्थानीय और राष्ट्रीय लॉकडाउन इतने ही व्यापक स्तर पर जारी रहा जो कि लग रहा है, तो स्थिति बहुत ज्यादा बिगड़ जाएगी। दूसरी तरफ से भी विश्वव्यापी मंदी की वजह से भारतीय अर्थव्यवस्था पर विपरीत असर पड़ने की संभावना है। ‘ कोरोना वायरस का भारतीय अर्थव्यवस्था और रोजगार पर हुए असर की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा है कि कुछ क्षेत्रों पर बहुत ही बुरा असर पड़ा है, लेकिन इस मुश्किल दौर में भी मेडिकल केयर जैसे क्षेत्र में वृद्धि देखी जा सकती है। उनके मुताबिक, ‘अगर दूसरे क्षेत्रों की स्थिति अच्छी नहीं होगी तो ज्यादातर सेक्टर नहीं संभल सकेंगे…..यह ऐसे ही है जैसे साइकिल पंचर हो तो आप सिर्फ एक पहिये पर आगे नहीं बढ़ सकते। अगर यह संकट बरकरार रहता है तो ये बैंकिंग सिस्टम समेत अर्थव्यवस्था के ज्यादातर हिस्से को अपनी गिरफ्त में ले लेगा। ‘
मैनपावर को लेकर हो सकती है दिक्कत-अर्थशास्त्री
ड्रेज को लगता है कि जब लॉकडाउन हटेगा तो जहां-तहां इकट्ठा प्रवासी मजदूर अपने घरों की ओर जाने की कोशिश करेंगे, क्योंकि कुछ वक्त के लिए वह अपने काम के ठिकाने पर फिलहाल लौटने से हिचकिचाएंगे। उनके मुताबिक, ‘लेकिन, उनके घर पर उनके लिए शायद ही कोई काम होगा,कुछ को छोड़कर जिनके पास खेती लायक अपनी कोई जमीन होगी। ‘ इसका असर उन सेक्टर पर ज्यादा पड़ेगा जो प्रवासी मजदूरों पर बहुत ज्यादा निर्भर हैं। उनके पास मैनपावर की बड़ी कमी आ जाएगी। उन्होंने इसके लिए उन रिपोर्ट्स का हवाला दिया है, जहां उत्तर भारत के कई इलाकों में पहले ही गेहूं की कटाई के लिए मजदूरों के अभाव की बात कही जा रही है। उनका कहना है कि अजीब स्थिति बन रही है जहां मजदूरों की किल्लत और अधिकता एक साथ महसूस की जा सकती है, क्योंकि लॉकडाउन की वजह से उनकी गतिविधियां ठहर सी गई हैं।
‘यूनिवर्सल बेसिक इनकम’ से काम नहीं बनेगा-ड्रेज
जब उनसे ये पूछा गया कि क्या यह यूनिवर्सल बेसिक इनकम जैसे कदम उठाने के लिए सही समय है तो उन्होंने इसे नकार दिया है। यूपीए सरकार के दौरान नेशनल एडवाइजरी काउंसिल के सदस्य रह चुके ड्रेज के मुताबिक अभी के लिए मौजूदा जन वितरण प्रणालियों और सामाजिक सुरक्षा पेंशन जैसे कार्यक्रमों को ही ठीक से इस्तेमाल करना सही है। उन्होंने कहा कि ‘दूसरों के मामले में यूबीआई सही हो सकता है , लेकिन भारत में आज की स्थिति में यह सिर्फ ध्यान भटकाएगा। ‘
कई अंतरराष्ट्रीय रेटिंग एजेंसियों ने घटाया है अनुमान
बता दें कि कोरोना वायरस के प्रकोप के मद्देनजर कई इंटरनेशनल क्रेडिट रेटिंग एजेंसी ने भारत के विकास दर के अनुमानों को पहले ही काफी घटा दिया है। फिच रेटिंग्स ने 2020-21 के लिए भारत की जीडीपी का विकास दर सिर्फ 2 फीसदी रहने का अनुमान जताया है, जो उदारीकरण के 30 साल में सबसे कम होगा। इसी तरह एडीबी ने 4 फीसदी, एस एंड पी ए ग्लोबल रेटिंग्स ने पहले के अपने 5.2 फीसदी के अनुमानों को घटाकर मात्र 3.5 फीसदी रहने का दावा किया है। इसी तरह मूडीज इंवेस्टर सर्विस ने भी 5.3 फीसदी का अपना अनुमान घटाकर सिर्फ 2.5 फीसदी कर दिया है।