नज़रिया

ईश्वर की बनाई सबसे खूबसूरत रचना है मां- राजेन्द्र वैश्य

दुनिया में ईश्वर की बनाई सबसे खूबसूरत कोई रचना है, तो वह है मां। दुनिया में कोई प्रेम का समंदर है, तो वह है मां का दिल। बेटा चाहें जैसा भी हो, लेकिन मां के लिए वह दुनिया में सबसे अच्छा होता है। कोई मुसीबत हो तो मां आगे खड़े होकर हर खतरे, हर जोखिम से बच्चों की रक्षा करती है। अपने आंचल की छांव में उसे दुनिया जहान का सुख देती है। उसी मां को प्यार देने के लिए, उसके समर्पण के लिए उसे सम्मान देने के लिए, उसे याद करने के लिए और उसे याद दिलाने के लिए कि वह हमारे लिए कितनी स्पेशल है, हर साल मई के दूसरे रविवार को दुनिया भर में मदर्स डे के रूप में मनाया जाता है।

हिमालय से ऊंची और समुद्र से गहरी होती है माँ की ममता। माँ जैसे पवित्र शब्द में सारा संसार व्याप्त है। माँ जीवन की कठिन परिस्थितियों में भी सन्तान का साथ नही छोड़ती। वह कितनी भी कोमल व कमजोर क्यों न हो,परन्तु जब अपने बच्चे को संकट में घिरा देखती है तो चंडी का रूप धारण कर लेती है। माँ के आंचल में एक बालक खुद को पूर्णतयः सुरक्षित महसूस करता है। मनुष्य के जीवन मे प्रथम गुरु उसकी माँ ही होती है। माँ ही उसे प्रारंभिक शिक्षा व संस्कार प्रदान करती है। दया,करुणा,क्षमा तथा त्याग की साक्षात देवी ‘माँ’ की महानता को चंद शब्दों में व्यक्त करना संभव नही है।

धर्म ग्रन्थों में कहा गया है जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी अर्थात जन्मभूमि और जन्म देने वाली माँ स्वर्ग से भी अधिक श्रेष्ठ है। यदि तुला के एक पलड़े पर स्वर्ग का सुख और एक पलड़े पर माँ को बैठाया जाय तो माँ का पलड़ा भारी रहेगा। भूल से भी कभी माँ का दिल न दुखाएं। यदि कोई माँ को छोटी-छोटी बातों पर अपमानित कर देवीधाम की परिक्रमा करे तो यह किसी भी दृष्टि से उचित नही है न ही देवी माँ इस परिक्रमा को स्वीकार करतीं है।

आज भी उसकी डांट आपको भीतर तक भिगो देती है। ‘मैं समझाती हूं तो कहां समझ में आता है, देखा, हो गए ना बीमार?’ एक ऐसी डांट जिसमें चिंता की कोंपलें सहज फूटती दिखाई पड़ जाती है, उसके छुपाते-छुपाते भी। प्रार्थना के फूल बुदबुदाते स्वरों में ही झर जाते हैं उसके संभालते-संभालते भी। प्यार की हरी पत्तियां झांक ही लेती हैं दबाते-दबाते भी।

मां को ईश्वर ने सृजनशक्ति देकर एक विलक्षण व्यवस्था का भागीदार बनाया है। एक अघोषित अव्यक्त व्यवस्‍था, किंतु उसका पालन हर मां कर रही है। चाहे वह कपिला धेनु हो, नन्ही सी चिड़िया हो या वनराज सिंह की अर्धांगिनी। इस व्यवस्‍था को समझिए जरा। आपने कभी नहीं देखा होगा गाय का बछड़ा मां को चाट रहा है। चिड़िया के बच्चे उसके लिए दाना ला रहे हैं और मां की चोंच में डाल रहे हैं या शावक अपनी मां के लिए शिकार ला रहे हैं।

प्रकृति ने ही मां को पोषण देने का अधिकार दिया है। वही पोषण देती है और सही समय आने पर पोषण जुटाने का प्रशिक्षण भी। पोषण देने में वह जितनी कोमल है प्रशिक्षण देने में उतनी ही कठोर। मां दोनों ही रूपों में पूजनीय है।

इन दोनों ही रूपों में संतान का कल्याण निहित होता है।

‘उसको नहीं देखा हमने कभी…
पर उसकी जरूरत क्या होगी,
…हे मां तेरी सूरत से अलग
भगवान की सूरत क्या होगी…

ईश्वर हर जगह नहीं पहुंच सकता इसीलिए उसने मां बना दी। जो हर किसी की होती है, हर किसी के पास होती है। शारीरिक उपस्थिति मां के लिए मायने नहीं रखती। वह होती है तो उसकी ईश्वरीय छाया सुख देती है जब ‘नहीं’ होती है तब उसके आशीर्वादों का कवच हमें सुरक्षा प्रदान करता है।

मां हमेशा है और रहेगी उसके ‘होने’ का ही महानतम अर्थ है शेष सारे आलेख और उपन्यास, कहानी और कविता व्यर्थ है। क्योंकि मां शब्दातीता है, वर्णनों से परे है। फिर भी उसे शब्दों में समेटने की, वर्णनों में बांधने की चेष्टाएं, नाकाम कोशिशें हुई हैं, होती रहेंगी।

कभी लगता है मां एक अथाह नीला समंदर है, जो समा लेता है सबको अपने आप में, अपने अस्तित्व में, अपने व्यक्तित्व में फिर भी वह कभी नहीं उफनता। शांत, धीर, गंभीर उदात्त बना रहता है।

राजेन्द्र वैश्य, डलमऊ
अध्यक्ष, पृथ्वी संरक्षण, रायबरेली

द फ्रीडम स्टॉफ
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