National Bureau, TFN: 90 के दशक का वो दौर याद कीजिए जब बड़ी संख्या में भारतीयों ने पश्चिमी देशों का रुख किया। तब ये धारणा बनी कि भारत का इंफ्रास्ट्रक्चर उतना मजबूत नहीं जो महामारियों को झेल सके। कॉलरा, टीबी, स्मॉलपॉक्स के अनुभव इस धारणा को मजबूत करते गए। मिडल क्लास के बीच विदेश से लौटना, खासतौर से अमेरिका या ब्रिटेन से, बड़े गर्व की बात होती थी। शायद वक्त बदल गया है, अब वहां से लौटने वाले दिखावा नहीं करते क्योंकि कोरोना वायरस का प्रकोप है।
अमेरिका ने जैसा बोया वैसा काटा
कोरोना वायरस से सबसे ज्यादा बुरा हाल इस वक्त अमेरिका का है। साल 1892 में जब कॉलरा फैला तो अमेरिका ने सभी इमिग्रेंट्स को सीधे क्वारंटीन में भेज दिया। आज यही अमेरिकंस के साथ हो रहा है। अमेरिका ने राष्ट्रपति भारत से मदद मांगते हैं। उन्हें COVID-19 के खिलाफ लड़ाई में ‘गेमचेंजर’ बताई जा रही दवा Hydroxychloroquine चाहिए। भारत इसका सबसे बड़ा प्रोड्यूसर है। कई और विकसित देशों ने भारत से ये दवा मांगी है।
कभी उड़ाते थे मजाक, आज नतमस्तक
समय का अजीब खेल है। कभी भारत को ‘सपेरों का देश’ कहते थे। यहां की संस्कृति, इसकी सभ्यता का पश्चिमी देशों में खूब मजाक बनता था। आज वही देश भारत के आगे नतमस्तक हैं। हमारे अभिवादन के तरीके को कोरोना काल में पूरी दुनिया अपना रही है। इजरायल, ब्रिटेन जैसे देशों के नेता खुलकर ‘नमस्ते’ करते हैं। हाथ मिलाने पर वायरस संक्रमण का खतरा है, इसलिए नमस्ते सबसे अच्छा। यह बात अब जाकर पश्चिमी देशों को समझ आई है।
सीखे नहीं, झेला नुकसान
कोरोना वायरस को लेकर अमेरिका और ब्रिटेन के रेस्पांस को देखिए। दोनों देशों ने COVID-19 को हल्के में लिया। ट्रंप ने यहां तक कहा कि ये अफवाह है और जादू की तरह गायब हो जाएगा। एक तरफ, भारत समेत एशिया के कई देश लॉकडाउन की ओर बढ़ रहे थे तो पश्चिम में व्यापारी जारी था। अब अमेरिका और ब्रिटेन, दोनों देशों में मरने वालों की संख्या हजारों में है। खुद ब्रिटिश पीएम बोरिस जॉनसन अभी ICU से बाहर आए हैं।