Mumbai Bureau, The Freedom News: बांद्रा की इस मुस्लिम बहुल बस्ती का नाम गरीब नगर है तो क्या हुआ, यहां रहने वालों का दिल बहुत बड़ा है.
गरीब नगर की झोपड़पट्टियोें में एक बुजुर्ग रहते थे प्रेमचंद. यहां पर दो ही हिंदू परिवार हैं. मुहल्ले के अबू बशर प्रेमचंद के बेटे मोहन के दोस्त हैं. अबु बशर उन्हें चाचा कहते थे. प्रेमचंद की तबियत खराब हुई तो ये बच्चे प्रेमचंद को लेकर अलग अलग बीएमसी अस्पतालों में चक्कर लगाते रहे. लेकिन अस्पतालों ने भर्ती करने से इनकार कर दिया क्योंकि वहां कोरोना मरीजों के इलाज चल रहे हैं. इस बीच प्रेमचंद की मौत हो गई.
प्रेमचंद का एक बेटा मोहन ही उनके साथ था, जिसे हिंदू रीति रिवाजों की जानकारी नहीं थी. उनके परिवार के बाकी लोग नाला सोपारा और दूसरी जगहों पर फंसे हैं जो आ नहीं सकते थे.
अबू और अन्य मुस्लिमों ने मिलकर सलाह मशविरा किया और तय किया कि हम प्रेम चाचा का अंतिम संस्कार करेंगे. इस बारे में पुलिस को भी सूचित किया गया. लेकिन मुसीबत ये थी मोहन की तरह इन्हें भी हिंदू रीति रिवाजो की जानकारी नहीं थी. उपाय खोजा गया. उन्होंने पड़ोस में रहने वाले शेखर से सलाह ली.
शेखर के बताने के मुताबिक सारे इंतजाम किए गए. इन्हीं मुस्लिम लड़कों ने लॉकडाउन में बड़ी मुश्किल से अर्थी के लिए सामान जुटाया. खुद ही अर्थी बनाई. मोहन के साथ मिलकर प्रेमचंद को नहलाया गया. मटकी बनाई और फिर मोहन के साथ उसके मुस्लिम दोस्तों ने प्रेम चाचा को कंधा दिया. उन्हें श्मशान ले गए और उन्हें मुखाग्नि दी गई.
मोहन ने बताया है कि मैं बचपन से ही गरीब नगर बस्ती में रहता हूं. मुझे ज्यादा जानकारी नहीं थी और लॉकडाउन के चलते अपने लोग भी नहीं आ सकते थे. ऐसे में आसपड़ोस के मुस्लिम परिवारों ने मिलकर अंतिम संस्कार में मदद की.
कल इंदौर और बुलंदशहर की दो ऐसी ही घटनाओं के बारे में लिखा था. मैं पिछले दो महीनों में ऐसी कम से कम 25 कहानियां लिख चुका हूं. यह कोई अपवाद नहीं हैं. यह भारत का विविधताओं से भरा जीवन है, यही भारत की संस्कृति है, यह हमारी असलियत है.