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अब घर में नहीं होंगी पराई जम्मू-कश्मीर की बेटियां, महिलाओं को मिलेंगे अधिकार

जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 के कारण महिलाओं को अपने अधिकार पाने के लिए संघर्ष करना पड़ रहा था। अन्य राज्यों में शादी होने पर बेटियों को राज्य की स्थायी नागरिकता गंवानी पड़ती थी, लेकिन जम्मू कश्मीर का विशेष दर्जा खत्म होने के बाद उन्हें हक मिलना शुरू हो जाएंगे। यानी अब बेटियां पराई नहीं होंगी।

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 और 15 के तहत सभी को बराबरी का हक मिला हुआ है। अन्य राज्यों में विवाह के बाद भी बेटियों को पूरे अधिकार मिलते हैं, लेकिन जम्मू कश्मीर में ऐसा नहीं था। महाराजा हरि सिंह के समय से राज्य में स्थायी नागरिकता प्रमाणपत्र को जरूरी रखा था।

वर्षो लड़ी कानूनी लड़ाई

वर्षो कानूनी लड़ाई लड़ने के बाद डॉ. सुशीला सहनी के मामले में हाईकोर्ट की फुल बेंच ने उनके स्थायी नागरिकता प्रमाणपत्र को बरकरार रखने का आदेश दिया था। यह उनकी आधी जीत थी। बेटियों को इसके बाद न्याय के लिए कोर्ट का सहारा लेना पड़ रहा था। बेटियों को राज्य से बाहर शादी करने के बाद स्थायी नागरिकता का अधिकार तो मिल गया, लेकिन अगर उनकी मृत्यु हो जाती थी तो जायदाद पर बच्चों का हक नहीं होता था। कारण बच्चों का राज्य में स्थायी नागरिकता प्रमाणपत्र नहीं बन पाना था। यह मामला अभी भी कोर्ट के विचाराधीन है।

बच्चों को मिलेंगे अधिकार

जम्मू संभाग के अखनूर की रंजना चाढ़क को पहला स्थायी नागरिकता प्रमाणपत्र बनवाकर देने वाले एडवोकेट असीम साहनी का कहना है कि महिलाओं को शादी के बाद स्थायी नागरिकता से हाथ नहीं गंवाना पड़ता है। उनके बच्चों को भी यह अधिकार मिले, यह मामला अभी कोर्ट में लंबित है। अब 35-ए खत्म होने के बाद उनके बच्चों को भी यह अधिकार मिलेंगे।

अधिकारों के लिए संघर्ष नहीं

गोस्वामी महिलाओं के अधिकारों के लिए काम कर रही डॉ. अनुराधा गोस्वामी का कहना है कि एक ही संविधान में रहते हुए सभी को एक जैसे अधिकार होने चाहिए। यह बहुत अच्छा है कि अब अनुच्छेद 35-ए के खत्म होने के बाद महिलाओं को अपने अधिकारों के लिए संघर्ष नहीं करना पड़ेगा।

महिलाओं के संघर्ष की कहानी :

स्थायी नागरिकता प्रमाणपत्र के लिए राज्य की महिलाओं ने काफी दर्द सहा लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और कानूनी जंग लड़ी। जम्मू की रहने वाली अंजली खोसला को अतिरिक्त जिला उपायुक्त जम्मू ने जो प्रमाणपत्र दिया वह केवल शादी से पहले तक मान्य था। बाहरी राज्य के व्यक्ति से शादी करने के बाद उसने फिर से प्रमाणपत्र के लिए आवेदन दिया। उसे अतिरिक्त जिला उपायुक्त ने जारी करने से इंकार कर दिया। जम्मू की डॉ. आभा जैन को गायनोकॉलोजी में पीजी में प्रवेश के लिए उससे शादी के बाद स्थायी नागरिकता का प्रमाणपत्र मांगा गया। उसने अन्य राज्य के व्यक्ति से शादी की थी। जब इसके लिए आवेदन किया तो इन्कार कर दिया। उसने इसे कोर्ट में चुनौती दी। सफलता मिली।

जम्मू की रहने वाली डॉ. सुशीला साहनी के मामले में हाईकोर्ट की फुल बेंच ने पहली बार ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए बेटियों के शादी के बाद भी स्थायी नागरिकता प्रमाणपत्र को जारी रखा। उन्हें राज्य में जायदाद खरीदने का भी पूरा हक दिया गया था।

द फ्रीडम स्टॉफ
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