यूपी ब्यूरो से आशुतोष गुप्त: बुधवार का दिन अमेठी की सियासत में काफी अहम होगा। बदले हुए हालात में राहुल गांधी अमेठी में जनता के सामने होंगे तो बहुत कुछ तस्वीर साफ होगी। अमेठी की सियासत किस करवट बैठेगी। अमेठी को लेकर पिछले पांच सालों से राहुल व स्मृति के बीच जारी सियासी लड़ाई का रूख क्या होगा। इसका भी अनुमान लगेगा। वैसे तो अमेठी से गांधी-नेहरू परिवार का बहुत पुराना नाता है।
राहुल गांधी अमेठी में सोनिया गांधी के सांसद रहते हुए 2002 में राजनीति में सक्रिय हुए। 2004, 2009 व 2014 के आम चुनाव में राहुल गांधी को अमेठी की जनता ने अपना रहनुमा चुना पर दूसरे चुनावों में कांग्रेस को करारी शिकस्त भी मिली। लेकिन, कांग्रेस ने कभी भी सियासी जख्मों से सबक लेकर आगे बढऩे की कोशिश नहीं की। 2017 के विधान सभा चुनाव में एक भी सीट पर पार्टी के प्रत्याशी नहीं जीते।
पंचायत चुनाव के साथ नगरीय निकाय के चुनाव में भी कांग्रेस का प्रदर्शन बेहद खराब रहा पर कांग्रेस ने कभी इसकी ईमानदारी से समीक्षा नहीं की। तीन जिलों (अमेठी, रायबरेली व सुलतानपुर) में फैले संसदीय क्षेत्र की अपनी-अपनी समस्याएं हैं और सियायत के रंग। जिन्हें भरने के लिए कांग्रेस के लोगों की माने तो राहुल गांधी बीते डेढ़ दशक में 191 बार अमेठी आये हैं।
लंबे अंतराल के बाद पहली बार राहुल 2002 में अपनी बहन प्रियंका के साथ यहां आये थे। उसके बाद तो सांसद के रूप में उनका आना-जाना बना ही रहता था। बुधवार को पहली बार वह केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी से पराजित होने के बाद आ रहे हैं। ऐसे में कांग्रेस के कार्यकर्ता भी नहीं समझ पा रहे हैं कि वह राहुल गांधी का स्वागत करें तो कैसे। बदले हालात व राहुल की पुरानी टीम की गैर मौजूदगी में कार्यकर्ताओं से संवाद व उसके बाद अमेठी को लेकर राहुल व कांग्रेस की रणनीति पर सब की निगाहें लगी हुई हैं।
अमेठी में राहुल गांधी को केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी के पहले किसी योद्धा ने कोई खास चुनौती नहीं दी। राहुल ने दो चुनावों में रिकार्ड मतों के अंतर से जीत दर्ज की। आम चुनाव 2014 के पहले के तीन चुनाव में तो बस कहने को ही अमेठी में चुनावी मैदान सजता था। लेकिन, स्मृति पहले राहुल को कड़ी चुनौती दी और फिर पांच साल मेहनत कर अमेठी की सरताज बन गईं।