धार्मिक और गंगा में आस्था रखने वाले करोड़ों लोगो के लिए आध्यात्मिक की दृष्टि से हरिद्वार और ऋषिकेश आस्था का केंद्र है। पुराणों और धार्मिक ग्रंथों में भी गंगा के तट के रूप में इन दोनों स्थानों का मुख्य रूप से ज़िक्र किया गया है। हरिद्वार और ऋषिकेश देश के विभिन्न गंगा तटों करोड़ों ऋद्धालुओं का जमावड़ा लगा रहता है, लेकिन लाॅकडाउन के कारण हर कोई घरों में कैद है। जिससे नदियों के तटो पर मानवीय गतिविधियां बंद हो चुकी है। उद्योग बंद होने के कारण गंगा में नदियों में कैमिकल वेस्ट भी डलना भी पूरी तरह बंद हो गया है। खनन गतिविधियों पर भी पूरी तरह से रोक लगी हुई है। ऐसे में उत्तराखंड ही नहीं, बल्कि उत्तरप्रदेश, बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल तक, या यूं कहें की गोमुख से लेकर गंगा सागर तक गंगा नदी का जल निर्मल हो गया है। सीपीसीबी की रिपोर्ट में गंगा जल को फिलहाल नहाने योग्य बताया है।
गंगा नदी करोड़ों लोगों की आस्था का प्रतीक है, लेकिन आस्था की आड़ में जागरुकता के अभाव ने गंगा नदी को मैला कर दिया। इससे अमृत कहा जाने वाला गंगा नदी का जल विषैला हो गया। ऐसे में ये नहाने योग्य तो दूर आचमन के लायक तक नहीं रहा था। गंगा जल को निर्मल बनाने के लिए करोड़ों रुपयों की योजनाएं शुरू की गई। हजारों करोड़ों रुपये खर्च भी किए गए, लेकिन गंगा का जल साफ होने के बजाए और प्रदूषित हो गया, लेकिन इस बार गंगा को साफ करने के लिए न तो करोड़ों रुपये खर्च करने पड़े और न ही कोई मेहनत। कोरोना के कारण हुए लाॅकडाउन ने नदी को स्वतः ही निर्मल बना दिया। इससे गंगा का पानी हरिद्वार और ऋषिकेश में ही नहीं, बल्कि भारत के अनेकों स्थानों पर नहाने योग्य हो गया है।
हाल ही में आई केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की रिपोर्ट बताती है कि रीयल टाइम वाॅटर माॅनिटरिंग में गंगा का पानी 36 माॅनिटरिंग स्टेशनों में 27 में नहाने योग्य है। उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश सहित विभिन्न स्थानों पर गंगा के पानी में काफी सुधार आया हैं। यहां तक कानुपर में भी गंगा का पानी काफी साफ हो गया है। यहां कई लोगों का ये कहना है कि उन्होंने जीवन में पहली बार गंगा नदी को कानपुर में इतना साफ देखा है। माॅनिटरिंग स्टेशनों पर ऑनलाइन पैमानों पर पानी में ऑक्सीजन घुलने की मात्रा 6 एमजी प्रति लीटर से ज्यादा है। कोलीफाॅर्म का लेवल भी 5000 प्रति 100 एमएल हो गया है। पीएच लेवल 6.5 से 8.5 के बीच हो गया है, जो गंगा नदी की अच्छी सेहत को दर्शाता है। पानी की गुणवत्ता मछलियों और वन्यजीवों के लिए काफी अच्छी हो गई है। विशेषज्ञों की माने तो गंगा का पानी 50 प्रतिशत तक साफ हो गया है।
गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय के पर्यावरण विज्ञान विभाग के पूर्व प्रोफेसर और भारतीय पर्यावरण विज्ञान अकादमी के राष्ट्रीय अध्यक्ष डाॅ. बीडी जोशी का कहना है कि लाॅकडाउन के दौरान गंगा की गुणवत्ता में काफी सुधार आया है। इसका मुख्य कारण उद्योगों से औद्योगिक वेस्ट न गिरना और यात्रियों की आवाजाही बंद होना तथा धार्मिक गतिविधियों का बंद होना है। उन्होंने बताया कि गंगा में टीडीएस लेवल में 500 फीसदी की गिरावट आई है। नदी में गिरने वाले मल और कचरे में 100 यूनिट की कमी आई है। इसके अलावा जल में ऑक्सीजन की जो मात्रा पहले 7.8 एमजी थी, वो बढ़कर 8.9 एमजी से 10 एमजी के बीच हो गई है। ऑक्सीजन की मात्रा बढ़ाना जलीय जीवों के लिए काफी फायदेमंद है। हरिद्वार की प्रबंध कार्यकारिणी संस्था श्री गंगा सभा के अध्यक्ष पंडित प्रदीप झा ने बताया कि हरकी पैड़ी पर हर दिन 25 से 30 हजार लोग शाम को गंगा जी की आरती देखने आते थे। गर्मियों के मौसम आरती देखने वालों की संख्या 50 हजार तक भी पहुंच जाती थी। लेकिन लाॅकडाउन के कारण फिलहाल सभी कुछ बंद है।
उत्तराखंड जल संस्थान के अधिशासी अभियंता अजय कुमार ने बताया कि लाॅकडाउन के कारण हरिद्वार के ही तीन प्रमुख सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट में सीवर के पानी की मात्रा में 10 से 15 फीसद तक की कमी आई है। हरिद्वार में जगजीतपुर के तीन और सराय में एक एसटीपी में सीवर के पानी में भारी कमी आई है। उन्होंने बताया कि जगजीपुर में 27 एमएलडी का एसटीपी है, जिसमें बंदी से पहले 46 एमएलडी सीवर का पानी आता था, लेकिन अब क्षमता से भी कम पानी आ रहा है। लाॅकडाउन के कारण ये स्थिति केवल हरिद्वार की ही नहीं, बल्कि पूरे देश की है। कानुपर में जहां, चमड़ा व विभिन्न उद्योगों से वेस्ट गंगा में डाला जाता था। यहां गंगा नदी का पानी काला पड़ गया है। लेकिन फिलहाल सभी लाॅकडाउन के कारण बंद है। जिस कारण गंगा नदी साफ हो रही है। ऐसे में लाॅकडाउन ने हमे बता दिया कि नदी को साफ करने के लिए करोड़ों रुपयो की जरूरत ही नहीं है। जरूरत सिर्फ नदी को गंदा न करने की है, क्योंकि नदी तो साफ ही है। इसलिए कोरोना वायरस ने हमे भविष्य की राह दिखाई है। अब देखना ये होगा कि कैसे सरकार नदियों को साफ करने की योजना बनाती है।
लेखक
राजेंद्र वैश्य
पर्यावरणविद एवं अध्यक्ष, पृथ्वी संरक्षण