भोपाल: मध्य प्रदेश कांग्रेस के वरिष्ठ नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया ने आज कांग्रेस पार्टी से इस्तीफा दे दिया था। ज्योतिरादित्य सिंधिया काफी लंबे समय से कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व की नीतियों से नाराज थे। बालाकोट अटैक का मुद्दा हो या अनुच्छेद 370 का सिंधिया ने कांग्रेस की आधिकारिक लाइन से हटकर बयान दिया था। माना जा रहा है कि राज्यसभा के टिकट के मुद्दे ने आग में घी डालने का काम किया और उन्होंने कांग्रेस को अलविदा कह दिया।
पाकिस्तान के बालाकोट पर भारतीय वायुसेना के बम गिराए जाने की घटना पर सिंधिया ने कांग्रेस से अलग राय रखी थी। उन्होंने कहा था, ‘बालाकोट की जहां तक बात है, हम सबसे पहले भारतीय हैं…तिरंगा हमारा पहला झंडा है। जब हमारे देश के एकता और संप्रभुता की बात आती है या देश को कमजोर करने के लिए सुरक्षा बलों के खिलाफ कुछ होता है तो हम सबसे भारतीय सबसे पहले हैं।’ उनके इस बयान से पहले कांग्रेस पार्टी ने इस हमले की प्रमाणिकता पर सवाल उठाया था।
अनुच्छेद 370 पर मोदी सरकार का किया था समर्थन
सिंधिया ने जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 को हटाए जाने के मोदी सरकार के फैसले का समर्थन किया था। सिंधिया ने ट्वीट कर कहा था, ‘मैं जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में केंद्र के कदम और भारत में पूर्ण एकीकरण का समर्थन करता हूं। हालांकि अगर संवैधानिक तरीका का पालन किया गया होता तो यह अच्छा होता। तब कोई इस पर सवाल नहीं उठा पाता। फिर भी यह हमारे देश के हित में है और मैं इसका समर्थन करता हूं।’
मध्य प्रदेश में इस पूरे संकट की नींव विधानसभा चुनाव के दौरान ही पड़ गई थी। सिंधिया को विधानसभा चुनाव 2013 और फिर 2018 के दौरान शिवराज सिंह चौहान के मुकाबले मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित करने की कोशिश हुई, पर सफल नहीं रही। करीब सवा साल पहले हुए चुनाव में कांग्रेस पार्टी ने सिंधिया को बड़े चेहरे के रूप में प्रचारित किया गया था। कमलनाथ को प्रदेश अध्यक्ष तो सिंधिया को चुनाव प्रचार अभियान समिति का अध्यक्ष बनाया था।
हाशिए पर डालने से नाराज हुए ज्योतिरादित्य
ज्योतिरादित्य को उम्मीद थी कि सत्ता में आए तो उन्हें भी मजबूत हिस्सेदारी मिलेगी, लेकिन सत्ता में आते ही सिंधिया हाशिए पर डाल दिए गए। कमलनाथ की सरकार में उनकी किसी बात को तवज्जो नहीं मिली। आरोप है कि दिग्विजय और कमलनाथ की जोड़ी ने हर पल सिंधिया समर्थक मंत्रियों को भी परेशान किया। इसी उपेक्षा के चलते कई बार सिंधिया ने अपनी नाराजी को सार्वजनिक भी किया। उन्होंने सड़क पर उतरने की चेतावनी तक दी। सिंधिया समर्थकों ने मांग की कि उनके नेता को प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष का पद दिया जाए लेकिन इस पर कांग्रेस आलाकमान तैयार नहीं हुआ।
सिंधिया की इस उपेक्षा पर कांग्रेस की कार्यकारी अध्यक्ष सोनिया गांधी समेत शीर्ष नेतृत्व ने ध्यान नहीं दिया। बताया जा रहा है कि ज्योतिरादित्य सोनिया गांधी से मिलकर अपना पक्ष रखना चाह रहे थे लेकिन उन्हें समय नहीं दिया गया। ज्योतिरादित्य के बगावती रुख से मध्य प्रदेश सरकार पर मंडराते खतरों को देखते हुए सोनिया ने कमलनाथ को समाधान के सभी विकल्पों का रास्ता खोले रखने को कहा। कांग्रेस की ओर से संकेत यह भी दिया गया कि ज्योतिरादित्य सिंधिया को राज्यसभा उम्मीदवार बनाने में हाईकमान को कोई दिक्कत नहीं है।
दिग्विजय-कमलनाथ ने सिंधिया पर कसा तंज
सोनिया गांधी के इस संकेत के बाद भी सिंधिया चुप रहे और अचानक उन्होंने सोमवार को पीएम मोदी से मुलाकात की। इसके बाद उनके बीजेपी में आने की अटकलें तेज हो गईं। दरअसल सोनिया गांधी ने सिंधिया को मनाने में काफी देरी की। कांग्रेस सूत्रों के अनुसार हाईकमान ने कमलनाथ से साफ कहा कि राज्यसभा चुनाव को लेकर शुरू हुआ मौजूदा संकट सूबे के तीनों वरिष्ठ नेताओं के आपसी अविश्वास का नतीजा है। इसीलिए समाधान का रास्ता निकालने की जिम्मेदारी भी खासतौर पर मुख्यमंत्री कमलनाथ और वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह की है। जिस दिग्विजय सिंह को यह जिम्मेदारी दी गई, उन्होंने सिंधिया पर तंज कसा कि उनको स्वाइन फ्लू हो गया है।