माननीय गौतम गंभीर जी,
मैं आपके समर्थन में खड़ा हूँ। वो भी गंभीरता से। मैं पहला शख़्स हूँ जिसने किसी हल्के काम का इतनी गंभीरता से समर्थन किया है। सिर्फ़ इसलिए कि आपने जिस तरह से गंभीरता को परिभाषित किया है उससे आज सारे हल्के अपराध बोध से मुक्त हो गए। आपका जलेबी खाना हल्का काम नहीं है। एक गंभीर कार्य है। आपका पेट सटका हुआ है, पाँच दस जलेबियों की और गुंजाइश दिख रही है। संसद की सस्ती कैंटीन के कटलेट से कभी भी इंदौर की जलेबी बेहतर है।
पर्यावरण को लेकर शहरी विकास मंत्रालय की संसदीय समिति की बैठक में न जाकर आपने एक गंभीर कार्य किया है। जब प्रधानमंत्री, पर्यावरण मंत्री, मुख्य मंत्री और सुप्रीम कोर्ट से हवा साफ़ नहीं हुई तो यह बेहद हल्की बात है कि संसदीय समिति की बैठक में जाने से हवा साफ़ हो जाती। वहाँ भी चाय समोसा ही चलना था तो क्यों न इंदौर की जलेबी खाकर उपभोक्ता सूचकांक में वृद्धि की जाए जिसकी रिपोर्ट सरकार ने जारी होने पर रोक लगा दी। आप और आपके तीन साथियों को जलेबी खाता देख पूरी रिपोर्ट ही ग़लत हो जाती है कि चालीस साल में उपभोक्ताओं का मासिक ख़र्च सबसे नीचे आ गया है। आपने सही काम किया इंदौर जाकर और मीटिंग छोड़ कर।
आप क्रिकेट के लिए कभी भी संसद या उसकी समिति की चिन्ता मत करना। आप सांसद क्रिकेट से बने हैं। वरना उस इलाक़े में शिक्षा जैसे बोरिंग विषय पर काम करने वाली उस लड़की को जनता सांसद नहीं बना देती जो राजपूत थी कि ईसाई इसी बहस में निपटा दी गई। एक साल से वो अपने क्षेत्रों प्रचार कर रही थी। आपको जनता ने वोट दिया ताकि पुलवामा पर पाकिस्तान को जवाब मिले। वो जवाब मिल गया। आपका काम ख़त्म। जब भी आपको ट्रोल किया जाए कि आप सांसद का काम नहीं कर रहे और क्रिकेट की कमेंट्री कर रहे हैं तब आप बता दीजिए कि क्रिकेटर न होता एक रात पहले बीजेपी दशकों काम करने वाले कार्यकर्ताओं को हवा में उड़ाते हुए आपको टिकट न देती। जनता वोट न देती। जब बिना काम किए आप चुनाव जीत सकते हो तो काम करके राजनीति का माहौल क्यों ख़राब करना।
इसलिए मैंने गंभीरता से गंभीर को सपोर्ट किया है। आप जो थे आज भी वही हो। जलेबियाँ खाते रहो। चिन्ता मत करो।दिल्ली की हवा आपके चिन्ता करने से तो ठीक नहीं होगी लेकिन अर्थव्यवस्था जो चौपट हुई वो आपके जलेबी खाने से अवश्य ठीक होगी। लक्ष्मण के साथ जलेबी खाना तो और भी पुण्य है। अयोध्या का मामला जो है। आप लक्ष्मण के साथ बिल्कुल शत्रुघ्न लग रहे थे। तीसरे को पहचान नहीं पाया वो शायद भरत होंगे। मैं तो आप तीनों को देख भाव विभोर हो गया हूँ। भावना से ही ईश्वर के दर्शन होते हैं।
दिल्ली वालों। हवा ख़राब है। दिल्ली छोड़ दो। महाप्रस्थान करो। गौतम की तरह गया की तरफ़ निकलो या गौतम गंभीर की तरह इंदौर की तरफ़ निकलो। कुछ करो न करो मगर निकलो इधर से। जलेबी खाने ही सही। पेट सटका हुआ है, पाँच दस जलेबियों की और गुंजाइश दिख रही है।
संसद की सस्ती कैंटीन के कटलेट से कभी भी इंदौर की जलेबी बेहतर है। अगला चुनाव आप इंदौर से जीत सकते हैं।
रवीश कुमार