नज़रिया

डरना ज़रूरी है – ध्रुव गुप्त

जिसके निज़ाम में अपने से अलग विचारधारा के लोगों को देश के सांसदों और मंत्रियों द्वारा पाकिस्तान भेजने या समुद्र में डुबो देने की धमकियां दी जाती हों, जहां आस्था के नाम पर संविधान और सर्वोच्च न्यायालय तक का मखौल उड़ाया जाता हो, जहां गाय की जान इंसानों की जान से ज्यादा कीमती हो, जहां गोकशी के नाम पर निर्दोष लोगों को जेल और सरकारी अफसर तक के हत्यारों को खुला राजनीतिक संरक्षण मिलता हो, जहां लड़कियों को बलात्कार के बाद जिंदा जला दिया जाता हो और सरकार के किसी मंत्री की ज़ुबान तक नहीं खुलती, जहां मुस्लिम औरतों को कब्र से निकालकर बलात्कार का आह्वान करने वाले को एक सूबे का मुख्यमंत्री नियुक्त किया जाता हो, जहां सड़कों पर भीड़ द्वारा धर्म और जाति पूछकर लोगों को मार डाला जाता हो, जहां दलितों को सड़कों पर नंगा करके पीटा जाता हो, जहां झूठे मुठभेड़ों में डंके की चोट पर निर्दोष लोगों की हत्याएं की जाती हों, जहां वोटों की गोलबंदी के लिए सरकार के ज़िम्मेदार लोगों द्वारा दूसरी आस्थाओं के प्रति खुलेआम घृणा फैलाई जाती हो – उस देश का कोई भी संवेदनशील आदमी अगर यह कहे कि उसे डर या गुस्सा नहीं लगता तो वह झूठ बोलता है। देश के इस माहौल में डर तो सौ-सौ एस.पी.जी के कमांडो लेकर घूमने वाले हमारे प्रधानमंत्री को भी लगता है जिन्होंने कुछ ही अरसे पहले अपनी हत्या की आशंका जताई थी।

नसीरुद्दीन शाह, हम आपके साथ हैं। आपकी फ़िक्र और गुस्सा सिर्फ आपका नहीं – हम सभी संवेदनशील भारतीयों की फ़िक्र और गुस्सा है ! #NaseeruddinShah

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