दिल्ली में रेप की घटना के बाद यूनिसेफ इंडिया ने कहा कि दिल्ली में पिछले दिनों बलात्कार की जिस घटना में पांच साल की बच्ची अपनी जिंदगी से जूझ रही है, वह दिखाती है कि भारत में महिलाओं और लड़कियों को गलियों, स्कूलों, कार्यस्थलों और घर में सुरक्षित महसूस कराने के लिए तुरंत कदम उठाने की जरूरत है। हाल में जारी आंकड़े का जिक्र करते हुए यूनिसेफ ने कहा कि आंकड़े हालात की भयावहता को बताते हैं। तीन बलात्कार पीडि़तों में से एक बच्ची है। आंकड़ों के मुताबिक, 2011 में भारत में बच्चों के खिलाफ 30 हजार से ज्यादा अपराध हुए। नवजात सहित 7200 से अधिक बच्चों से हर साल बलात्कार होते हैं। कई मामलों की रिपोर्ट नहीं होती और ऐसे मामलों पर ध्यान नहीं दिया जाता।
बढ़ रहे अपराध पर चिंता
क्रिकेटर गौतम गंभीर सोशल मीडिया बेहद सक्रिय रहने वाले और सामाजिक मुद्दों पर अपनी बात बेबाकी से रखते हैं। इस बार उन्होंने देश में महिलाओं के खिलाफ बढ़ रहे अपराध पर चिंता प्रकट की है। गौतम ने चिंता जाहिर करते हुए कहा है कि ‘मुझे डर लगता है कि कहीं एक दिन उनकी बेटी उनसे रेप शब्द का मतलब न पूछ बैठे’। उन्होंने एक आर्टिकल में बेटियों की सुरक्षा को लेकर खुलकर सारी चिंताएं साझा की हैं। गंभीर ने लिखा है कि जब मैं 14 साल का था तब मुझे रेप शब्द के बारे में पहली बार पता चला। क्रिकेटर ने कहा है कि 1980 में रिलीज हुई फिल्म इंसाफ का तराजू मेरे जन्म के एक साल बाद रिलीज हुई थी। मुझे याद नहीं कि मैंने यह फिल्म दूरदर्शन पर देखी है या फिर किसी वीडियो टेप में। लेकिन मुझे फिल्म के बारे में याद है कि यह दो रेप पीड़ितों की कहानी पर आधारित फिल्म थी। एक यंग ब्वॉय के तौर पर मैं फिल्म में रेपिस्ट रमेश के मर्डर से बहुत संतुष्ट था। ये रोल एक्टर राज बब्बर ने निभाया था।
खबरें करती हैं विचलित
गौतम कहते हैं कि आज जब मैं अखबारों के फ्रंट पेज पर बच्चियों के रेप की खबरें पढ़ता हूं। तो मुझे इस बात का डर सताता है कि जल्द ही मेरी बेटी मुझसे रेप शब्द का मतलब पूछेगी। 4 साल और 11 महीने की दो बेटियों के पिता होने के नाते मैं एक ही समय में परेशान भी हूं और खुश भी हूं। इन दिनों किंडरगार्टन स्कूल्स में बच्चों को गुड टच और बैड टच के बीच फर्क सिखाया जा रहा है। इसलिए परेशान होने की वजह साफ है और खुश इसलिए हूं क्योंकि कम से कम हम तो इस मुद्दे पर टाल-मटोल करने के बजाय इस रोकने की कोशिश कर रहे हैं।
आतंकवादियों से ज्यादा खतरनाक
नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों का उल्लेख करते हुए लिखा है कि एनसीआरबी के मुताबिक पिछले 10 सालों में बच्चों के साथ यौन अपराधों के मामलों में 336 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है। 2016 में 19,765 रेप के मामले दर्ज हुए जबकि 2015 में 10,854 मामले। मुझे एहसास है कि यह हालत तब है जबकि ऐसे कई सारे मामलों में तो एफआईआर तक दर्ज नहीं कराए जाते। कठुआ गैंगरेप का जिक्र करते हुए इस खिलाड़ी ने लिखा है कि निठारी,कठुआ, उन्नाव और इंदौर जैसे ऐसे अनेकों मामले हैं जिनपर हम शर्मिंदा हुए हैं। मेरे विचार से ऐसे लोग आतंकवादियों से ज्यादा खतरनाक हैं।
पीड़िता की उम्र के हिसाब से सजा क्यों?
ऐसे लोगों को रेपिस्ट की बजाए किसी और मजबूत शब्द से बुलाया जाना चाहिए। हिंदुस्तान टाइम्स में लिखे एक आलेख में उन्होंने केंद्र सरकार द्वारा रेप के मामलों में लाए गए नए अध्यादेश का उल्लेख करते हुए कहा है कि सरकार ने अब 12 साल से कम उम्र के बच्चों के साथ दुष्कर्म करने वालों के खिलाफ मौत की सजा का प्रावधान किया है। उन्होंने सरकार के इस फैसले की आलोचना करते हुए कहा कि रेप, रेप ही होता है। फिर ऐसे मामलों में दोषियों को पीड़िता की उम्र के हिसाब से सजा क्यों? अपने लेख में कुछ गंभीर सवाल उठाते हुए गौतम ने कहा कि क्या हमारे पास रेप क्राइसिस सेंटर हैं?